भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) से 12 ऊर्जावान प्रचारकों की मांग की है. ताकि इन्हें राष्ट्रीय स्तर से लेकर प्रदेशों में संगठन की जिम्मेदारियां दी जा सकें. आरएसएस से आने वाले प्रचारकों को आमतौर पर बीजेपी में संगठन मंत्री का दायित्व देने की परंपरा है. बीजेपी की राष्ट्रीय इकाई से लेकर प्रदेश और क्षेत्रीय इकाइयों में आरएसएस के प्रचारकों के लिए सीटें होती हैं.
आरएसएस की 11, 12 और 13 जुलाई को आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में होने जा रही बैठक बेहद अहम मानी जा रही है. क्योंकि इस बैठक मे बीजेपी की मांग पर आरएसएस फैसला ले सकता है. aajtak.in को यह जानकारी भरोसेमंद सूत्रों ने दी है. संघ प्रमुख मोहन भागवत सहित शीर्ष पदाधिकारियों की मौजूदगी में होने जा रही इस बैठक में देश भर के करीब 300 संघ प्रचारक हिस्सा लेंगे. माना जा रहा है कि अगर संघ 12 प्रचारक देने को राजी हुआ तो बीजेपी में राष्ट्रीय से लेकर प्रदेश स्तर पर संगठन मंत्री के रूप में कुछ नए चेहरे दिखेंगे.
आरएसएस की जुलाई में होने वाली बैठक कई मायनों में खास होती है. इसमें संघ अपने 'परिवार' यानी अनुषांगिक संगठनों में जिम्मेदारियां निभा रहे प्रचारकों के कार्यक्षेत्र में जरूरत के हिसाब से परिवर्तन का भी फैसला करता है. अगर संबंधित वर्ष के दौरान बीजेपी की ओर से संगठन स्तर पर काम के लिए तेजतर्रार प्रचारकों की मांग होती है तो संघ अपेक्षाओं पर खरे उतरने वाले प्रचारकों को भी इस बैठक में बीजेपी को देने पर फैसला लेता है. आरएसएस और बीजेपी के विश्वस्त सूत्रों ने aajtak.in को बताया कि जुलाई के बाद जल्द ही बीजेपी से लेकर संघ और अनुषांगिक संगठनों में कार्यरत कुछ प्रचारक नई भूमिकाओं में दिख सकते हैं.
संघ की हर साल तीन प्रमुख बैठकें होती हैं. मार्च में जनरल मीटिंग यानी जिसे अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक कहते हैं. इसमें संघ नीतिगत फैसले करने के साथ सिर्फ संगठन में आंतरिक परिवर्तन करता है. जबकि जुलाई की बैठक में संघ अपने ही नहीं, बल्कि परिवार यानी संबद्ध चल रहे 35 से अधिक संगठनों से जुड़े प्रचारकों के दायित्वों में भी जरूरत पड़ने पर परिवर्तन करता है.
मकसद है कि प्रचारक नई जिम्मेदारियां निभाकर नई ऊर्जा से काम करें. मार्च वाली बैठक में जहां संघ के प्रचारकों से लेकर अन्य स्तर के पदाधिकारियों की संख्या करीब डेढ़ हजार होती है, वहीं जुलाई की इस बैठक में सिर्फ 300 विशुद्ध प्रचारक शामिल होते हैं. इसस बैठक में आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारकों के हिस्सा लेने की ही अनुमति होती है. दीपावली के आसपास संघ की तीसरी प्रमुख बैठक होती है, जिसमें स्वयंसेवकों के व्यक्तित्व विकास से लेकर अन्य गतिविधियों पर चर्चा होती है. इस बैठक में प्रचारकों के अलावा भी आरएसएस के संगठनों से जुड़े दायित्व संभालने वाले पदाधिकारी शामिल होते हैं.
ब्रेन स्टॉर्मिंग होती है यह बैठक
संघ की जुलाई की बैठक का एजेंडा क्या होता है, यह किस प्रकार की बैठक होती है? इस सवाल पर संघ विचारक दिलीप देवधर AajTak.in से कहते हैं कि यह बैठक एकदम ब्रेन स्टॉर्मिंग के लिए होती है. चूंकि इसमें सिर्फ विशुद्ध प्रांत प्रचारक से लेकर ऊपर के अधिकारी होते हैं. इसमें अनुषांगिक संगठनों के पदाधिकारी भी नहीं होते. इस नाते इसमें संघ के प्रचारक मन की बात करते हैं. वे बिना किसी हिचक के अपने विचार व्यक्त करते हैं. इस बैठक को आरएसएस इसी मकसद से आयोजित करता है कि इसमें प्रचारक खुलकर बातें कर सकें. ऐसे में यह ब्रेन स्टॉर्मिंग बैठक आरएसएस के लिए काफी उपयोगी होती है. प्रांत प्रचारकों से मिले फीडबैक के आधार पर संघ को आगे की रणनीतियां तय करने में मदद मिलती है.