इसी रविवार को दुनिया भर के सौ से ज्यादा विकलांग युवाओं को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के मंच पर नाचते-गाते और अभिनय करते देख दर्शक तो चमत्कृत हुए ही, पहली पांत में बैठे केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल को मंच पर जाकर कहना पड़ा कि ये विकलांग नहीं बल्कि अलग तरह की प्रतिभा के लोग हैं.
तेज संगीत पर बदनतोड़ जूजू नृत्य करते नाइजीरिया के लुंगी-चश्माधारी दो युवक, जमीन और जांघों पर ताली पीट सौंदर्य का गीत गाती इंडोनेशिया की ह्वीलचेयर सवाल टोली और भूटान के परवान चढ़ते लोकतंत्र का गीत गातीं वहीं की दृष्टाल्पता की शिकार युवती. आयोजक अल्पना नायक ने सोचा भी न था कि शारीरिक और मानसिक विकलांगता के शिकार बच्चों को वे इतनी जल्दी ऐसा अंतरराष्ट्रीय मंच दिला पाएंगी.
आइएएस पति के साथ तबादलों की वजह से कभी जम्मू-कश्मीर तो कभी उत्तराखंड जैसी जगहों पर रहीं 47 वर्षीया ओडीसी नृत्यांगना नायक सातेक साल पहले दिल्ली आई थीं. राजधानी से सटे गाजियाबाद की एक कॉलोनी में छात्रों को नृत्य सिखाते वक्त पड़ोस की एक मां ने नाटकीय-से अंदाज में बड़ी चुनौती उछाल दीः 'मेरे बेटे को भी सिखा पाएंगी?' बेटा यानी तन्मय, उम्र 11 साल और दिमाग 3-4 साल का. हां करके उसे सिखाते हुए 2-3 दिन तक सहमी रहीं वे. हर सुने हुए को वह 3-4 वार दोहराता. ''सब्र का गहरा इम्तहान था वो. लगा कि शायद निबट नहीं पाऊंगी. लेकिन अंदर कोई आवाज थी जो डटे रहने को मजबूर कर रही थी.'' छह महीने में वह खुलकर नाचने लगा तो मां नायक को उसके स्कूल ले गई, ऐसे और बच्चों को 'नई जिंदगी' दिलाने के लिए.{mospagebreak}
आज वे 75-80 बच्चों को ओडीसी तो सिखाती ही हैं, गंभीर विकलांगता वाले बीसेक युवाओं का नृत्य क्रियाओं के जरिए एक तरह से उपचार भी करती हैं. शामक डावर से उन्होंने खुद कंटेंपररी और साल भर के लंदन प्रवास के दौरान पाश्चात्य नृत्य भी सीखा था. कथक और अभिनय की कार्यशालाएं भी की थीं. सामाजिक रूप से उपेक्षित बच्चों के कलात्मक हुनर को निखारने में वह सब उनके लगातार काम आ रहा है.
नृत्य की योग मुद्रा-जिसमें अंगूठे और अनामिका को मिलाते हैं-भी इसमें उनके लिए मददगार साबित हो रही है. 2006 में ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने राष्ट्रपति भवन में एक प्रस्तुति करवाने के बाद नायक को बाकायदा बुलाकर समझया कि ऐसे बच्चों का दायां मस्तिष्क दबा होता है और सांस्कृतिक उपक्रमों में भागीदारी से उसे सक्रिय करने में मदद मिलती है.
नायक ने प्रशिक्षण को उसी लाइन पर रखा. तरकीब कारगर रही. साल भर पहले स्टेज से उतर भागी 17 साल की मूक-बधिर-निष्क्रिय उर्वशी ने पिछले हफ्ते बूमरो-बूमरो गाने पर हाथ नचाते हुए नृत्य किया. नायक ने संस्था का भी नाम अल्पना रखा है यानी एसोसिएशन फॉर लर्निंग परफॉर्मिंग आर्ट्स ऐंड नॉर्मेटिव एक्शन. संभव नाम से शुरू इसके वार्षिक जलसों का यह पांचवां साल था. जटिल किस्म की विकलांगता वाले बच्चों की मदद के लिए अब दुनिया भर से उन्हें बुलावा आना शुरू हो गया है. एक नृत्य गुरु की सब्र और सुकून से की जाने वाली थेरेपी का सुफल है यह.