जेल पर अपने बयान पर उभरे विवाद के बाद संतुलन करने की कवायद के तहत केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि यह फैसला अदालतों को करना होता है कि किसे हवालात में डालना है, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने ही जमानत को नियम और जेल को अपवाद ठहराया है.
खुर्शीद ने कहा था कि न्यायपालिका को देश की राजनीतिक अर्थव्यवस्था को समझने की जरूरत है. अपने इस विवादास्पद बयान के संदर्भ में कल रात मंत्री ने कहा कि लोगों को हवालात में डालने का फैसला मुझे नहीं लेना, यह अदालतों को लेना होता है.
उन्होंने यह भी कहा कि उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद है.’ कानून मंत्री अपनी इस टिप्पणी की पृष्ठभूमि में बोल रहे थे, ‘अगर आप शीर्ष व्यापारियों को जेल में डालेंगे तो क्या निवेश आ पाएगा.’ उच्चतम न्यायालय ने आज इस बयान को चिंताजनक बताया.
खुर्शीद ने कहा कि उनकी टिप्पणी का 2जी मामले से कोई लेना देना नहीं है लेकिन वह प्रश्नकर्ता की इस बात से सहमत हुए कि कई लोग सोचते हैं कि घोटाले में लंबे समय तक हिरासत में रहे लोग अपनी आजादी से महरूम रहे हैं.
खुर्शीद ने कहा कि बदलते समाज में प्रत्येक संस्थान को बदलते वक्त के तकाजों को पूरा करना होता है और अदालतों ने पर्यावरण संरक्षण के मामले में ऐसा किया है जिसके लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि उसी तरह हमारे समय का तकाजा है कि हमें विरोध की कद्र करनी चहिए.
खुर्शीद ने कहा कि यह उच्चतम न्यायालय है बिना यह कहे माओवादी समर्थक विनायक सेन को जमानत दी कि वह निर्दोष हैं.
उन्होंने फैसले को उत्कृष्ट बताते हुए कहा, ‘उन्होंने (शीर्ष अदालत ने) कहा था कि उन पर मुकदमा चलाया जाएगा. यदि वह गलत हैं तो दंडित किया जाएगा. लेकिन उन्हें जेल में रखने की कोई वजह नहीं है. उन्होंने :शीर्ष अदालत ने: उन्हें जमानत दी.’ कानून मंत्री ने कहा, ‘लेकिन जब आर्थिक मुद्दे आते हैं तो क्या उच्चतम न्यायालय विकासशील आर्थिक मुद्दों पर ध्यान देता है जैसे कि हम सब देते हैं.’