पूनम राय सूबेदार ओमकार नाथ राय की पत्नी हैं, जिनके पति की मौत साल 2012 में ड्यूटी पर तैनात रहने के दौरान हो गई. उन्होंने अस्पतालों के खिलाफ एक्शन लेने की प्रशासन से मांग की है. इंडिया टुडे से बातचीत करते हुए पूनम राय ने कहा कि उनका 26 वर्षीय बेटा सुनीत गंभीर रूप से बीमार था, जब वे इलाज के लिए एक प्राइवेट क्षेत्रीय अस्पातल में 5 मई को ले गईं.
डॉक्टरों ने उनसे कहा कि युवक खसरा की चपेट में है, जो अपने आप ठीक हो जाएगा. हालांकि अगले दिन जब युवक की सेहत बिगड़ने लगी तो महिला अपने बेटे को लेकर मिलिट्री अस्पताल गई. अस्पताल के स्टाफ ने ट्रीटमेंट करने से मना कर दिया कि युवक की उम्र 26 वर्ष है, इसलिए उसके लिए फ्री ट्रीटमेंट की सुविधा उपलब्ध नहीं है.
कोरोना पर फुल कवरेज के लिए यहां क्लिक करें
पूनम राय ने कहा, 'मैं उन लोगों से कहती रही कि मैं पूरा पेमेंट करूंगी लेकिन उन्होंने मेरे बच्चे को एडमिट नहीं किया.'
प्राइवेट अस्पातल ने किया रेफर
सुनीत को दूसरे प्राइवेट अस्पताल एसजीएल हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां से उसे सिविल अस्पताल रेफर कर दिया गया. साथ में यह भी कहा कि युवक में कोविड-19 के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, ऐसे में कोविड-19 टेस्ट कराया जाए. पूनम राय ने कहा कि जब सिविल अस्पताल ने ट्रीटमेंट करने से मना कर दिया तो वे अपने बेटे को लेकर गुरुनानक मिशन हॉस्पिटल लेकर गईं, जहां से फिर से सिविल अस्पताल युवक को रेफर किया गया.
अस्पताल ने बरती लापरवाही!
उन्होंने कहा, 'सिविल अस्पताल के स्टाफ ने उन्हें ड्रिप चढ़ाया और कहा कि वे तब तक कोई दवाई नहीं देनी शुरू करेंगे जब तक की कोविड-19 की रिपोर्ट सामने नहीं आ जाती. इसकी वजह से युवक का सेल काउंट बिगड़ता गया और 8 मई को मौत हो गई. यह मामला पूरी तरह से चिकित्सीय लापरवाही का है.
देश-दुनिया के किस हिस्से में कितना है कोरोना का कहर? यहां क्लिक कर देखें
उन्होंने यह भी कहा कि अस्पताल प्रशासन ने बेटे का शव देने से यह कहते हुए मना किया कि युवक का कोविड-19 टेस्ट की रिपोर्ट अभी नहीं आई है. मौत के बाद भी सिविल अस्पताल के स्टाफ ने शवगृह में युवक के शव को रोके रखा. युवक के परिजनों ने यह भी आरोप लगाया कि अस्पातल ने 6 दिन कोविड-19 टेस्ट की रिपोर्ट छिपाकर रखी.
मौत के 5 दिन बाद भी अस्पाताल ने नहीं सौंपा शव
पूनम राय ने कहा, 'सिविल अस्पातल ने मेरे बच्चे का इलाज करने से मना कर दिया. मौत के 5 दिन बीत जाने के बाद भी मेरे बच्चे का शव वापस नहीं दिया गया. अस्पताल प्रशासन को इस बात की जानकारी थी कि मेरे बच्चे को कोरोना नहीं है. यह चिकित्सीय लापरवाही का मामला है. मैं अधिकारियों से अपील करती हूं कि स्टाफ की जवाबदेही तय हो, अगर सही वक्त पर इलाज किया गया होता तो शायद मेरे बच्चे की जान बच सकती थी.'
कोरोना कमांडोज़ का हौसला बढ़ाएं और उन्हें शुक्रिया कहें...
अस्पताल प्रशासन ने किया खंडन
जब जालंधर सिविल अस्पताल के मेडिकल सुप्रीटेंडेंट हरिंदर पाल से संपर्क किया गया तो उन्होंने आरोपों का खंडन किया. उन्होंने कहा कि युवक को गंभीर हालत में अस्पताल में लाया गया था. उन्होंने कहा, 'मरीज की हालत गंभीर थी, एडमिट होने के 2 दिन बाद ही उसकी मौत हो गई. आरोप तथ्यहीन हैं.'