scorecardresearch
 

सिव‍िल सर्व‍िसेज पर इंजीनियर का दबदबा, ये नया बदलाव फायदेमंद है या नहीं, समझ‍िए

भारत की सिविल सर्विसेज में इंजीनियरों का दबदबा लगातार बढ़ता जा रहा है. इससे ह्यूमैनिटीज यानी आर्ट्स बैकग्राउंड वाले छात्रों की मौजूदगी घट रही है. इस बदलाव ने चिंता बढ़ा दी है कि कहीं भारत की नौकरशाही से वह नजरिया और संवेदनशीलता तो नहीं खो रही, जो समाज विज्ञान और कला पृष्ठभूमि के लोग लेकर आते थे.

Advertisement
X
स‍िव‍िल सेवाओं में ह्यूमैनिटीज यानी आर्ट्स बैकग्राउंड वाले छात्रों की मौजूदगी घट रही (प्रतीकात्मक तस्वीर)
स‍िव‍िल सेवाओं में ह्यूमैनिटीज यानी आर्ट्स बैकग्राउंड वाले छात्रों की मौजूदगी घट रही (प्रतीकात्मक तस्वीर)

कभी सोचा है कि आख‍िर क्यों इंजीनियर ज्यादा IAS बन रहे हैं? कभी 1980–90 के दशक में सिविल सर्विसेज में इतिहास, राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र जैसे विषयों के ग्रेजुएट्स की तगड़ी मौजूदगी होती थी. लेकिन आज तस्वीर बदल गई है. ज्यादातर सफल उम्मीदवार तकनीकी बैकग्राउंड से आते हैं. अकेले इंजीनियरिंग वाले उम्मीदवार कुल सफल कैंडिडेट्स का करीब दो-तिहाई हिस्सा बन गए हैं.

संसद की एक समिति की रिपोर्ट ने इस imbalance पर चिंता जताई है. रिपोर्ट का कहना है कि देश की नौकरशाही में विविधता घट रही है, और इसके साथ ही वह मानवीय संवेदनाएं और अलग सोच भी कम हो रही है, जो पहले ह्यूमैनिटीज वाले अफसर लाते थे.

आंकड़े क्या कहते हैं?

इंजीनियर: 2011 में 46% सफल उम्मीदवार इंजीनियर थे, जो 2020 तक बढ़कर 65% हो गए.
डॉक्टर: 2011 में 14% से घटकर 2020 में सिर्फ 4% रह गए.
ह्यूमैनिटीज: 2011 में 27% से घटकर 2020 में 23% पर आ गए.
2017–21 के बीच 76% उम्मीदवार साइंस स्ट्रीम (इंजीनियरिंग, मेडिकल, साइंस) से आए, जबकि सिर्फ 23.6% ह्यूमैनिटीज बैकग्राउंड से.

Advertisement

बड़ा मोड़:  CSAT का असर

2011 में सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट (CSAT) लागू हुआ. इसके बाद हालात तेजी से बदले.
2009 में जहां ह्यूमैनिटीज वालों की सफलता 30% थी, वह 2012 तक घटकर 15% रह गई.
इसी दौरान इंजीनियरिंग वाले उम्मीदवार लगभग 50% तक पहुंच गए.

ह्यूमैनिटीज के छात्रों का कहना है कि CSAT के फॉर्मेट ने गैर-तकनीकी और नॉन-इंग्लिश मीडियम उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचाया.

क्यों चिंता की बात है?

सोच में विविधता की कमी: ह्यूमैनिटीज बैकग्राउंड वाले अफसर अक्सर संवेदनशील और समाज से जुड़ी बारीकियों को बेहतर समझते हैं.

सेक्टोरल नुकसान: अच्छी-खासी संख्या में डॉक्टर और इंजीनियर नौकरशाही में जाने लगे हैं, जिससे हेल्थकेयर और इंजीनियरिंग जैसे सेक्टर्स को टैलेंट की कमी झेलनी पड़ रही है.

नीतियों में एकरूपता का खतरा: अगर नौकरशाही में ज्यादातर तकनीकी लोग होंगे, तो समाज और संस्कृति की दृष्टि से जरूरी पहलू पीछे छूट सकते हैं.

समाधान क्या हो सकता है?

विशेषज्ञों का मानना है कि CSAT के ढांचे को फिर से देखा जाए ताकि तकनीकी बैकग्राउंड का पक्षपात कम हो.  साथ ही डोमेन एक्सपर्ट्स के लिए अलग सर्विस ट्रैक बनाए जाएं. हर स्ट्रीम से संतुलित संख्या में उम्मीदवारों को मौका दिया जाए.

बता दें कि दुनिया के कई देशों में सोशल साइंस और लिबरल आर्ट्स बैकग्राउंड वाले लोगों को खास तवज्जो दी जाती है, क्योंकि वे नीतियों को सिर्फ लागू ही नहीं करते, बल्कि समाज से जोड़कर देखते हैं. भारत में भी अगर ऐसा संतुलन बनाया जाए, तो हमारी नौकरशाही सिर्फ तकनीकी सॉल्यूशन देने वाली नहीं रहेगी, बल्कि संवेदनशील और जमीनी हकीकत समझने वाली भी बनेगी क्योंकि आखिरकार गवर्नेंस सिर्फ एफिशियंसी (कार्यक्षमता) से नहीं, बल्कि इक्विटी (न्याय), कॉन्टेक्स्ट (परिस्थिति) और विजन (दृष्टि) से भी तय होती है.

Advertisement

---- समाप्त ----
र‍िपोर्ट: मेघा चतुर्वेदी
Live TV

TOPICS:
Advertisement
Advertisement