पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) रंजन गोगोई ने अपनी आत्मकथा 'जस्टिस फॉर द जज' में उस घटना का जिक्र किया है, जब उन्होंने अपने तीन साथियों जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ के साथ मिलकर 12 जनवरी 2018 की सुबह प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था. यह प्रेस कॉन्फ्रेंस जस्टिस चेलमेश्वर के घर पर हुई थी.
किताब में प्रेस कॉन्फ्रेंस से ठीक पहले की घटनाओं और जस्टिस लोया की मौत पर जनहित याचिका को आवंटित किए जाने को लेकर तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के साथ हुई बातचीत का पूरा जिक्र है. उन्होंने लिखा है कि प्रेस कॉन्फ्रेंस के आयोजन की जरूरत जस्टिस लोया की मौत पर जनहित याचिकाओं के आवंटन को लेकर की गई थी.
उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि जस्टिस मिश्रा अपने कार्यकाल के दौरान जनहित याचिकाओं को बिना किसी निश्चित मानदंड या मानक के किसी भी बेंच को सौंप रहे थे. यह सीजेआई की व्यक्तिगत पसंद बन चुकी थी. जब इस तरह की कई याचिकाओं के बारे में पता चला तब उन्होंने इसका विरोध किया.
उन्होंने तत्कालीन सीजेआई मिश्रा को उनके सहयोगियों की भावनाओं के बारे में बताया था, लेकिन उन्होंने (दीपक मिश्रा) ने कुछ भी करना जरूरी नहीं समझा और न्यायाधीश लोया मामले को न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा (उस समय न्यायाधीशों की वरिष्ठता के क्रम में दसवें नंबर पर) की अध्यक्षता वाली पीठ को सौंप दिया.
कई हफ्तों की तैयारी के बाद जज लोया के मामले की सुनवाई वाले दिन ही सुबह न्यायमूर्ति लोकुर, न्यायमूर्ति जोसेफ और न्यायमूर्ति चेलमेश्वर, सभी ने न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध होने वाले विवादास्पद मुद्दों पर आवंटित जनहित याचिकाओं पर अपनी आपत्ति जाहिर की. उस दिन सुबह 10:00 बजे चारों जजों के बीच फोन पर सहमति बनी, वे सीजेआई मिश्रा के पास गए और उन्हें जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच से केस वापस लेने के लिए कहा.
पूर्व न्यायमूर्ति गोगोई ने अपनी किताब में खुलासा किया है कि, 'हम मुख्य न्यायाधीश से मिलने गए, जिन्होंने हमारे अनुरोध पर विचार नहीं किया. जस्टिस चेलमेश्वर वॉकआउट कर गए लेकिन मैं वहां मौजूद रहा और मुख्य न्यायाधीश से गुहार लगाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.'
उन्होंने किताब में आगे लिखा है, 'मेरे पास जस्टिस लोकुर और जोसेफ के साथ चीफ जस्टिस के चैंबर को छोड़ने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था. इसके बाद हम सब जस्टिस चेलमेश्वर के चैंबर में गए. उन्होंने कहा कि हमें इस मुद्दे पर प्रेस को संबोधित करना चाहिए. हम सब सहमत हो चुके थे. जस्टिस गोगोई ने यह भी लिखा है कि 12 जनवरी को जब वे जस्टिस चेलमेश्वर के आवास पर पहुंचे और प्रेस को देखा तो हड़बड़ा गए.'
12 जनवरी की घटनाओं के बारे में उनकी आत्मकथा का कुछ अंश...
किताब में लिखा गया है, 12 जनवरी 2018 शुक्रवार, एक अलग दिन था. दोपहर 12 बजे के करीब कई तरह के काम के बाद मैं जस्टिस चेलमेश्वर के आवास पर गया. मैंने वहां जो देखा उसने मुझे झकझोर दिया. प्रेस पूरी तैयारी के साथ मौजूद थी. कई कैमरे लगाए गए थे. बाहर कई ओबी वैन खड़ी थीं. मुझे इसकी आशा नहीं थी. अब कोई रास्ता नहीं था. मैं पीछे नहीं हटना चाहता था. मैं प्रेस को संबोधित करने के लिए प्रतिबद्ध था और मेरा मानना है कि परिस्थितियों को देखते हुए, यह करना सही था, हालांकि यह बहुत ही असामान्य था. हमने महसूस किया कि सुप्रीम कोर्ट में चीजें सही नहीं थीं और खुद जस्टिस मिश्रा द्वारा उठाए गए कई सुधारात्मक कदमों से हम सही साबित हुए. इसके बाद, वह किसी भी मामले के आवंटन की अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए सावधान और सचेत हो गए.
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