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RSS पर 7 नवंबर 1966 का फैसला क्या था? इंदिरा काल के उस फैसले को समझिए जिसे 58 साल बाद मोदी सरकार ने रद्द कर दिया

7 नवंबर 1966 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था. यह आदेश दिल्ली में हुए गौ-रक्षा आंदोलन के दौरान हिंसा के बाद आया था, जिसमें कई संत और गौ-भक्त मारे गए थे.

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शिविर के दौरान अपना कौशल दिखाते आरएसएस के वॉलिंटियर्स.
शिविर के दौरान अपना कौशल दिखाते आरएसएस के वॉलिंटियर्स.

अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारी भी हिस्सा ले सकेंगे. केंद्र सरकार ने 58 साल पुराने प्रतिबंध को हटा लिया है. आदेश में कहा गया है, उपर्युक्त निर्देशों की समीक्षा की गई और यह निर्णय लिया गया है कि 30 नवंबर 1966, 25 जुलाई 1970 और 28 अक्टूबर 1980 के संबंधित कार्यालय ज्ञापनों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उल्लेख हटा दिया जाए.

इस संबंध में बीजेपी नेता अमित मालवीय ने कहा, 58 साल पहले 1966 में सरकारी कर्मचारियों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इस असंवैधानिक आदेश को मोदी सरकार ने वापस ले लिया है. मूल आदेश पहले ही पारित नहीं किया जाना चाहिए था.

पुलिस फायरिंग में कई लोग मारे गए थे

मालवीय का कहना था कि ये प्रतिबंध इसलिए लगाया गया था, क्योंकि 7 नवंबर 1966 को संसद पर बड़े पैमाने पर गौ-हत्या विरोधी विरोध प्रदर्शन हुआ था. आरएसएस-जनसंघ ने लाखों की संख्या में समर्थन जुटाया. पुलिस फायरिंग में कई लोग मारे गए.

इंदिरा सरकार ने प्रतिबंध हटाने का दिया था ऑफर?

मालवीय ने आगे कहा, 30 नवंबर 1966 को आरएसएस-जनसंघ के प्रभाव को देखते हुए इंदिरा गांधी (तत्कालीन प्रधानमंत्री) ने सरकारी कर्मचारियों पर आरएसएस के कार्यक्रमों में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया था. मालवीय का कहना था कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी खुद फरवरी 1977 में आरएसएस के पास पहुंचीं और अपने चुनाव अभियान के लिए समर्थन के बदले में नवंबर 1966 में लगाए गए प्रतिबंध को हटाने की पेशकश की. इसलिए, बालक बुद्धि एंड कंपनी को अंतहीन शिकायत करने से पहले कांग्रेस का इतिहास जानना चाहिए.

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1966 में क्या आदेश दिया था?

दरअसल, 7 नवंबर 1966 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था. यह आदेश दिल्ली में हुए गौ-रक्षा आंदोलन के दौरान हिंसा के बाद आया था, जिसमें कई संत और गौ-भक्त मारे गए थे. इस हिंसा के बाद सरकार ने निर्णय लिया कि सरकारी कर्मचारी RSS के कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो सकते हैं. 

इस आदेश का उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों को किसी भी सांप्रदायिक या राजनीतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने से रोकना था, जिससे सरकारी तंत्र की निष्पक्षता और समर्पण बनाए रखा जा सके. तत्कालीन सरकार का कहना था कि यह निर्णय इसलिए लिया गया ताकि सरकारी कर्मचारी किसी भी प्रकार के सांप्रदायिक संगठन की गतिविधियों से दूर रहें और सरकारी प्रशासन में निष्पक्षता और स्वच्छता बनी रहे.

1966 में क्या हुआ था?

1966 में 7 नवंबर को संसद के घेराव का मुख्य कारण गौ रक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर गाय की हत्या पर प्रतिबंध लगाने की मांग थी. इस आंदोलन का आयोजन सर्वदलीय गो-रक्षा महासमिति द्वारा किया गया था, जिसमें कई हिंदू संगठन और साधु संत शामिल थे. इस आंदोलन में करीब 125,000 लोग शामिल हुए थे, जिन्होंने दिल्ली की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया. आंदोलन के दौरान हिंसा भड़क उठी, जिसके चलते पुलिस ने आंसू गैस, लाठीचार्ज और गोलीबारी का सहारा लिया. इस घटना में एक पुलिसकर्मी और सात आंदोलनकारी मारे गए थे. इसके चलते तत्कालीन गृह मंत्री गुलजारीलाल नंदा को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था. यह विरोध-प्रदर्शन केएन गोविंदाचार्य के गोरक्षा आंदोलन समेत उत्तर भारत के कई हिंदुत्व और गौरक्षा समर्थक संगठनों द्वारा आयोजित किया गया था. इस आयोजन को विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने भी समर्थन दिया था.

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कांग्रेस ने क्या कहा है...

रविवार को कांग्रेस ने पिछले सप्ताह जारी एक कथित सरकारी आदेश का हवाला दिया और दावा किया कि आरएसएस के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर प्रतिबंध हटा दिया गया है. कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा जारी 9 जुलाई का नोट शेयर किया. जयराम रमेश ने कहा, फरवरी 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने RSS पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद अच्छे आचरण के आश्वासन पर प्रतिबंध को हटाया गया. इसके बाद भी RSS ने नागपुर में कभी तिरंगा नहीं फहराया. 1966 में RSS की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगाया गया था और यह सही निर्णय भी था. यह 1966 में बैन लगाने के लिए जारी किया गया आधिकारिक आदेश है. 4 जून 2024 के बाद स्वयंभू नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री और RSS के बीच संबंधों में कड़वाहट आई है. 9 जुलाई 2024 को 58 साल का प्रतिबंध हटा दिया गया जो अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान भी लागू था. मेरा मानना है कि नौकरशाही अब निक्कर में भी आ सकती है।

कांग्रेस नेता ने 30 नवंबर 1966 के मूल आदेश का स्क्रीनशॉट भी शेयर किया, जिसमें सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस और जमात-ए-इस्लामी के कार्यक्रमों से जुड़ने पर प्रतिबंध लगाया गया था. कांग्रेस के मीडिया एवं प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने आदेश का स्क्रीनशॉट साझा किया और कहा, 58 साल पहले केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में हिस्सा लेने पर प्रतिबंध लगाया था. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने आदेश वापस ले लिया है.

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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने क्या कहा....

''1947 में आज ही के दिन भारत ने अपना राष्ट्रीय ध्वज अपनाया था. RSS ने तिरंगे का विरोध किया था और सरदार पटेल ने उन्हें इसके खिलाफ चेतावनी दी थी. 4 फरवरी 1948 को गांधी जी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने RSS पर प्रतिबंध लगा दिया था. मोदी जी ने 58 साल बाद, सरकारी कर्मचारियों पर RSS की गतिविधियों में शामिल होने पर 1966 में लगा प्रतिबंध हटा दिया है. हम जानते हैं कि पिछले 10 वर्षों में भाजपा ने सभी संवैधानिक और स्वायत्त संस्थानों पर संस्थागत रूप से कब्ज़ा करने के लिए RSS का उपयोग किया है. मोदी जी सरकारी कर्मचारियों पर RSS की गतिविधियों में शामिल होने पर लगा प्रतिबंध हटा कर सरकारी दफ़्तरों के कर्मचारियों को विचारधारा के आधार पर विभाजित करना चाहते हैं. यह सरकारी दफ़्तरों में लोक सेवकों के निष्पक्षता और संविधान के सर्वोच्चता के भाव के लिए चुनौती होगा. सरकार संभवतः ऐसे कदम इसलिए उठा रही है क्योंकि जनता ने उसके संविधान में फेर-बदल करने की कुत्सित मंशा को चुनाव में परास्त कर दिया. चुनाव जीत कर संविधान नहीं बदल पा रहे तो अब पिछले दरवाजे सरकारी दफ्तरों पर RSS का कब्ज़ा कर संविधान से छेड़छाड़ करेंगे. यह RSS द्वारा सरदार पटेल को दी गई उस माफ़ीनामा व आश्वासन का भी उल्लंघन है जिसमें उन्होंने RSS को संविधान के अनुरूप, बिना किसी राजनीतिक एजेंडे के एक सामाजिक संस्था के रूप में काम करने का वादा किया था. विपक्ष को लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिये आगे भी संघर्ष करते रहना होगा.''

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बसपा प्रमुख मायावती ने क्या कहा...

''सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस की शाखाओं में जाने पर 58 वर्ष से जारी प्रतिबंध को हटाने का केंद्र का निर्णय देशहित से परे, राजनीति से प्रेरित संघ तुष्टीकरण का निर्णय है, ताकि सरकारी नीतियों व इनके अहंकारी रवैयों आदि को लेकर लोकसभा चुनाव के बाद दोनों के बीच तीव्र हुई तल्खी दूर हो. सरकारी कर्मचारियों को संविधान व कानून के दायरे में रहकर निष्पक्षता के साथ जनहित व जनकल्याण में कार्य करना जरूरी होता है. जबकि कई बार प्रतिबन्धित रहे आरएसएस की गतिविधियां काफी राजनीतिक ही नहीं बल्कि पार्टी विशेष के लिए चुनावी भी रही हैं. ऐसे में यह निर्णय अनुचित, तुरंत वापस हो.''

इंदिरा गांधी कब प्रधानमंत्री रहीं?

इंदिरा गांधी साल 1966 से 1977 तक लगातार प्रधानमंत्री रहीं. उसके बाद वे 1980 से लेकर 1984 में राजनैतिक हत्या तक देश की प्रधानमंत्री रहीं. वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं. इंदिरा को सितंबर 1967 से मार्च 1977 तक परमाणु ऊर्जा मंत्री बनाया गया. 5 सितंबर 1967 से 14 फरवरी 1969 तक विदेश मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाला. इंदिरा ने जून 1970 से  नवंबर 1973 तक गृह मंत्रालय और जून 1972 से मार्च 1977 तक अंतरिक्ष मामले मंत्रालय का प्रभार संभाला. जनवरी 1980 से योजना आयोग की अध्यक्ष रहीं. 

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