स्विट्जरलैंड के वालिस इलाके में ग्लेशियर टूटने से प्लेटों गांव नष्ट हो गया, इससे पहले 300 लोगों को सुरक्षित निकाला गया था. यह घटना, जिसे "प्रकृति के साथ खिलवाड़ का नतीजा" और ग्लोबल वार्मिंग का ट्रेलर बताया गया है, पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी है.
हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर पिघलने से भारत समेत आठ देशों के लगभग दो अरब लोगों की जल और खाद्य सुरक्षा पर गंभीर संकट मंडरा रहा है.
प्रकृति के साथ इंसानों के खिलवाड़ अफसोस पैदा करने वाली हैं. पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग का असर देखने को मिल रहा है और इसका एक ट्रेलर स्विट्जरलैंड में देखने को मिला. जहां ग्लेशियर के गिरने से पूरा गांव तबाह हो गया. तबाही की ऐसी तस्वीरें सामने आईं हैं जो आपकी रूह कांप जाएंगी.
स्विट्जरलैंड का तबाह हुआ गांव
स्विट्जरलैंड के वालिस इलाके में एक भयानक प्राकृतिक आपदा ने प्लेटेन गांव को अपनी चपेट में ले लिया था. बर्फ के ग्लेशियर के अचानक टूटने से चट्टानें, बर्फ और मलबा गांव पर गिर पड़ा, जिससे पूरा गांव तबाह हो गया.
अच्छी बात यह रही कि इस हादसे में गांव के 300 लोगों को पहले ही सुरक्षित निकाल लिया गया था.
वैज्ञानिकों ने पहले ही आपदा की आशंका जताई थी, जिसके बाद यहां से लोगों को हटाकर प्रशासन सतर्क हो गया था.
वैज्ञानिकों की चेतावनी और तबाही की गति
जलवायु परिवर्तन के कारण भूमि की परतों में अस्थिरता आ रही है. पर्माफ्रॉस्ट यानी जमी हुई ज़मीन अब स्थिर नहीं रह गई है. ग्लेशियरों पर जब चट्टानों का दबाव बढ़ता है तो वे तेज़ी से खिसकने लगते हैं. लोगों को पहले ही इस क्षेत्र से हटा लिया गया था. पहले सामने की परत खिसकती है और फिर धीरे-धीरे पूरी ढलान.
ग्लेशियर टूटने के पीछे की वजह
अब सवाल है कि आखिर यह तबाही आई कैसे? इसका संकेत पहले से ही था.
बर्ज ग्लेशियर पिछले एक दशक से स्थिर था, जबकि बाकी ग्लेशियर पीछे हट रहे थे. इसका कारण जलवायु परिवर्तन है. जिसने पर्माफ्रॉस्ट यानी जमी हुई मिट्टी को अस्थिर कर दिया.
इससे चट्टानों की अस्थिरता बढ़ी और ग्लेशियर पर भारी मलबा जमा हुआ, जिसका वजन करीब 30,00,000 टन प्रति घनमीटर था, जो तबाही में तब्दील हो गया.
ग्लोबल वार्मिंग और उपाय
जलवायु परिवर्तन निश्चित रूप से इन बड़े बदलावों का एक कारण है जो हम पहाड़ों में देख रहे हैं.
हालांकि हम यह नहीं कह सकते कि इसी ने यह विशेष घटना उत्पन्न की, लेकिन हमें ग्लोबल वार्मिंग को कम करने की दिशा में कदम उठाने होंगे. इसका मतलब है कि हमें हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कम करना होगा.
सेटेलाइट से समझिए तबाही
अब स्विट्जरलैंड में आई तबाही को सेटेलाइट तस्वीरों से समझने की कोशिश करते हैं. आजतक को प्लैनेट लैब्स पीबीसी, एक अमेरिकी कंपनी से सैटेलाइट इमेजरी प्राप्त हुई है. यह उच्च-रिज़ॉल्यूशन सैटेलाइट इमेज दिखाती है कि बलेटन गांव, स्विट्जरलैंड में भूस्खलन कैसे हुआ.
केवल स्विट्जरलैंड नहीं, पूरी दुनिया पर असर
यह तबाही किसी एक क्षेत्र या देश तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया पर इसका असर दिख रहा है. हिंदू कुश में भी हालात तनाव पूर्ण होते जा रहे हैं जहां आठ देश और करीब दो अरब लोगों की आबादी पर खतरा मंडरा रहा है, जिसमें भारत भी शामिल है.
उत्तराखंड त्रासदी की तस्वीरें आज भी रूह कंपा देती हैं, जिसमें करीब 6000 लोगों की जान चली गई थी. 2023 में सिक्किम में ग्लेशियर की बाढ़ आई, जिसमें करीब 100 लोगों की मौत हो गई. अब समय के साथ ऐसी घटनाएं आम होती जा रही हैं.
हिमालय में बढ़ते एवलांच
हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर फटने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. अब सवाल यह है कि आखिर एवलांच क्यों बढ़ रहे हैं? भूस्खलन की घटनाएं क्यों तेज हो रही हैं? क्यों ग्लेशियर गिर रहे हैं? हिमालय के आसपास इसका कितना प्रभाव पड़ेगा? यह एक चेतावनी है जो प्रकृति इंसानों को दे रही है.
हिमालय पर मंडराता खतरा
दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला हिमालय भी अब खतरे में है.
एक नए अध्ययन के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जाए तो वैश्विक ग्लेशियर द्रव्यमान का 54 फीसदी हिस्सा बचाया जा सकता है.
वर्तमान स्थिति में 2.7 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ रहा है, जिससे सिर्फ 24 फीसदी हिस्सा ही बचेगा.
हिमालय तेजी से ग्लेशियर खो देगा और झीलें फटने की घटनाएं और भी घातक होंगी.
ग्लेशियर और नदियों का संबंध
जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फ तेज़ी से पिघल रही है. जहां-जहां बर्फ पिघल रही है, वहां झीलें बन रही हैं. हिमालय क्षेत्र में जब ग्लेशियर पीछे हटते हैं तो उनके आगे झीलें बनती हैं, जो खतरनाक होती हैं.
हिंदू कुश से भारत और नेपाल सहित आठ देशों में दो अरब लोगों तक नदियों का पानी पहुंचता है. लेकिन अब यह संकट बढ़ता जा रहा है.
पर्माफ्रॉस्ट और अदृश्य खतरा
ग्लेशियरों के नीचे पर्माफ्रॉस्ट यानी जमी हुई मिट्टी होती है, जो अब वैश्विक तापवृद्धि के कारण अस्थिर हो रही है. इससे कई प्राकृतिक आपदाएं हो रही हैं. ग्लेशियर बहुत संवेदनशील होते हैं और नदियों का स्रोत भी. हिंदू कुश में सर्दियों की बर्फ अब या तो तेजी से पिघल रही है या सामान्य से कम गिर रही है.
नदियों पर खतरा
ग्लेशियर से निकलने वाली गंगा, यमुना और सिंधु जैसी नदियों का प्रवाह अब कम हो रहा है.
यदि ग्लेशियर नहीं रहे तो इन नदियों में पानी लगातार घटता जाएगा, जिससे 1.3 अरब लोगों की जीवन रेखा प्रभावित होगी. रिपोर्ट के अनुसार, बर्फ पिघलने से नदी घाटियों में सालाना पानी का 23% योगदान होता है.
हालांकि इस साल बर्फ की चादर सामान्य से 23.6% कम थी, जो पिछले 23 वर्षों में सबसे कम है. गंगा घाटी में यह 24.1% और ब्रह्मपुत्र में 27.9% कम रही. मेकॉन्ग और साल्वीन घाटियों में यह कमी 51.9% और 48.3% रही है.

भविष्य की चेतावनी
काठमांडू स्थित अंतर सरकारी संगठन आईसीआईएमओडी (ICIMOD) ने चेतावनी दी है कि हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में बर्फ की स्थिरता चिंताजनक रूप से कम हो रही है.
ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने से न केवल जल आपूर्ति खतरे में है, बल्कि बाढ़, भूस्खलन और अस्थिरता का भी खतरा बढ़ गया है.
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यही रुझान जारी रहा तो आने वाले दशकों में एशिया की दो अरब से अधिक आबादी की जल और खाद्य सुरक्षा पर गहरा असर पड़ेगा.
चरम मौसमी घटनाओं की चेतावनी
क्लाइमेट चेंज के कारण दो प्रमुख समस्याएं बढ़ी हैं — अतिवृष्टि और अनावृष्टि.
अतिवृष्टि यानी जब पानी की ज़रूरत नहीं होती तब अत्यधिक वर्षा, और अनावृष्टि यानी ज़रूरत के समय सूखा.
इससे जलवायु व्यवस्था अस्थिर होती जा रही है और दोनों ही स्थितियां—बाढ़ और सूखा—बढ़ती जा रही हैं.