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राजनीतिक दलों को POSH एक्ट में नहीं ला सकते... इससे बढ़ सकती है ब्लैकमेलिंग: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को यौन उत्पीड़न से महिलाओं की सुरक्षा (POSH) कानून के तहत 'कार्यस्थल' मानने से इनकार कर दिया है. अदालत ने कहा कि राजनीतिक पार्टी में शामिल होना नौकरी नहीं है और वहां कोई 'वेतन' नहीं मिलता है. कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसा किया गया तो 'ब्लैकमेल' के मामले बढ़ जाएंगे.

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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला. (photo: ITG)
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला. (photo: ITG)

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें वर्क प्लेस (कार्यस्थल) पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं के संरक्षण (POSH) अधिनियम 2013 के दायरे को राजनीतिक दलों तक विस्तार करने की मांग की गई थी. सीजेआई ने कहा कि राजनीतिक दल को वर्क प्लेस के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि राजनीतिक दल में शामिल होना कोई रोजगार नहीं है.

याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि राजनीतिक दलों को कार्यस्थल कैसे माना जा सकता है? किसी पार्टी में शामिल होना रोजगार नहीं है.

पैदा हो सकती है ब्लैकमेल की स्थिति: SC

उन्होंने आगे जोड़ा कि इस तरह का विस्तार भानुमती का पिटारा खोल देगा...और इससे ब्लैकमेलिंग की स्थिति पैदा हो सकती है, क्योंकि किसी भी व्यक्ति के राजनीतिक दल में शामिल होने को नौकरी नहीं माना जा सकता, जहां कोई भुगतान नहीं होता.

याचिकाकर्ता वकील योगमाया एमजी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने तर्क दिया कि POSH अधिनियम के तहत पीड़ित महिला की परिभाषा बहुत व्यापक है, जिसमें न केवल कार्यरत बल्कि गैर-कार्यरत महिलाएं भी शामिल हैं.

याचिकाकर्ता की दलीलें

गुप्ता ने कहा, 'हाईकोर्ट का ये कहना कि ‘जब तक आप कार्यरत नहीं हैं’ ये अधिनियम लागू नहीं होगा, ये कानून की भावना के खिलाफ है.' हालांकि, CJI गवई, जस्टिस विनोद चंद्रन और जस्टिस ए.एस. चंदूरकर की पीठ ने इस परिभाषा को इस तरह विस्तार देने से इनकार कर दिया.

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केरल HC के फैसले को चुनौती

ये दूसरा मौका है जब सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों में कार्यस्थल यौन उत्पीड़न के मुद्दे पर विचार करने से इनकार किया हो. अगस्त 2025 में योगमाया एम.जी. द्वारा दायर एक जनहित याचिका (PIL) को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की थी कि राजनीतिक दलों को POSH अधिनियम के तहत कार्यस्थल माना जाए. इस याचिका पर भी कोर्ट ने विचार करने से इनकार कर दिया. इसके बाद याचिकाकर्ता ने केरल हाईकोर्ट में समान याचिका दायर की, जिसे हाईकोर्ट ने भी अस्वीकार कर दिया गया. 

वहीं, सोमवार को सीजेआई पीठ के समक्ष जिस याचिका पर सुनवाई हुई, वह केरल हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली एक अपील थी.

याचिका में चौंकाने वाले आंकड़े

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में चौंकाने वाले आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा गया कि भारत में 45% महिला राजनेताओं ने सहकर्मी राजनेताओं और राजनीतिक कार्यकर्ताओं से शारीरिक उत्पीड़न और 49% ने मौखिक उत्पीड़न की शिकायत की है. 

याचिका में बताया गया कि भारत में 2,764 से अधिक पंजीकृत राजनीतिक दल हैं, जिनमें 57 राज्य स्तरीय दल शामिल हैं, लेकिन केवल कुछ ही दलों में आंतरिक शिकायत समितियां (ICC) स्थापित हैं. याचिका ने 2013 के यूएन वीमेन अध्ययन और 2016 के इंटर-पार्लियामेंट्री यूनियन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि राजनीतिक क्षेत्रों में मनोवैज्ञानिक और यौन उत्पीड़न कोई अलग-थलग घटना नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित समस्या है.

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याचिका में आगे तर्क दिया गया था कि राजनीतिक कार्य एक प्रकार का रोजगार या जुड़ाव है और इसे POSH अधिनियम के तहत मान्यता दी जानी चाहिए, ताकि महिलाओं को संरक्षण और जवाबदेही सुनिश्चित हो. याचिकाकर्ता ने मांग की कि राजनीतिक दलों को कार्यस्थल के रूप में परिभाषित कर उनके लिए ICC गठन अनिवार्य किया जाए.

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