सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि राज्य विधानसभाओं में पास हुए बिलों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति को मंजूरी देने के लिए अदालत कोई समयसीमा तय नहीं कर सकती. यह आदेश तब आया है जब चार विपक्ष-शासित राज्यों में कम से कम 33 बिल मंजूरी के लिए लंबित पड़े हैं. लंबित 33 बिलों में 19 पश्चिम बंगाल, 10 कर्नाटक, 3 तेलंगाना और कम से कम 1 केरल के हैं.
हालांकि, विशेषज्ञों ने कहा कि तमिलनाडु के वे 10 बिल, जिन्हें जस्टिस जे. बी. पारदीवाला की बेंच ने 8 अप्रैल को अनुच्छेद 142 के तहत ‘माना हुआ मंजूर’ (deemed assent) दिया था, इस फैसले से प्रभावित नहीं होंगे क्योंकि वे कानून बनकर राजपत्र में प्रकाशित हो चुके हैं.
पश्चिम बंगाल
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा अध्यक्ष बिमन बनर्जी ने कहा कि राज्य विधानसभा में पास हुए कम से कम 19 बिल अभी भी राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, 'जब कोई बिल बिना किसी स्पष्टता के अटका रहता है तो उसका महत्व खत्म हो जाता है. बिल लोगों के हित में लाए जाते हैं... बहस होती है, असहमति दर्ज होती है... पास होने के बाद इसे राज्यपाल के पास भेजा जाता है. राज्यपाल इसे मंजूर कर सकते हैं, नामंजूर कर सकते हैं या सुझाव देकर लौटा सकते हैं. अगर विधानसभा उसे वापस पास कर दे, तो फिर राज्यपाल को मंजूरी देनी ही होती है.'
कर्नाटक
कर्नाटक के 10 बिल राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं. इनमें वह बिल भी शामिल है जिसमें मुस्लिम समुदाय को सिविल वर्क्स के ठेकों में 4 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव है.
कर्नाटक सरकार के मुताबिक, राज्यपाल के पास फिलहाल कोई बिल लंबित नहीं है.
तेलंगाना
तेलंगाना में कांग्रेस सरकार के कई प्रस्ताव राज्यपाल के पास लंबित बताए जा रहे हैं, जिनमें सबसे बड़ा है BC कोटे को 42% तक बढ़ाने वाला प्रस्ताव. सरकार ने 26 सितंबर को स्थानीय निकायों में BCs को 42% आरक्षण देने का आदेश जारी किया था, जो पहले से पास दो बिलों पर आधारित है. ये बिल अभी राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं. पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन को राज्यपाल कोटे से MLC बनाने का प्रस्ताव भी अटका हुआ है. राज्यपाल ने अभी तक मंजूरी नहीं दी है, जबकि अजहरुद्दीन हाल ही में मंत्री पद की शपथ ले चुके हैं.
केरल
केरल विधानसभा के कई बिल- खास तौर पर यूनिवर्सिटी लॉज (विश्वविद्यालय कानून) में संशोधन वाले बिल- राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं. इनमें कई एक साल से भी अधिक समय से लंबित हैं, जब अरिफ मोहम्मद खान राज्यपाल थे.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति पर समयसीमा थोपना संभव नहीं है लेकिन वे बिलों को 'हमेशा के लिए अटका' भी नहीं रख सकते. अगर राज्यपाल अनिश्चितकाल तक देरी करते हैं, तो यह सीमित न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ सकता है. अदालत अनुच्छेद 142 के तहत 'deemed assent' यानी माना हुआ मंजूर नहीं दे सकती क्योंकि इससे अलग संवैधानिक पद के अधिकार में दखल होगा.
तमिलनाडु DMK की प्रतिक्रिया
तमिलनाडु की सत्ताधारी DMK ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का ‘गवर्नर के लिए कोई समयसीमा नहीं’ वाला अवलोकन सिर्फ एक मत (opinion) है, कोई जजमेंट नहीं. इसलिए यह बाध्यकारी नहीं है और अदालतों में चल रहे मामलों पर इसका असर नहीं पड़ेगा.