सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत गिरफ्तार एक व्यक्ति को जमानत दे दी. अदालत ने व्यक्ति को जमानत देते हुए इस बात पर जोर दिया कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार अति महत्वपूर्ण और पवित्र है. उस व्यक्ति पर भारतीय मुद्रा की जालसाजी का आरोप था.
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा, ''संवैधानिक अदालत को दंडात्मक कानून में प्रतिबंधात्मक वैधानिक प्रावधानों के कारण किसी आरोपी को जमानत देने से नहीं रोका जा सकता है. अगर उसे लगता है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी-विचाराधीन कैदी का अधिकार सही है. ऐसी स्थिति में, दंडात्मक कानून की व्याख्या के मामले में भी ऐसे वैधानिक प्रतिबंध आड़े नहीं आएंगे, चाहे वह कितना भी कठोर क्यों न हो, संवैधानिक न्यायालय को संवैधानिकता और कानून के शासन के पक्ष में झुकना होगा. जिसका स्वतंत्रता एक आंतरिक हिस्सा है." पीठ ने स्पष्ट किया कि यह कहना बहुत गलत है कि किसी विशेष कानून के तहत जमानत नहीं दी जा सकती है.
'सही होनी चाहिए जमानत की शर्तें'
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि जमानत देते समय जब भी आरोपी पर आरोप लगाया जाता है, जमानत की शर्तें उचित होनी चाहिए और कहा कि जमानत की शर्तें मनमाना और काल्पनिक नहीं हो सकती. जस्टिस की अभिव्यक्ति को सीआरपीसी की धारा 437 (3) में जगह देने का मतलब है केवल न्याय का अच्छा प्रशासन या मुकदमे की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना. किसी अभियुक्त की जमानत की स्वतंत्रता को कम करने के लिए इसे और व्यापक अर्थ नहीं दिया जा सकता है. अदालत जमानत देते समय अजीब शर्तें नहीं लगा सकती हैं. जमानत की शर्तें जमानत देने के उद्देश्य के अनुरूप होनी चाहिए.
'आरोपी को जेल में अधिकारों से नहीं किया जा सकता वंचित'
पीठ ने अपने 26 पेज के फैसले में फैसला में कहा कि जमानत की शर्तें लगाते वक्त, जिस आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया जाता है. उसके संवैधानिक अधिकारों को केवल आवश्यक न्यूनतम सीमा तक ही कम किया जा सकता है. यहां तक कि जब कोई आरोपी जेल में है तो उसे जीवन के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है जो कि एक है प्रत्येक व्यक्ति का बुनियादी मानवाधिकार. इस न्यायालय ने माना कि जमानत की शर्तें इतनी कठिन नहीं हो सकतीं कि जमानत का आदेश ही विफल हो जाए.
बता दें कि आरोपी व्यक्ति लाखों रुपये के नकली नोटों के आरोप में आतंकवाद निरोधी दस्ते (ATS) ने साल 2015 में गिरफ्तार किया था और वह पिछले आठ सालों से जेल में है.