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अन्याय की हद! अमेर‍िका की जेल में हत्या के जुर्म में एक बेगुनाह भारतवंशी ने काटे 43 साल, छूटा तो बना लिया बंदी

अमेरिका में 43 साल जेल में बिताने के बाद जब भारतवंशी सुब्रमण्यम (सुबु) वेदम आखिरकार आजाद हुए तो लगा जैसे ज़िंदगी ने उन्हें दूसरा मौका दिया हो. लेकिन कुछ ही घंटों में उनकी खुशी फिर कैद में बदल गई. जेल से छूटते ही अमेरिकी एजेंसी ICE ने उन्हें हिरासत में ले लिया. इस बार वजह थी भारत भेजे जाने का पुराना आदेश. जान‍िए- उनकी पूरी कहानी.

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43 साल बाद भी खत्म नहीं हुई सुब्रमण्यम की सजा
43 साल बाद भी खत्म नहीं हुई सुब्रमण्यम की सजा

किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है इंड‍िया में जन्मे सुब्रमण्यम (सुबु) वेदम की असली जि‍ंदगी. 43 साल अमेर‍िका की जेल में रहने के बाद जब उन्हें आखिरकार रिहाई मिली तो उनके परिवार की आंखों में खुशी के आंसू थे. लेकिन बस चंद मिनटों में ही ये आजादी फिर से छिन गई. रिहाई के तुरंत बाद अमेरिकी इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट (ICE) एजेंट्स ने उन्हें हिरासत में ले लिया और भारत भेजने (डिपोर्टेशन) की प्रक्रिया शुरू कर दी. अब फिर से उन्हें उस देश में भेजा जा रहा है जिसे उन्होंने सिर्फ 9 महीने की उम्र में छोड़ा था. 

1980 के दशक का पुराना आदेश बना मुसीबत

ICE ने वेदम के खिलाफ 1980 के दशक का पुराना डिपोर्टेशन ऑर्डर दिखाया जो उनके ड्रग केस से जुड़ा था. उस वक्त वो टीनेजर थे और LSD (नशे की दवा) रखने और बेचने के आरोप में दोषी पाए गए थे. हालांकि, 1980 के हत्या के झूठे केस से अब उन्हें बरी कर दिया गया है लेकिन ड्रग से जुड़ा केस अब भी उनके रिकॉर्ड में दर्ज है. 

वो मर्डर केस, जिसने छीने वेदम के 43 साल...

1980 में अमेरिका के पेंसिल्वेनिया राज्य में थॉमस किंसर नाम के एक युवक की लाश मिली थी.पुलिस ने बिना ठोस सबूत के सुबरमण्यम पर हत्या का आरोप लगाया. कोई गवाह नहीं, कोई हथियार नहीं...फिर भी अदालत ने उन्हें 1983 में उम्रकैद की सजा सुना दी.  उन्हें जमानत भी नहीं मिली क्योंकि कोर्ट ने कहा कि वो विदेशी हैं और भाग सकते हैं. उनका पासपोर्ट और ग्रीन कार्ड जब्त कर लिया गया. 

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साल 2022 में सामने आया सच 

43 साल बाद 2022 में, केस का रुख तब बदला जब एफबीआई की एक रिपोर्ट सामने आई जिसे अभियोजन पक्ष ने छिपा लिया था. इस रिपोर्ट में साफ लिखा था कि जिस गोली से हत्या हुई, वो .25 कैलिबर की नहीं थी जबकि सरकार का पूरा केस इसी पर टिका था. पेन स्टेट यूनिवर्सिटी के लॉ प्रोफेसर गोपाल बालाचंद्रन की अगुवाई में वकीलों की टीम ने ये छिपे हुए दस्तावेज खोज निकाले. बाद में न्यायाधीश ने माना कि अगर ये सबूत पहले पेश किए जाते तो शायद जूरी का फैसला अलग होता. 

2025 में मिली रिहाई

जनवरी और फरवरी 2025 की सुनवाई में फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स ने राज्य का पूरा केस ध्वस्त कर दिया. अगस्त 2025 में कोर्ट ने सजा रद्द कर दी और अक्टूबर 2025 में डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी ने केस पूरी तरह वापस ले लिया. इस तरह सुबरमण्यम वेदम को अमेरिका का सबसे लंबे समय तक जेल में बंद निर्दोष व्यक्ति (Exoneree) घोषित किया गया. उन्होंने जेल में रहते हुए तीन डिग्रियां हासिल कीं, जिनमें MBA में 4.0 GPA (150 साल में पहली बार) भी शामिल है. 

लेकिन फिर छ‍िन गई आजादी

रिहाई के कुछ मिनट बाद ही ICE एजेंट्स ने उन्हें फिर पकड़ लिया. अब वे पेंसिल्वेनिया के Moshannon Valley डिटेंशन सेंटर में रखे गए हैं, जहां करीब 60 अन्य कैदी हैं. वे अपने परिवार से फोन पर कुछ हद तक पहले से ज़्यादा खुलकर बात कर सकते हैं. यहां से उन्होंने परिवार को संदेश भेजा कि मेरा नाम साफ हो गया है. अब मैं कैदी नहीं, बल्कि बंदी हूं. 

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परिवार की नई लड़ाई

उनकी भांजी जोई मिलर-वेदम का कहना है कि अगर उन्हें भारत भेजा गया तो वहां उनका कोई नहीं है. वो यहां 9 महीने की उम्र से रह रहे हैं. उन्हें आधुनिक दुनिया में फिर से ढलने के लिए हमारे साथ की ज़रूरत है. उनकी वकील एवा बेनक ने इमिग्रेशन कोर्ट में केस दोबारा खोलने की अर्जी दी है ताकि डिपोर्टेशन को रोका जा सके. बता दें कि इस दौरान वेदम की मां की मौत 2016 में और पिता की 2009 में हो चुकी है. दोनों अपने बेटे की रिहाई देखने की उम्मीद में ही दुनिया से चले गए. 

43 साल की कैद पर आज़ादी अब भी अधूरी

कानूनी तौर पर वे निर्दोष हैं लेकिन ICE की हिरासत ने उन्हें फिर कैद कर दिया है. एक तरह से वे आज़ाद हैं, और दूसरी तरफ फिर भी जेल में बंद. उनकी असली आज़ादी की लड़ाई अभी बाकी है. वो लड़ाई जो 43 साल पहले एक झूठे इल्ज़ाम से शुरू हुई थी. 

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