जिस्म के किसी हिस्से का जिस्म से अलग हो जाना कितना तकलीफदेह है, मैं ये बात समझने की सिर्फ कोशिश कर सकता था लेकिन मेरी पत्नी जब भी अपनी देह छूती तो उसकी आंखे नम हो जाती थीं। बेहिसाब मायूसी उसके चेहरे पर दिखाई देती। मेरे लिए उस वक्त सबसे ज़रूरी यही था कि मैं उसे एहसास दिलाऊं की ख़ूबसूरती जिस्म के उभार में नहीं होती। वो तब भी उतनी ही खूबसूरत थी जितनी पहले... सुनिए स्टोरीबॉक्स में एकता नाहर की लिखी कहानी - 'सबसे ख़ूबसूरत तुम' जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से