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The India Way: जयशंकर ने बताई चीनी शतरंज की बिसात, किताब में नेहरू से लेकर PAK पर खोले राज

भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की हाल ही में एक किताब रिलीज़ हुई है. द इंडिया वे, इस किताब में उन्होंने विदेश नीति में बिताए अपने वक्त के किस्सों को साझा किया है साथ ही भारत के सामने इस वक्त और आने वाले वक्त में कैसी चुनौतियां हैं इनका जिक्र किया है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दी थी किताब की पहली कॉपी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दी थी किताब की पहली कॉपी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • विदेश मंत्री एस. जयशंकर की नई किताब लॉन्च
  • द इंडिया वे में भारत-चीन-पाकिस्तान-अमेरिका का जिक्र
  • विदेश नीति में आने वाली चुनौतियों के बारे में बताया

शतरंज की बिसातों में निमज़ो-इंडियन डिफेंस को काफी सोलिड माना जाता है. यानी इन चालों से जिसने सामने वाले को मात दे दी और उसे अपनी चालों में फंसा दिया, तो वही असली सिकंदर है. मई के महीने से भारत और चीन के बीच सीमा पर कुछ ऐसा ही हो रहा है, एक चाल चीन चलता है तो फिर भारत उसका जवाब देता है. मई में चीन लाइन ऑफ कंट्रोल की तरफ आया, तो जून में हिंसक झड़प में भारतीय जवान शहीद हो गए और फिर अगस्त में फिर माहौल बिगड़ा. इन सभी घटनाओं के बीच देश के विदेश मंत्री और पूर्व में विदेश नीति के अहम अफसर रहे एस. जयशंकर की किताब आई है.

बीते दिनों एस. जयशंकर की किताब ‘द इंडिया वे’ रिलीज़ हुई है, जिसमें उन्होंने अपने अनुभवों को साझा किया है. इसी किताब में एक पूरा चैप्टर चीन के ऊपर भी है, जो कई राजों को खोलता है और परत-दर-परत भारत-चीन के रिश्तों को टटोलता है. 

भारत और चीन के बीच ऐतिहासिक-सांस्कृतिक रिश्ता
एस. जयशंकर ने अपनी इस किताब में चीन के चैप्टर की शुरुआत काफी पुराने पन्नों से की है, जहां चीन और भारत के बीच रिश्तों की शुरुआत, दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों पर बात की गई है. किताब के अनुसार, ‘सिल्क रोड के जमाने में जब व्यापार होता था, तब भारत और चीन के संबंध सामने आए थे. जहां बौद्ध धर्म से जुड़े लोग भारत की ओर से शिनझियांग (आज के वक्त में नाम) की ओर जाते थे. उसी दौरान चीनी शासक कई सड़कों के नाम संस्कृत शब्दों पर रखते थे. इसके बाद ये रिश्ता कश्मीर से होते हुए नालंदा तक पहुंचा, जिसका मुख्य लक्ष्य शिक्षा और ज्ञान का प्रसार करना था.’ इस दौरान यहां चीनी दार्शनिक फा शियान, शुआन झांग का भी जिक्र है.

‘अगर एक चीनी अपनी ज़िंदगी में अच्छे कर्म करता है, तो अगले जन्म में वो भारत में पैदा होता है.’

~ चेयरमैन माओ, 1950 में भारतीय एम्बेसडर से (किताब में उल्लेख)


चीन-नेहरू और 1962 की जंग
विदेश मंत्री की किताब में मौजूदा भारत और चीन के रिश्तों की शुरुआत विश्व युद्ध दो के बाद दिखाई गई है. आजादी के बाद भारत-चीन के रिश्तों की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा काउंसिल में परमानेंट सीट को लेकर हुई जो चीन को मिली. क्योंकि उस दौर में भी भारत, चीन के लिए काफी अहम था. भारत ने तब कोरियन युद्ध-वियतनाम युद्ध में अपनी भूमिका निभाई तो साथ ही अमेरिका को चेताने में काम आ सकता था. किताब के अनुसार, ‘आजादी के बाद चीन-भारत के बीच बॉर्डर को लेकर बातें शुरू हो गई थीं. इस दौरान चीन ने जिस तरह से तिब्बत के साथ व्यवहार किया उसने सबकुछ बिगाड़ दिया. तब अलग तरह की राजनीति चल रही थी, जिसकी वजह से बाद में नेहरू ने भी माना कि चीन की नजर सिर्फ जमीन पर नहीं है बल्कि उसका असली मकसद रौब जमाना है. इसके बाद 1962 की जंग ने चीन के प्रति भारत के लोगों का नजरिया बदल दिया, अब लोगों में चीन के प्रति विश्वास की कमी है. नवंबर 1950 में जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल के बीच इस बात की चर्चा हुई कि चीन के साथ किस तरह के रिश्तें आगे बढ़ाए जाएं. तब से अबतक काफी कुछ बदल गया है, लेकिन इसमें ज्यादातर भारत के लिए अच्छा नहीं रहा.’

चीन और पाकिस्तान के रिश्ते
भारत और चीन के बीच मौजूदा समय में एक खटास इस बात की भी है क्योंकि चीन पाकिस्तान की मदद करता आया है. फिर चाहे वो फंडिंग हो या फिर आतंकियों को बचाना हो. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपनी किताब में भी चीन और पाकिस्तान के रिश्तों पर खुलकर बात की है. किताब में लिखा है, ‘चीन और पाकिस्तान के बीच की दोस्ती हमेशा खटनके वाली लगती है, क्योंकि दोनों देशों में कोई ऐतिहासिक या फिर सांस्कृतिक दोस्ती नहीं है. ऐसे में चीन के दिमाग के टटोलें तो इसका एक ही मकसद है कि वो पाकिस्तान के जरिए भारत के साथ चेक एंड बैलेंस का गेम खेल रहा है. इसका नजारा कई बार दिखा है, जब 1959 में भारत-चीन के रिश्ते बिगड़े तो पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर की ओर माहौल बिगाड़ना शुरू किया. फिर भारत-चीन में 1962 के युद्ध के बाद पाकिस्तान ने 1963 में अपने कब्जे का हिस्सा चीन को सौंप दिया.’ 

किताब के अनुसार, ‘चीन ने 1965 और 1971 की जंग में भी पाकिस्तान की मदद की. युद्ध के बाद दोनों देशों में जमी नहीं, लेकिन बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने चीन का दौरा कर दोनों देशों में माहौल को शांत करने की कोशिशें की. तबतक काफी कुछ बदल चुका था, भारत अमेरिका के नजदीक था, न्यूक्लियर टेस्ट हो गया था.’ 

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अपने करियर में कई देशों में वक्त बिता चुके हैं एस. जयशंकर

भारत और चीन का बॉर्डर विवाद 
आजादी के बाद से ही दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर विवाद शुरू हुआ था, जो अबतक जारी है. इसका ही असर बार-बार लद्दाख सीमा, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड के इलाकों में देखने को मिलता है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपनी किताब द इंडिया वे में लिखा है, ‘दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू हो गई, लेकिन इसके मायने कुछ ना रहे क्योंकि बॉर्डर को लेकर दिक्कतें अभी भी जारी हैं. इसको दूर करने की कई कोशिशें हुईं जो पूरा ना हो सकीं. सबसे पहले 1979 में तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसकी कोशिश की, लेकिन बात आगे ना बढ़ी. लेकिन 2003 में दोनों देशों ने बॉर्डर विवाद को सुलझाने के लिए विशेष प्रतिनिधियों का गठन किया, लेकिन वो अबतक कोशिश जारी है.’ 

सुपरपावर चीन और उसका सामना
चीन आज के वक्त में एक सुपरपावर के तौर पर खुद को पेश कर रहा है, जो दुनिया के लिए कई मायनों में चिंता का विषय बन रहा है. अपनी किताब में एस. जयशंकर लिखते हैं, ‘2009 के वक्त में जब दुनिया आर्थिक मंदी में डूब रही थी वो वक्त चीन के लिए काफी अहम निकला. शुरुआत से ही चीन ने ऐसी नीति बनाईं जो बिजनेस के लिए जरूरी थीं, भारत वो ना कर सका. इसलिए आज दोनों देश के बीच में व्यापार का अंतर चार गुना है. आज एक उभरता हुआ चीन पूरे एशिया या यूं कहें पूरी दुनिया को बदलना चाहता है. बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट, चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कोरिडोर इसी का हिस्सा हैं. भारत को चीन जैसी महाशक्ति का सामना करने के लिए कुछ अलग सोचना होगा, ताकि वह उसके साथ दोस्ती निभाते हुए भी खुद को अलग बना सके. क्योंकि भारत चीन को हमेशा अपने उत्तर में सोचता है, लेकिन अगर वो दक्षिण (श्रीलंका-पाकिस्तान में चीन की पहुंच) में आया तो परिस्थिति बदल जाएंगी.’

भारत के सामने आने वाले वक्त में चुनौतियों के बारे में एस. जयशंकर ने लिखा, ‘भारत में अभी भी ऐसी क्षमता और विकास दर पैदा करने की जरूरत है जो चीन पिछले चार दशकों से कर रहा है. उल्टा भारत ने कई मौकों पर इंडस्ट्री के लिए मुश्किलें बढ़ाई हैं.’ इस किताब में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने विदेशों में बतौर एम्बेसडर बिताए अनुभव को साझा किया है. 

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