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जनता ने सबको सबक सिखा दिया है... चुनाव नतीजों पर अंजलि इस्टवाल के Takeaways

जनता बहुत समझदार है और जानती है कि कैसे अपने नेताओं को याद दिलाया जाए कि वो सेवक हैं, राजा नहीं. बार बार जनता ने बड़े से बड़े नेता को सिर-आखों पर चढ़ाया है तो एक झटके में अपने मन से उतार भी दिया है. ये हार ये साबित करती है कि नरेंद्र मोदी को जनता ने एक बार फिर अपने सेवा का मौका दिया तो, लेकिन उनके हाथ बांध कर.

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चुनाव नतीजों पर अंजलि इस्टवाल के takeaways
चुनाव नतीजों पर अंजलि इस्टवाल के takeaways

2024 के चुनावी नतीजों ने देश भर में कई धड़कनों को तेज़ कर दिया, उनकी भी जो प्रधानमंत्री मोदी के समर्थक हैं और उनकी भी जो उनके घोर विरोधी हैं और उनकी भी जो पोल पंडित कहे जाते हैं. लेकिन वो तो बस चंद मिनटों की कहानी थी, अब जो चल रहा है वो दिनों दिन का महाकाव्य है. नरेंद्र मोदी का शपथ ग्रहण समारोह एक दिन से आगे बढ़ा दिया गया है. इस बदलाव के पीछे कोई तो वजह होगी.

क्या बीजेपी को कुछ और वक्त चाहिए? क्या बाजेपी में अपने साथी दलों को लेकर आत्मविश्वास की कमी हो रही है? क्या पहली बार नरेंद्र मोदी को किसी और की सुननी पड़ेगी? क्या नरेंद्र मोदी उनकी मान जाएंगे? ये सारे सवाल दिमाग में कौंधियाते हैं और फिर याद आता है कि जो एक्साइटमेंट या उत्साह चुनाव के पहले आम जनता और पत्रकारों में गायब दिख रहा था, वो अब अचानक से उछल-उछल कर सामने आ रहा है. इसी उत्साह के तहत ये हैं मेरे कुछ टेकअवे...

- जनता बहुत समझदार है और जानती है कि कैसे अपने नेताओं को याद दिलाया जाए कि वो सेवक हैं, राजा नहीं. बार बार जनता ने बड़े से बड़े नेता को सिर-आखों पर चढ़ाया है तो एक झटके में अपने मन से उतार भी दिया है. ये हार ये साबित करती है कि नरेंद्र मोदी को जनता ने एक बार फिर अपने सेवा का मौका दिया तो, लेकिन उनके हाथ बांध कर.

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- राहुल गांधी आग में तप कर निखर रहे हैं. एक वक्त था जब वो महज़ एक 'Entitled' बड़े नाम वाले परिवार के पूत नज़र आते थे. न यूपीए 1 और न यूपीए 2 में उन्होंने कोई भी जूनियर मंत्री पद संभालने की कोशिश की. सीधे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने देने से पहले देश उनकी अग्नि परीक्षा चाहता था ताकी वो परिपक्व हो सकें. शायद भारत जोड़ो यात्रा ने उन्हें आखिर कार जनता की नज़र में वो जगह दिला दी जो वो और उनका परिवार सालों तक चाहता था.

- जनता भूलती भी नहीं है. वो अपने वोट के अपमान को याद रखती है. जिस शिवसेना को महाराष्ट्र की जनता ने चुना, रातों-रात वो शिवसेना ही बदल गई. वोट वोटर के इमोशन, उसकी भावनाओं से जुड़ा होता है जिसे वो 5 साल में एक बार व्यक्त करता है. उस भावना का सम्मान ज़रूरी है.

- जनता कभी-कभी नए लोगों को भी मौका देती है अपनी काबिलीयत साबित करने का और ओडीशा बाजेपी के लिए वही एक मौका है.

- आखिर में यही कि घमंड अच्छा नहीं है, चाहे किसी का भी हो. ये सीख नेताओं के लिए ही नहीं, हम पत्रकारों के साथ-साथ ऊंची वाणी में चुनावी भविष्यवाणी करने वालों के लिए भी है. स्टूडियो में बैठ कर किया गया विश्लेषण लोगों के मन की बात हर बार नहीं जान सकता. चुनावी भविष्यवाणी कीजिए लेकिन उसे पेश कीजिए विनम्रता के साथ और इस स्वीकारता के साथ कि वो गलत भी हो सकता है. एक पत्रकार के तौर पर मेरा अनुमान तो गलत था, बाजेपी को बहुमत मिलने का. सीटे गिरेंगी, ये तो कई पत्रकार जान रहे थे लेकिन इतनी गिर जाएंगी... ऐसा नहीं सोचा था.

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जनता ने सबको सबक सिखा दिया है.

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