कर्नाटक में जारी हिजाब विवाद के बीच तमिलनाडु में मंदिरों के अंदर गैर हिंदुओं की एंट्री रोकने से संबंधित याचिका दाखिल की गई. इस पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछ लिया कि धर्म जरूरी है या देश? जज ने सवाल किया कि क्या अब देश को धर्म के आधार पर बांटा जाएगा.
यह याचिका मद्रास हाई कोर्ट में त्रिची के रहने वाले रंगराजन ने लगाई थी. रंगराजन ने कोर्ट से मांग की थी कि मंदिरों में गैर हिंदुओं के प्रवेश पर पूरी तरह रोक लगाई जाए, ताकि मंदिरों की पवित्रता भंग न हो. याचिकाकर्ता ने इसमें विदेशियों को भी शामिल करने की मांग की थी.
याचिकाकर्ता रंगराजन ने हिंदुओं से अपील की थी कि वे मंदिर जाते समय बिंदी, तिलक, धोती, साड़ी और सलवार कमीज जैसे सांस्कृतिक लिवाज पहनें, ताकि मंदिर में नास्तिकों को प्रवेश करने से रोका जा सके. याचिका पर सुनावई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मुनीश्वर नाथ भंडारी ने पूछा कि किस कानून में मंदिर के लिए ड्रेस कोड निर्धारित किया गया है. तमिलनाडु के तिरुवनंतपुरम पद्मनाभस्वामी मंदिर के अलावा किसी मंदिर के लिए ड्रेस कोड निर्धारित नहीं है.
मामले की सुनवाई के दौरान एडवोकेट जनरल ने कहा कि 2016 में कोर्ट की डिविजन बेंच ने सिंगल बेंच के फैसले को पलट दिया था. सिंगल बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि जींस पहनकर मंदिरों में प्रवेश नहीं किया जा सकता और गैर हिंदुओं को केवल कोडि मारन तक ही प्रवेश की अनुमति है.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मुनीश्वर नाथ भंडारी ने याचिकाकर्ता से पूछा कि धर्म और देश में से किसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए. हैरानी की बात है कि कोई हिजाब के लिए कोर्ट पहुंच रहा है तो कोई मंदिर में धोती के लिए. जज ने सवाल किया कि इस याचिका से समाज को क्या संदेश दिया जा रहा है? क्या हम एक ऐसे देश में हैं, जहां धर्म के नाम पर मतभेद हैं.
कोर्ट ने मामले को 20 फरवरी तक स्थगित करते हुए तमिलनाडु सरकार के हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ प्रबंधन विभाग को काउंटर याचिका दायर करने का निर्देश दिया है.