राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कोलकाता में एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार रखे. उन्होंने लिव-इन रिलेशनशिप को गलत बताते हुए परिवार और विवाह की महत्वपूर्णता पर जोर दिया और जनसंख्या नियंत्रण पर भी 50 साल की दूरदर्शी नीति बनाने की वकालत की. उन्होंने ये भी समझाया कि तीन बच्चों क्यों जरूरी हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि भारत पहले से ही एक हिंदू राष्ट्र है और इस सत्य के लिए संविधान से किसी मंजूरी की जरूरत नहीं है.
कोलकाता में व्याख्यानमाला कार्यक्रम में एक सत्र को संबोधित करते हुए लिव-इन रिलेशनशिप की अवधारणा पर अपने विचार रखें. उन्होंने कहा कि आप जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं, ये सही नहीं है. परिवार, विवाह, केवल शारीरिक संतुष्टि का साधन नहीं है. ये समाज का एक हिस्सा है. परिवार वह जगह है, जहां व्यक्ति समाज में रहना सिखाता है... इसलिए ये हमारे देश, समाज और धार्मिक परंपराओं को संरक्षित करने का विषय है.
'तीन बच्चे हों तो...'
आरएसएस चीफ ने कहा कि अगर आप शादी नहीं करना चाहते तो ठीक है. हम सन्यासी बन सकते हैं, लेकिन अगर आप वह भी नहीं करेंगे और जिम्मेदारी नहीं लेंगे, तो फिर चीजें कैसे चलेंगी?...
उन्होंने समाज में बच्चों को लेकर छिड़ी बहस पर बोलते हुए कहा कि किसी दंपत्ति को कितने बच्चे होने चाहिए, ये परिवार, पति-पत्नी और समाज का मामला है. इसका कोई निश्चित नियम नहीं है. मैंने डॉक्टरों आदि से बात करके कुछ जानकारी प्राप्त की है और वे कहते हैं कि अगर शादी जल्दी, 19-25 वर्ष की आयु के बीच हो जाए और तीन बच्चे हों, तो माता-पिता और बच्चों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है.
उन्होंने मनोवैज्ञानिक की बात को दोहराते हुए कहा, 'मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि तीन बच्चे होने से लोगों को अहंकार प्रबंधन सीखने में मदद मिलती है. फिर जनसांख्यिकी विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर जन्म दर तीन से नीचे गिरती है, जनसंख्या घट रही है और अगर ये 2.1 से नीचे चली जाती है तो ये खतरनाक है. फिलहाल बिहार की वजह से ही हमारी दर 2.1 है; अन्यथा हमारी दर 1.9 है... ये जानकारी मुझे मिली है.'
बोझ और संपत्ति है जनसंख्या
उन्होंने जनसंख्या के दुष्परिणाम और फायदे गिनते हुए आगे कहा,'मैं एक उपदेशक हूं, अविवाहित हूं. मुझे इस मामले में कुछ नहीं पता. मैंने आपको जो जानकारी मिली है, उसके आधार पर बताया है... हमने जनसंख्या का प्रभावी प्रबंधन नहीं किया है. जनसंख्या एक बोझ है, लेकिन ये एक संपत्ति भी है. हमें अपने देश के पर्यावरण, बुनियादी ढांचे, सुविधाओं, महिलाओं की स्थिति, उनके स्वास्थ्य और देश की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए 50 साल के अनुमान के आधार पर नीति बनानी चाहिए...'
'भारत एक हिंदू राष्ट्र है...'
भागवत ने अपने संबोधन में भारत को हिंदू राष्ट्र की बहस पर बोलते हुए कहा, 'सूरज पूर्व में उगता है; हमें नहीं पता कि ये कब से हो रहा है तो क्या इसके लिए भी संवैधानिक मंजूरी की जरूरत है? हिंदुस्तान एक हिंदू राष्ट्र है जो कोई भारत को अपनी मातृभूमि मानता है, भारतीय संस्कृति की सराहना करता है, जब तक हिंदुस्तान की भूमि पर एक भी व्यक्ति जीवित है जो भारतीय पूर्वजों की महिमा में विश्वास करता है और उसका सम्मान करता है, तब तक भारत एक हिंदू राष्ट्र है.'
उन्होंने आगे कहा कि संघ, जो हिंदुत्व की विचारधारा में दृढ़ विश्वास रखता है, इस बात की परवाह नहीं करता कि भारतीय संसद भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए कोई कानून संशोधित करती है या नहीं.
हमें कोई फर्क नहीं पड़ता: RSS चीफ
भागवत ने कहा, 'अगर संसद कभी संविधान में संशोधन करके वह शब्द जोड़ने का फैसला करती है तो वह करें या न करें, हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. हम हिंदू हैं और हमारा राष्ट्र हिंदू राष्ट्र है. यही सच है. जन्म पर आधारित जाति-व्यवस्था हिंदुत्व की पहचान नहीं है.'
'कोई आपका मन नहीं बदल सकता'
अल्पसंख्यक मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए भागवत ने कहा कि आरएसएस कोई मुस्लिम-विरोधी संगठन नहीं है. उन्होंने जोर दिया कि संघ का काम पूरी पारदर्शिता के साथ होता है और किसी को भी संदेह हो तो वह खुद आकर देख सकता है. अगर ये धारणा है कि हम मुस्लिम-विरोधी हैं तो जैसा मैंने कहा, 'आरएसएस का कार्य पारदर्शी है. आप कभी-भी आकर खुद देख सकते हैं और अगर आपको वैसा कुछ दिखता है तो अपनी राय रखिए और अगर नहीं दिखता तो अपनी राय बदल लीजिए. आरएसएस के बारे में बहुत कुछ समझने लायक है, लेकिन अगर आप समझना नहीं चाहते तो कोई आपका मन नहीं बदल सकता.'