प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई है. दो वकीलों ने यह मांग अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से की है. वकीलों ने उन्हें पत्र लिखकर यह वैधानिक अनुरोध किया है. सान्याल ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कथित तौर पर कहा था कि न्यायपालिका 'विकसित भारत' के रास्ते में 'सबसे बड़ी बाधा' है. वकीलों ने उनके बयानों पर मुकदमा चलाने के लिए कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट एक्ट की धारा 15 के तहत मंजूरी मांगी है.
यह वैधानिक अनुरोध सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के पूर्व सचिव रोहित पांडे और सदस्य उज्ज्वल गौर ने किया है. कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट एक्ट 1971 की धारा 15 के तहत निजी व्यक्तियों द्वारा कोर्ट की अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए अटॉर्नी जनरल से अनुमति लेना अनिवार्य है.
वकीलों के मुताबिक, सान्याल को उनके कथन के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए कि न्यायिक व्यवस्था और कानूनी ढांचा, विशेषकर न्यायपालिका, अब विकसित भारत बनने और तेज़ी से आगे बढ़ने की दिशा में सबसे बड़ी बाधा है.
औपनिवेशिक शब्दों पर भी सवाल...
सान्याल ने अपनी टिप्पणी में न्यायालयों में इस्तेमाल होने वाले औपनिवेशिक काल के शब्दों पर भी सवाल उठाए थे. उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि आप ऐसा पेशा नहीं रख सकते, जहां आप 'माय लॉर्ड' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करें या याचिका को 'प्रेयर' कहा जाए. सान्याल ने कहा कि यह मज़ाक जैसा है. वकीलों ने अपने पत्र में सान्याल द्वारा न्यायालय की छुट्टियों पर की गई टिप्पणी का भी उल्लेख किया है, जिस पर उनका मानना है कि इस पर सवाल उठाना सही नहीं है.
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अदालती छुट्टियों और वकीलों के पेशे पर टिप्पणी
सान्याल ने कहा था कि न्यायपालिका भी राज्य की अन्य शाखाओं की तरह एक सार्वजनिक सेवा है. उन्होंने सवाल किया कि अगर डॉक्टर छुट्टियों के लिए अस्पताल बंद कर दें तो क्या यह स्वीकार्य होगा, तो फिर अदालतों के लिए यह क्यों स्वीकार्य है. याचिकाकर्ता वकीलों ने कहा कि सान्याल ने विधिक पेशे को 'मध्ययुगीन गिल्ड' बताया, जिसमें 'जाति-प्रथा जैसी श्रेणियां' हैं. उन्होंने सीनियर वकीलों, एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड की व्यवस्था पर भी सवाल उठाए.
'राष्ट्रीय प्रगति की सबसे बड़ी बाधा...'
पत्र में वकीलों ने कहा कि यद्यपि लोकतंत्र में न्यायिक प्रक्रियाओं की सम्मानजनक और रचनात्मक आलोचना अनुमेय और वांछनीय है, लेकिन सान्याल की टिप्पणियां, विशेष रूप से न्यायपालिका को 'राष्ट्रीय प्रगति की सबसे बड़ी बाधा' बताना और बार को 'मध्ययुगीन गिल्ड' करार देना, संपूर्ण न्यायिक प्रणाली पर व्यापक हमला है. इन अधिवक्ताओं ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से अवमानना कार्यवाही शुरू करने की मंजूरी देने की गुजारिश की है.