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कमलनाथ को मध्यप्रदेश के चुनाव प्रचार में राहुल की जरूरत नहीं है?

मध्यप्रदेश में कांग्रेस के चुनावी प्रचार से क्यों दूर है राहुल गांधी, इज़राइल में भारतीयों को नौकरी मिलना अवसर होगा या चिंता, हरजिंदर सिंह धामी की जीत क्यों अकाली दल के लिए अहम है, सुनिए 'दिन भर' में.

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जनता के फैसले का बखत आ गया है. मध्यप्रदेश चुनाव की वोटिंग में अब दस दिन भी नहीं रह गए. कांग्रेस आश्वस्त कर रही है कि बदलाव होगा और बीजेपी कह रही है कि अगर बदलाव हुआ तो घाटा मध्य प्रदेश का है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आधिकारिक नहीं, लेकिन अनाधिकारिक तौर पर बीजेपी का चेहरा ज़रूर हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने भी कई दफे इस ओर इशारा किया और आज भी जब वो गुना में थे तो शिवराज के तारीफों के पुल बांधते नज़र आए. 
गुना से पहले मोदी दमोह में थे. अब पीएम मोदी तो लगातार मध्य प्रदेश का दौरा कर रहे हैं. प्रियंका गांधी भी तीन दिन में दूसरी बार आज इंदौर पहुंचीं लेकिन कांग्रेस का मेन फेस कहे जाने वाले राहुल गांधी इतने दिनों से चल रहे प्रचार प्रसार के बीच अब कल मध्यप्रदेश पहुंचेंगे. मध्यप्रदेश से उनकी इस दूरी को पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से भी जोड़ा जा रहा है.  बीजेपी की बात करें तो उसके 33 में से 31 मंत्री चुनावी मैदान में हैं. आंकड़े बताते हैं कि 2018 के विधानसभा चुनाव में 34 में से 13 यानी 40 फीसदी मंत्री चुनाव हार गए थे. 2013 में 23 मंत्रियों में से 10 चुनाव हारे थे. लिहाज़ा इस बार भी कई मंत्री मुश्किल में दिख रहे हैं. तो सबसे पहले बात तो गुना और दमोह की करते हैं. यहां की ग्राउंड रियलिटी क्या नज़र आ रही है. कौन सी पार्टी यहां लीड लेती दिखाई दे रही है, सुनिए 'दिन भर' में. 

इज़रायल हमास के बीच शुरु हुई जंग को आज 33 दिन बीत चुके है. इन 33 दिनों में जंग का सूरत-ए-हाल क्या था, ये कभी तस्वीरों से तो कभी नेताओं के बयानों से सामने आया. आज इसी सिलसिले में एक और खबर आई. वॉयस ऑफ अमेरिका नाम के अखबार ने अपनी एक रिपोर्ट में छापा है कि इज़रायल जल्द ही फिलिस्तिनी मजदूरों की जगह भारतीय लोगों की भर्ती कर सकता है. आपको पूरा मामला समझाते हैं. इज़रायल की कन्स्ट्रक्शन इंडस्ट्री में ज़्यादातर काम करने वाले मजदूर फिलिस्तिनी थे. लेकिन इस युद्ध के कारण इज़रायल ने 90,000 मजदूरों को काम से निकालने का फैसला लिया. अब उन्हीं मजदूरों की जगह इज़रायल भारत से तकरीबन 1 लाख लोगों की भर्ती करना चाहता है. इस जंग का असर यूं तो सभी सेक्टर्स पर हुआ है. लेकिन अगर हम बात सिर्फ मजदूर और मैनुअल लेबर से जुड़ें कामों की करें, तो क्या स्थिति है वहां? ज़रूरत के बावजूद फिलिस्तीन के लेबर्स को हटाने का फैसला क्यों लिया गया होगा? सुनिए 'दिन भर' में.

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पांच राज्यों में विधान सभा चुनावों की खबरों से तो आप रोज़ ही रूबरू हो रहे होंगे. लेकिन इन चुनावों के अलावा भी देश के कई अहम संस्थानों, संगठनों में चुनाव चल रहे हैं. इन्हीं में से एक है SGPC यानि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी. इस कमेटी को सिखों की मिनी संसद भी कहा जाता है. पंजाब के अमृतसर में SGPC मुख्यालय है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में प्रधान की पोज़िशन के लिए आज चुनाव हुआ. दोपहर एक बजे की अरदास के बाद कुल 151 सदस्यों में से 136 ने वोट डाले. प्रधान के पद के लिए एक दूसरे के ऑपोज़िट खड़े थे हरजिंदर सिंह धामी और बाबा बलबीर सिंह घुनस. इनमें से धामी को 118 वोट मिले और बाबा बलबीर सिंह घुनस को सिर्फ 17. एक अच्छे - खासे मार्जन के साथ हरजिंदर सिंह धामी​ शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान बनें. उनके बारे, उनकी प्रोफ़ाइल के बारे में विस्तार सुनिए 'दिन भर' में.

 

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