
साल 1962 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ब्रह्मपुत्र नदी पर बने 1.3 किलोमीटर लंबे सरायघाट पुल का उद्घाटन किया, तो गुवाहाटी पूर्वोत्तर का पहला बड़ा शहर बना, जो भारत के रेल नक्शे से जुड़ा. यह सिर्फ़ एक पुल नहीं था, बल्कि एक ऐसे दौर की शुरुआत थी, जिसने पूर्वोत्तर को देश की मुख्यधारा से जोड़ने की नींव रखी.
अब, 60 साल बाद, भारत एक-एक करके पूरे पूर्वोत्तर को रेल नेटवर्क से जोड़ने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. अगरतला और ईटानगर के बाद, अब मिजोरम की राजधानी आइजोल भी इस ऐतिहासिक यात्रा में शामिल होने जा रही है. यह रेल संपर्क न केवल भौगोलिक दूरी को कम करेगा, बल्कि रणनीतिक रूप से अहम माने जाने वाले "सिलीगुड़ी कॉरिडोर" — जिसे 'चिकन नेक' भी कहा जाता है — से आगे बढ़कर पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए नए अवसरों का रास्ता खोलेगा. यह जुड़ाव सिर्फ पटरी का नहीं, बल्कि भरोसे, विकास और भविष्य का है.
अब बारी मिजोरम की राजधानी आइजोल की
बैराबी-सैरांग रेल लाइन के अंतिम सुरक्षा निरीक्षण के बाद अब यह लाइन संचालन के लिए तैयार मानी जा रही है. रेलवे बोर्ड की हरी झंडी मिलते ही मालगाड़ियों और यात्री गाड़ियों के संचालन की शुरुआत हो सकती है. सैरांग, जो आइजोल से करीब 20 किलोमीटर दूर एक छोटा शहर है, अब इस लाइन के माध्यम से राजधानी से जुड़ेगा.
इस रेलवे कनेक्टिविटी का महत्व सिर्फ स्थानीय विकास ही नहीं, बल्कि सामरिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसे सिलिगुड़ी कॉरिडोर या "चिकन नेक" के नाम से जाना जाता है, जो भारत की सुरक्षा और कनेक्टिविटी के लिहाज से अहम क्षेत्र है. पूर्वोत्तर के इस हिस्से को रेलवे के माध्यम से जोड़ना क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास में क्रांति लेकर आएगा.

पूर्वोत्तर और कश्मीर को रेलवे से जोड़ने की ऐतिहासिक पहल
पूर्वोत्तर भारत में एक राजधानी को दूसरी राजधानी से जोड़ने वाली रेल कनेक्टिविटी अब तेजी से बढ़ रही है. इससे न केवल व्यापार और कारोबार को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि उस इलाके में छिपे हुए पर्यटन के अवसर भी खुलेंगे. यह कहना गलत नहीं होगा कि इन रेलमार्गों से भारत के रणनीतिक रूप से अहम पूर्वोत्तर क्षेत्र को और मजबूती मिलेगी.
यह पूर्वोत्तर में हुआ रेल विकास, उस ऐतिहासिक पल के कुछ ही हफ्तों बाद आया है जब कश्मीर घाटी ने भी ऐसा ही एक बड़ा मुकाम हासिल किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 जून को इस रेलवे लाइन को देश को समर्पित किया, जो पीर पंजाल की पहाड़ियों से होकर गुजरती है. इस लाइन में कई सुरंगें, पुल, घुमावदार रास्ते और घाटियां हैं. इसमें दुनिया का सबसे ऊंचा चिनाब पुल और केबल से लटकता अंजी खड्ड पुल भी शामिल है.

मिज़ोरम की राजधानी आइजोल को जल्द ही रेल से जोड़ा जाएगा
51.38 किलोमीटर लंबी बैराबी-सैरांग रेलवे लाइन मिज़ोरम की राजधानी आइजोल तक पहुंचने वाला एक बड़ा प्रोजेक्ट है, जिसकी लागत लगभग 5,021 करोड़ रुपये है. यह लाइन असम की सीमा के पास स्थित बैराबी को आइजोल से लगभग 20 किलोमीटर दूर एक छोटे से शहर सैरांग से जोड़ेगी.
यह रेललाइन लूशाई पहाड़ियों से होकर गुजरती है, जो भूस्खलन और ज़मीन हिलने वाले इलाके यानी सिस्मिक ज़ोन-V में आता है. यहां लगभग सभी निर्माण कार्य पूरे हो चुके हैं, बस उद्घाटन होना बाकी है.
यह सिंगल लाइन पटरी, बिना बिजली वाली रेललाइन है, जिसमें 48 सुरंगें, 55 बड़े पुल और एक 104 मीटर ऊंचा पिलर शामिल है. यह पिलर दिल्ली के कुतुब मीनार से 42 मीटर ज़्यादा ऊंचा है. कुतुब मीनार दुनिया की सबसे ऊंची ईंट से बनी मीनार मानी जाती है.
इस प्रोजेक्ट को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. यहां लंबे समय तक बारिश होती है और अकसर भूस्खलन भी होते हैं, जिससे निर्माण में दिक्कतें आईं. इसके अलावा, मजदूरों की भी कमी रही क्योंकि ज्यादातार मजदूर दूसरे राज्यों से आए थे. पहाड़ी रास्तों और कठिन इलाके की वजह से इंजीनियरिंग और सामान पहुंचाने में भी दिक्कतें हुईं.
इन सभी चुनौतियों के बावजूद, इस 51 किलोमीटर लंबी लाइन को इस तरह से बनाया गया है कि यह भारी बारिश झेल सके और सौ साल से भी ज्यादा समय तक टिके रह सके.

आइजोल तक पहुंचने वाली रेलवे लाइन को चार हिस्सों में बांटा गया था. इनमें से बैराबी से होकर हॉर्टोकी तक का हिस्सा, जो असम की तरफ है, जुलाई 2024 में ही शुरू हो चुका था.
अब जब बाकी का हिस्सा भी आम लोगों के लिए खोल दिया गया है, तो मिजोरम और असम के बीच सफर का समय 3 से 4 घंटे तक कम हो जाएगा. इसके अलावा, यह रास्ता जरूरत पड़ने पर सेना को तेज़ी से तैनात करने में भी मदद करेगा, क्योंकि यह इलाका रणनीतिक रूप से बहुत अहम माना जाता है.
बंटवारे ने कैसे पूर्वोत्तर को देश से कर दिया था अलग
1947 में देश के बंटवारे के बाद, पूर्वोत्तर भारत की रेल कनेक्टिविटी बाकी भारत से टूट गई थी. उस समय गुवाहाटी को जोड़ने वाली रेललाइन ईस्ट पाकिस्तान (जो अब बांग्लादेश है) से होकर जाती थी. जब वह रास्ता बंद हुआ, तो सिर्फ एक ही जमीन का रास्ता बचा — सिलिगुड़ी कॉरिडोर से होकर जाने वाला पुराना नेशनल हाईवे 31.
इससे न सिर्फ आर्थिक विकास पर असर पड़ा, बल्कि पूर्वोत्तर भारत देश की मुख्यधारा से भी काफी हद तक अलग-थलग हो गया. शुरुआत में सड़क और हवाई संपर्क बेहतर करने की कोशिशें हुईं, लेकिन असली जरूरत थी — रेल कनेक्टिविटी की.
फिर 1962 में सरायघाट पुल बना, जिसने हालात बदल दिए. इस पुल के जरिए गुवाहाटी फिर से भारत के रेल नेटवर्क से जुड़ गया. इससे व्यापार, आवाजाही और जुड़ाव सब कुछ बेहतर हुआ. आज भी यह पुल असम और पूरे पूर्वोत्तर के लिए एक अहम कड़ी बना हुआ है.

अरुणाचल अब सीधे दिल्ली से जुड़ा, रोज़ चलती हैं ट्रेनें
अप्रैल 2014 में अरुणाचल प्रदेश की राजधानी के पास का इलाका पहली बार भारत के रेल नक्शे पर जुड़ा. असम के हरमुटी से नाहरलगुन तक 21 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन बनाई गई, जिस पर करीब 590 करोड़ रुपये खर्च हुए. नाहरलगुन, अरुणाचल की राजधानी ईटानगर के पास है, इसलिए ईटानगर पूर्वोत्तर का दूसरा ऐसा राजधानी क्षेत्र बना जो रेल से जुड़ गया.
इस प्रोजेक्ट को 1996-97 में मंज़ूरी मिली थी, लेकिन रास्ता तय करने में बदलाव और देरी की वजह से यह लाइन 2014 में जाकर पूरी हो सकी.
इसके शुरू होने के बाद नाहरलगुन स्टेशन से रोजाना गुवाहाटी और ऊपरी असम के तिनसुकिया के लिए ट्रेनें चलने लगीं. इसके अलावा, दिल्ली के लिए भी हर हफ्ते दो बार एसी एक्सप्रेस ट्रेन शुरू हुई.
खास मौकों पर नाहरलगुन से गुवाहाटी तक एक शानदार "विस्टाडोम कोच" वाली ट्रेन भी चलाई जाती है, जो इस सफर को और भी यादगार बना देती है. इस कोच में बड़े शीशे की खिड़कियां, कांच की छत और घूमने वाली सीटें होती हैं, जिससे सफर करते हुए ब्रह्मपुत्र नदी का किनारा, हरियाली से भरे मैदान, हिमालय की पहाड़ियों की तलहटी और घने सागौन के जंगलों का नज़ारा पूरी तरह से दिखता है.

अगरतला तक रेल पहुंची, अब सफर तेज़ – पर पुराना सौंदर्य खो गया?
पूर्वोत्तर की जिन राजधानियों को भारत के रेल नक्शे पर जगह मिली, उनमें तीसरा नाम त्रिपुरा की राजधानी अगरतला का है.
पहले अगरतला मीटर गेज (छोटी पटरी) के ज़रिए जुड़ा था, लेकिन 2016 में ब्रॉड गेज (चौड़ी पटरी) की रेल लाइन यहां तक पहुंची. इससे अगरतला आधिकारिक तौर पर देश की तीसरी पूर्वोत्तर राजधानी बन गई, जो रेलवे नेटवर्क से पूरी तरह जुड़ गई. पहले लमडिंग एक ट्रांज़िट पॉइंट की तरह काम करता था, लेकिन ब्रॉड गेज आने के बाद अब सफर सीधा और आसान हो गया है.
अगरतला का नया रेलवे स्टेशन भी देखने लायक है. इसका डिज़ाइन त्रिपुरा के ऐतिहासिक उज्जयंत महल से प्रेरित है. यह स्टेशन न सिर्फ पूर्वोत्तर में, बल्कि पूरे देश में सबसे सुंदर रेलवे स्टेशनों में गिना जाता है.
यह रेलमार्ग असम के सिलचर होते हुए जाता है और बराक घाटी से होकर निकलता है. यह इलाका अपनी पहाड़ियों, घने जंगलों और चाय बागानों के लिए जाना जाता है.
पहले जब यहां मीटर गेज की ट्रेनें चला करती थीं, तब यह सफर बहुत ही खूबसूरत और रोमांचक होता था. ट्रेन धुंध से ढकी पहाड़ियों, गहरी घाटियों और मशहूर हाफलांग पुल को पार करते हुए चलती थी. लेकिन अब जब ब्रॉड गेज ट्रेनें चलने लगी हैं, जो तेज रफ्तार से सफर तय करती हैं, तो पहले जैसा धीमा मगर दिल को छू जाने वाला अनुभव अब कम हो गया है.
हालांकि अब ऐसी ख़बरें हैं कि नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर रेलवे मीटर गेज के कुछ हिस्सों को "हेरिटेज रूट" यानी विरासत मार्ग के रूप में बचाए रखने पर विचार कर रही है, ताकि उस पुराने अनुभव को पूरी तरह खोने से बचाया जा सके.
जब अगरतला को ब्रॉड गेज रेललाइन से जोड़ा गया, तो वहां से गुवाहाटी, कोलकाता और दिल्ली जैसी बड़ी शहरों तक सीधी ट्रेन सेवाएं शुरू हो गईं. इससे यात्रा पहले से कहीं ज़्यादा आसान और तेज हो गई.
अगरतला से एक और खास रास्ता बांग्लादेश के अखौरा के जरिए बन रहा है, जो भविष्य में कोलकाता और अगरतला को सीधे ढाका होकर जोड़ेगा. यह रास्ता भारत के मौजूदा लंबे मार्ग — मालदा, न्यू जलपाईगुड़ी, गुवाहाटी और बदरपुर के रास्ते से बहुत छोटा होगा. यह इंडियन रेलवे की एक बड़ी योजना का हिस्सा है.
अब, अगरतला को ब्रॉड गेज से जुड़े नौ साल हो गए हैं — और अब मिज़ोरम की राजधानी आइजोल की बारी है. वहां का रेल प्रोजेक्ट लगभग पूरा हो चुका है और जल्द ही उसका उद्घाटन होने की उम्मीद है. इसके साथ ही पूर्वोत्तर भारत और ज़्यादा मजबूत तरीके से देश से जुड़ जाएगा.
हालांकि, इस इलाके में भूस्खलन का खतरा हमेशा बना रहता है. 2022 में एक बड़ा भूस्खलन हुआ था, जिससे रेल सेवा कई महीनों तक ठप हो गई थी.
फिलहाल, दिसपुर (असम), ईटानगर (अरुणाचल प्रदेश) और अगरतला (त्रिपुरा) — ये तीन राजधानी क्षेत्र रेल से जुड़ चुके हैं. अब अगली बारी है — मणिपुर की इंफाल, नागालैंड की कोहिमा, मेघालय की शिलॉन्ग, और सिक्किम के रंगपो और फिर गंगटोक की. इन सभी शहरों को जोड़ने की योजना पर काम तेज़ी से चल रहा है.

इंफाल, कोहिमा, शिलॉन्ग, गंगटोक: अब रेल संपर्क का अगला पड़ाव
रेल मंत्रालय का लक्ष्य है कि साल 2030 तक पूर्वोत्तर की सभी राजधानी शहरों को रेल नेटवर्क से जोड़ दिया जाए. इस दिशा में कई प्रोजेक्ट अलग-अलग चरणों में चल रहे हैं, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा राज्य सीधे रेल से जुड़ सकें.
नागालैंड की राजधानी कोहिमा के पास तक रेल पहुंचाने के लिए 82 किलोमीटर लंबी दीमापुर-जुब्जा रेलवे लाइन बनाई जा रही है. कोहिमा इस रेललाइन से सिर्फ़ 20 किलोमीटर की दूरी पर है. वैसे डिमापुर पहले से ही राज्य का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र है और यह असम की सीमा पर बसा है. यहां से दिल्ली से डिब्रूगढ़ जाने वाली मुख्य रेललाइन दशकों से चल रही है.
उधर मणिपुर में 110 किलोमीटर लंबी जीरीबाम–तुपुल रेललाइन लगभग पूरी हो चुकी है. अब इंफाल, जो मणिपुर की राजधानी है, वहां से रेलवे स्टेशन की दूरी सिर्फ़ 25 किलोमीटर रह गई है.

शिलॉन्ग और गंगटोक की राह भी अब ज़्यादा दूर नहीं
मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग अब तक सीधे रेल नेटवर्क से नहीं जुड़ पाई है. लेकिन इसका इंतजार जल्द खत्म हो सकता है. इस दिशा में पहला कदम है टेटेलिया–बर्नीहाट रेललाइन, जो अभी निर्माणाधीन है. बर्नीहाट तक रेल पहुंचने के बाद, भविष्य में इसे शिलॉन्ग तक लगभग 100 किलोमीटर आगे बढ़ाने की योजना है. इससे मेघालय की राजधानी को सीधे राष्ट्रीय रेल नेटवर्क से जोड़ा जा सकेगा.
सिक्किम — जिसे 'सात बहनों का भाई' कहा जाता है — वहां भी रेल लाइन लाने की कोशिशें चल रही हैं. 44 किलोमीटर लंबी सिवोक–रंगपो रेललाइन पर काम जारी है. यह लाइन मुख्य रूप से सुरंगों से होकर गुज़रेगी, और इसे भारत की सबसे ज़्यादा टनल वाली रेल परियोजनाओं में गिना जा रहा है. इस प्रोजेक्ट का दूसरा चरण रंगपो से गंगटोक तक और फिर नाथू ला बॉर्डर तक विस्तार करने का है, जो चीन की सीमा तक रेलवे पहुंचाने की तैयारी का हिस्सा है.
एक लंबा सफर, जो अब अपने मुकाम की ओर बढ़ रहा है
यह पूरा रेल संपर्क अभियान 1962 में शुरू हुआ था, जब सरायघाट पुल बना और गुवाहाटी को दोबारा राष्ट्रीय रेल नेटवर्क से जोड़ा गया. यह एक ऐसा मोड़ था जिसने पूर्वोत्तर को देश की मुख्यधारा से जोड़ने की नींव रखी.
अब, छह दशकों से भी ज़्यादा समय बाद, यह सपना तेज़ रफ्तार पकड़ चुका है. एक-एक कर पूर्वोत्तर की राजधानियां सुरंगों, पुलों और दुर्गम पहाड़ियों को पार कर रेल से जुड़ रही हैं.
अगर सब कुछ योजना के मुताबिक चलता रहा, तो 2030 तक पूर्वोत्तर की हर राजधानी शहर को भारत के रेल नक्शे पर देखा जा सकेगा — और यह केवल कनेक्टिविटी नहीं, बल्कि जुड़ाव, विकास और एकता की मिसाल होगी.