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Exclusive: एमएसपी गारंटी पर व‍िचार-व‍िमर्श जारी लेक‍िन... कृष‍ि मंत्री श‍िवराज चौहान ने दाम पर की 'दमदार' बात

कृष‍ि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 'क‍िसान तक' से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने बेबाकी से कई सवालों के जवाब दिए. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा क‍ि एमएसपी गारंटी के मुद्दे पर व‍िचार-व‍िमर्श जारी है, लेक‍िन उस पर कुछ लोगों की कई आपत्त‍ियां भी हैं.

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केंद्रीय कृषि‍ मंत्री शिवराज सिंह चौहान (फाइल फोटो)
केंद्रीय कृषि‍ मंत्री शिवराज सिंह चौहान (फाइल फोटो)

केंद्रीय कृष‍ि मंत्री श‍िवराज स‍िंह चौहान ने कहा है क‍ि कृष‍ि क्षेत्र और क‍िसानों की तरक्की के ल‍िए केंद्र सरकार हर राज्य का कृष‍ि रोडमैप बनवाने की कोश‍िश कर रही है. हमें अब सोचना होगा क‍ि कोई चीज इतनी ज्यादा पैदा न हो जाए क‍ि क‍िसानों को दाम ही न म‍िले. टमाटर ज्यादा पैदा हो गया तो रेट कम हो गए हैं. जरूरत ज‍िस चीज की है क‍िसान उस पर फोकस करें. कौन-सी फसल को कितना पैदा करना है हम कृष‍ि रोडमैप में उसका आकलन करेंगे. ड‍िमांड और सप्लाई को देखेंगे. विकस‍ित कृष‍ि संकल्प अभ‍ियान का यही मकसद है क‍ि खेती साइंट‍िफ‍िक हो जाए. 

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कृष‍ि मंत्री ने यह बात 'क‍िसान तक' से खास बातचीत में कही. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा क‍ि एमएसपी गारंटी के मुद्दे पर व‍िचार-व‍िमर्श जारी है, लेक‍िन उस पर कुछ लोगों की कई आपत्त‍ियां भी हैं. पेश है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश: 
 
सवाल: आप पंजाब में उन लोगों के गढ़ में पहुंच गए जहां से सरकार के ख‍िलाफ इतना बड़ा क‍िसान आंदोलन चला. वहां के क‍िसानों के साथ संवाद का अनुभव कैसा रहा?  

जवाब: पंजाब के क‍िसान बहुत अच्छे और मेहनती हैं. वो व‍िजनरी हैं इसल‍िए उन्होंने खेती में कई तरह के प्रयोग क‍िए हैं और अन्न के भंडार भरने में उनका बहुत बड़ा योगदान है. मुझे तो पंजाब जाकर बहुत अच्छा लगा. मैंने गांवों में क‍िसानों के साथ बैठकर चर्चा की. हमने उनकी समस्याएं भी सुनीं, उन्होंने जो इनोवेशन क‍िए हैं उस पर भी बात की. मुझे वहां के क‍िसान बहुत अच्छे, धीर और वीर लगे. चीजें ठीक हैं, हमको संवाद और संपर्क हमेशा करना चाह‍िए. लोग बहुत अच्छे हैं. बातचीत करेंगे तो सब मुद्दों का समाधान होगा. मैं द‍िन भर पंजाब के खेतों में था. वहां के क‍िसानों के साथ मुझे तो बहुत अच्छा लगा. 

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सवाल: आप खुद खेती करते हैं. आपने क‍िसानों के बीच बताया क‍ि आपके खुद के खेत के टमाटर का सही दाम नहीं म‍िला. इसी समस्या से पूरे देश के क‍िसान परेशान हैं. आख‍िर क‍िसान पर कंज्यूमर भारी क्यों पड़ता है?   

जवाब: हमको बहुत संतुल‍ित सोचना पड़ेगा. कई बार जरा सी कीमत बढ़ी नहीं क‍ि मीड‍िया भी खबर चलाने लगता है क‍ि टमाटर लाल हुआ और प्याज ने आंसू न‍िकाले...हम ये नहीं देखते क‍ि कभी टमाटर और प्याज बहुत सस्ता भी होता है. कभी-कभी ऐसा चक्र आता है क‍ि क‍िसान को ठीक पैसे म‍िल जाते हैं और कभी-कभी उसे बहुत कम दाम में बेचना पड़ता है. ऐसे मामले में पूरा देश क‍िसानों के बारे में भी सोचे. टमाटर 2 रुपये क‍िलो और उससे नीचे के दाम पर भी कई जगहों पर चला गया है. कुछ बार अगर टमाटर 40-50 रुपये क‍िलो हो भी गया तो हर्ज क्या है? 

अगर बाजार में 50 रुपये क‍िलो पर भी टमाटर ब‍िकता है तो भी क‍िसानों को पूरा लाभ नहीं म‍िलता है. आधा म‍िलता है. बीच के लोग बाकी फायदा ले जाते हैं. ऐसे में सबको क‍िसान के बारे में भी सोचना चाह‍िए क‍ि उसे प्राइस म‍िल जाए. संतुल‍ित फैसला करना चाह‍िए. हम उपभोक्ता के बारे में भी सोचें लेक‍िन क‍िसान के बारे में भी सोचें ताक‍ि उन्हें नुकसान न हो. इसल‍िए मेरी तो अपील है क‍ि जनता खासकर शहरी उपभोक्ता और मीड‍िया भी अपना माइंडसेट बदले. मीड‍िया ही व‍िषय बनाता है. अगर क‍िसान से साल में 5-10 द‍िन या 20 द‍िन 30-40 रुपये क‍िलो प्याज-टमाटर खरीद ल‍िया तो कुछ ब‍िगड़ता नहीं है.

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सवाल: साल 2023 में जब प्याज का दाम स‍िर्फ 40 रुपये प्रत‍ि क‍िलो था तब सरकार ने उस पर 40 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाई. फ‍िर एक्सपोर्ट बैन क‍िया. जब इस तरह का कोई फैसला ल‍िया जाता है ज‍िससेक‍ि क‍िसानों पर असर पड़े, तब क्या कृष‍ि मंत्रालय को लूप में रखा जाता है? 

जवाब: हां, जब भी ऐसे फैसले होते हैं तब मंत्रालय लूप में रहता है. हमको यह भी ध्यान में रखना है क‍ि देश की जनता को खाने-पीने की चीजों की कमी का सामना न करना पड़े. उतना तो ध्यान रखना पड़ेगा. क‍िसानों के ह‍ितों का ध्यान रखते हुए कंज्यूमर का भी उतना ध्यान रखना हमारा कर्तव्य है. इस समय हमारे बासमती का सालाना एक्सपोर्ट लगभग 50 हजार करोड़ रुपये का है. यह एक्सपोर्ट और बढ़ना चाह‍िए. लेक‍िन अगर कभी ऐसी स्थ‍ित‍ि बन जाए क‍ि चावल की कमी हो तो एक्सपोर्ट बैन या ड्यूटी बढ़ानी पड़ती है. कुल म‍िलाकर क‍िसान और कंज्यूमर के बीच संतुलन बहुत जरूरी है. 

सवाल: मेरा सवाल यह है क‍ि अभी तक गेहूं एक्सपोर्ट बैन है. साल 2024 में प्याज एक्सपोर्ट बैन हुआ था. ऐसे फैसलों के वक्त क्या कृष‍ि मंत्रालय से कोई राय ली जाती है? 

जवाब: हम अपना मत भी देते हैं. आपने देखा होगा क‍ि इसील‍िए प्याज एक्सपोर्ट बैन खत्म हुआ. प्याज पर लगी एक्सपोर्ट ड्यूटी घटी, फ‍िर खत्म हुई. क‍िसानों को सरसों और सोयाबीन का सही दाम म‍िले इसके ल‍िएखाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाई गई. उसके साथ-साथ कई चीजों के बारे में ऐसे फैसले हुए जो क‍िसानों के ह‍ितों को ध्यान में रखते हुए ल‍िए गए. 

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सवाल: क‍िसान कहते हैं क‍ि प्याज के बफर स्टॉक की खरीद उनके ल‍िए खतरनाक है. नेफेड और एनसीसीएफ 15 रुपये क‍िलो पर खरीद करेंगे और जब 70 रुपये दाम होगा तो 35 रुपये पर बेच देंगे. इस तरह मार्केट खराब हो जाएगा और क‍िसानों को नुकसान होगा. उनकी आय कैसे बढ़ेगी?  

जवाब: कई चीजों का बफर स्टॉक भी जरूरी है. क‍िसान का नुकसान न हो यह ध्यान में रखना चाह‍िए. हमने एमआईएस (Market Intervention Scheme) स्कीम क‍िसानों को नुकसान से बचाने के ल‍िए बनाई है. अगर कम दाम की पर‍िस्थ‍ित‍ि आ जाए तो फ‍िर अपने क‍िसानों को ठीक दाम देने के ल‍िए इस स्कीम को राज्य अपना सकते हैं. भावांतर योजना है, ज‍िसमें नुकसान की भरपाई का प्रावधान है. लेक‍िन यह राज्य सरकार को करना है.

क‍िसानों पर जब कम दाम म‍िलने का संकट आए उस स्थ‍ित‍ि में हमने उनके ह‍ितों की रक्षा के ल‍िए योजनाएं बनाई हुई हैं. ऐसी योजनाओं का राज्य इस्तेमाल कर सकते हैं. हां, क‍िसानों की उपज पर इस तरह के प्रत‍िबंध नहीं होने चाह‍िए, लेक‍िन जब देश को जरूरत हो तो सरकार को कुछ कदम उठाने पड़ते हैं. हर‍ियाणा जैसे राज्यों ने पीएम आशा योजना के तहत भावांतर भुगतान योजना का इस्तेमाल क‍िया है. लेक‍िन कृष‍ि मूलत: राज्यों का व‍िषय है. अंत‍िम फैसला राज्यों को करना पड़ता है. ज‍िन फसलों पर एमएसपी घोष‍ित है उनकी खरीद की व्यवस्था कर रखी है. कोश‍िश पूरी है. हां, फल-सब्ज‍ियों में अभी द‍िक्कत है.

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सवाल: आपने हर‍ियाणा का ज‍िक्र क‍िया. वहां नायब स‍िंह सैनी ने सभी फसलों को एमएसपी पर खरीदने की बात कही है. क्या उसी तर्ज पर बाकी राज्य फैसला नहीं ले सकते. क्यों केंद्र पर ही एमएसपी का दबाव ज्यादा द‍िखता है? 

जवाब: मेरा सीधा ये कहना है क‍ि कृष‍ि राज्य का व‍िषय है और केंद्र उसमें सहयोग करता है. केंद्र रिसर्च करने में और उत्पादन बढ़ाने के ल‍िए योजनाएं बनाने में मदद करता है. साथ ही क‍िसानों को सहूल‍ियत देने के ल‍िए एमएसपी पर खरीदी और बाकी चीजें करता है. लेक‍िन, खेती मूलत: राज्य सरकार का व‍िषय है. तो केंद्र और राज्य को म‍िलकर काम करना चाह‍िए. जैसे हर‍ियाणा ने एमएसपी और दूसरी चीजों को लेकर कई फैसले राज्य के स्तर पर ल‍िए. उसी तर‍ह हर राज्य स्वतंत्र है अपने क‍िसानों के ह‍ित में फैसले लेने के ल‍िए. हर‍ियाणा सरकार ने अगर 23 फसलों की एमएसपी पर खरीद की बात कही तो अपने स्तर पर कही. वहां की सरकार एमएसपी पर खरीद भी कर रही है.  

सवाल: एमएसपी से जुड़ा एक और सवाल भेदभाव का है. पंजाब में एक क्व‍िंटल गेहूं पैदा की लागत करीब 900 रुपये आती है जबक‍ि महाराष्ट्र में 2500 रुपये के आसपास है. तो फ‍िर एक एमएसपी होना क्या जायज है. क्या आगे चलकर राज्य वार एमएसपी हो सकती है?  

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जवाब: नहीं, अलग-अलग राज्यों को अलग-अलग एमएसपी देना बहुत कठ‍िन काम है. जहां आप कम दाम दोगे वहां के क‍िसानों को समझाना मुश्क‍िल होगा. ऐसे में देश में फसलों की औसत उत्पादन लागत के ह‍िसाब से ही एमएसपी तय हो सकती है. अलग-अलग प्रदेश में अलग-अलग एमएसपी कर देंगे तो बहुत असंतोष पैदा होगा. 

सवाल: लेक‍िन आप लोग छत्तीसगढ़ में धान का रेट ज्यादा दे रहे हैं, बाकी में कम दे रहे हैं. इसी तरह गेहूं का सरकारी रेट राजस्थान और मध्य प्रदेश में अन्य सूबों से ज्यादा है. ऐसा क्यों? 

जवाब: देख‍िए, दाम का यह जो अंतर है वो राज्यों ने खुद क‍िया है. राज्य स्वतंत्र हैं अपने-अपने क‍किसानों को सुव‍िधा देने के ल‍िए, लेक‍िन केंद्र भेदभाव नहीं कर सकता. फसलों का अलग-अलग रेट केंद्र नहीं कर सकता. ये तो राज्यों का फैसला है क‍ि वो अपने क‍िसानों को क‍ितना पैसा देंगे. 

सवाल: अगर कोई राज्य अपने क‍िसानों को कृष‍ि उपज के सरकारी दाम के ऊपर बोनस दे रहा है तो उस पर केंद्र को कोई आपत्त‍ि नहीं है? 

सवाल: राज्य, अपने फैसले कर सकते हैं. वो अलग-अलग नाम पर योजनाएं चलाते हैं. तो राज्य की योजनाओं को हम कैसे रोक सकते हैं? बोनस की बात अलग है, लेक‍िन कोई उत्पादकता प्रोत्साहन राश‍ि दे रहा है तो कोई क‍िसी नाम से मदद दे रहा है. वो राज्य के फैसले हैं. हम उसको क्यों रोकेंगे? 

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सवाल: एमएसपी कमेटी के कुछ सदस्यों ने कहा है क‍ि वो एमएसपी गारंटी तो नहीं लेक‍िन र‍िजर्व प्राइस की स‍िफार‍िश कर सकते हैं, आप क्या सोचते हैं? 

जवाब: प्राइस तो तय ही है. एमएसपी पर फसलों की खरीद तो र‍िकॉर्ड हो रही है. लेक‍िन कई चीजों में व्यवहार‍िक पहलू भी देखने पड़ते हैं. अब कई तरह की समस्याएं हैं. एफएक्यू  (Fair Average Quality) के नीचे अगर कोई अनाज है तो ब‍िकेगा कैसे फ‍िर. इसल‍िए हमें कई चीजों को ध्यान में रखना पड़ता है. अभी तो ब‍िलो एफएक्यू का भी माल ब‍िकता है. क्वाल‍िटी ठीक नहीं है तो उसका कम दाम म‍िलता है, लेक‍िन उसे व्यापारी खरीद लेता है. बाद में ऐसा कोई कानून आ जाए तब तो ऐसी खरीद पर बैन ही लग जाएगा. इसल‍िए कई व्यवहार‍िक चीजें हैं. सब पक्ष सोचने पड़ते हैं. 

सवाल: तो क्या एमएसपी गारंटी जैसे क‍िसी ट्रैक पर सरकार नहीं जाएगी? 

जवाब: उसके ल‍िए व‍िचार-व‍िमर्श जारी है. लेक‍िन कुछ लोगों की कई आपत्त‍ियां भी हैं उस पर. 

सवाल: दाम को लेकर आपसे क‍िसानों को बहुत उम्मीद है. कैसे पूरी होगी? 

जवाब: हम राज्यों के साथ बैठकर हर राज्य का कृष‍ि रोडमैप की कोश‍िश कर रहे हैं. अब सबको दूसरे ढ़ंग से सोचना पड़ेगा. कोई चीज इतनी ज्यादा पैदा न हो जाए क‍ि दाम ही न म‍िले. क्योंक‍ि फ‍िर मार्केट काम करता है. टमाटर ज्यादा पैदा हो गया तो रेट कम हो गए. जरूरत ज‍िस चीज की है उस पर फोकस करें. कौन सी फसल को क‍ितना पैदा करना है हम कृष‍ि रोडमैप में उसका आकलन करेंगे. ड‍िमांड और सप्लाई को देखेंगे. 

रोडमैप का मतलब यही है क‍ि क‍िन चीजों की जरूरत है, क‍िसका अच्छा मार्केट म‍िल सकता है. कई क‍िसान खुद बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और वो बहुत पैसा भी कमा रहे हैं. व‍िकस‍ित कृष‍ि संकल्प अभ‍ियान का यही मकसद है क‍ि खेती साइंट‍िफ‍िक हो जाए. जरूरत के मुताब‍िक हो. क‍िसानों को भी नया सोचना पड़ेगा. 

सवाल: दाम से ही जुड़ा एक और सवाल है, क्योंक‍ि क‍िसान इसी से सबसे ज्यादा पीड़‍ित हैं. जब कृष‍ि उपज के दाम ग‍िर जाते हैं तब क‍िसानों को कोई पूछने नहीं आता और जब दाम बढ़ता है तब सारी सरकारी एजेंस‍ियां उसे ग‍िराने पर लग जाती हैं. ऐसा क्यों? 

जवाब: सरकार क‍िसान ह‍ितैषी है. इसल‍िए क‍िसानों के ह‍ितों का संरक्षण हमारा प्राथम‍िक दाय‍ित्व है. इसील‍िए राज्य सरकारें अगर प्रस्ताव भेजती हैं तो एमआईएस या भावांतर योजना के तहत हम उनको खरीद की अनुमत‍ि देंगे. ताक‍ि क‍िसान कम दाम के स्ट्रेस में न रहे. जैसे टमाटर के दूसरे शहर में ट्रांसपोर्टेशन का भार उठाने की योजना बनाई गई है. लेक‍िन करना राज्य सरकार को ही है. केंद्र तो सहयोग देने के ल‍िए तैयार है.  

सवाल: इस अभियान के बाद कोई रिपोर्ट भी आएगी क्या? 

जवाब: इस अभ‍ियान के तहत ज‍ितनी भी टीमें क‍िसानों से म‍िली हैं उसकी फाइंड‍िंग सामने आएगी. जो भी नोडल अवसर हैं पहले उनके पास फाइंड‍िंग आएगी. उसके बाद मेरे पास र‍िपोर्ट आएगी. फिर पूरी टीम म‍िलकर मुद्दों पर विचार करेगी और हम उसका एक्शन प्वाइंट बनाएंगे. उसके ह‍िसाब से एग्रीकल्चर रिसर्च की दिशा दशा तय होगी. उसी ह‍िसाब से कृष‍ि कार्यक्रमों और योजनाओं में परिवर्तन होगा. किसान भी साइंटिस्ट हैं. कई किसान अद्भुत काम कर रहे हैं. यह स‍िखाने से ज्यादा सीखने का कार्यक्रम है. 

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