कर्नाटक का टेंपल टाउन धर्मस्थल इन दिनों अफवाहों की आमद से तपा हुआ है. एक सोशल एक्टिविस्ट ने आरोप लगाया है कि यहां 15 सालों तक महिलाओं को सामूहिक रूप से दफन (Mass burial) किया गया, कई महिलाओं के साथ यौन हिंसा हुई और इसे ढकने के प्रयास किए गए. ये सिलसिला डेढ़ दशकों तक जारी रहा.
यह मामला तब प्रकाश में आया जब एक पूर्व सफाई कर्मचारी ने दावा किया कि उसे 1998 से 2014 के बीच उसे महिलाओं और नाबालिगों के शवों को दफनाने और उनका दाह संस्कार करने के लिए मजबूर किया गया था, जिनमें से कई पर कथित तौर पर हमले के निशान थे.
इस शख्स की शिकायत के बाद एफआईआर दर्ज की गई, गवाहों को सुरक्षा प्रदान की गई और कंकालों के अवशेषों को अदालत में पेश किया गया.
इस दौरान लोगों का गुस्सा उबल उठा. जन आक्रोश, कानूनी हस्तक्षेप और 2003 में एक महिला के लापता होने की शिकायत सहित अन्य आरोपों के बाद सरकार को इस पूरे मामले की जांच के लिए SIT का गठन करना पड़ा.
इस मामले में प्रमुख घटनाक्रम सिलसिलेवार तरीके से इस तरह हैं.
22 जून
वकील ओजस्वी गौड़ा और सचिन देशपांडे ने एक पूर्व सफाई कर्मचारी से मुलाकात की. इस कर्मचारी ने दावा किया कि वह धर्मस्थल में कब्रों की पहचान कर सकता है और इस शख्स ने कथित अपराधों का पर्दाफाश करने में मदद करने की इच्छा व्यक्त की.
27 जून
बेंगलुरु स्थित वकीलों के एक प्रतिनिधिमंडल ने दक्षिण कन्नड़ पुलिस अधीक्षक से सामूहिक कब्र के दावों की औपचारिक जांच का अनुरोध किया.
3 जुलाई
पूर्व सफाई कर्मचारी ने पुलिस अधीक्षक को एक लिखित शिकायत दी. उन्होंने फोटोग्राफिक साक्ष्य भी शामिल किए और आरोप लगाया कि उन्हें 16 साल की अवधि में महिलाओं और नाबालिगों के शवों को दफनाने के लिए मजबूर किया गया.
4 जुलाई
धर्मस्थल पुलिस ने शिकायत के आधार पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 211(ए) के तहत प्राथमिकी दर्ज की.
10 जुलाई
मामले का खुलासा करने वाले शख्स को गवाह संरक्षण योजना के तहत सुरक्षा प्रदान की गई.
11 जुलाई (सुबह)
शिकायतकर्ता बेलथांगडी अदालत में पेश हुआ और उसने कंकाल के अवशेष प्रस्तुत किए, जिनके बारे में उसने दावा किया कि उसने इसे एक कब्रगाह से निकाला था,
11 जुलाई (शाम)
शिकायतकर्ता के वकील पवन देशपांडे ने मीडिया को एक औपचारिक बयान जारी किया. उन्होंने आरोपों की गंभीरता पर जोर दिया, अवशेषों की प्रामाणिकता की पुष्टि की और एक स्वतंत्र जांच की जरूरत पर जोर दिया.
13 जुलाई
पुलिस ने एक यूट्यूबर समीर एमडी पर कथित तौर पर एआई द्वारा निर्मित वीडियो के माध्यम से मामले के बारे में गलत जानकारी फैलाने का मामला दर्ज किया.
14 जुलाई
राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष नागलक्ष्मी चौधरी ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर संदिग्ध मौतों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन का आग्रह किया.
15 जुलाई
बेंगलुरु की एक महिला ने शिकायत दर्ज कराई कि उसकी एमबीबीएस छात्रा बेटी 2003 में धर्मस्थल जाने के बाद लापता हो गई थी. कार्यकर्ताओं ने न्यायिक निगरानी और एसआईटी के हस्तक्षेप की अपनी मांग दोहराई.
16 जुलाई
वकीलों के एक समूह ने एक याचिका दायर कर आरोप लगाया कि व्हिसलब्लोअर के गोपनीय बयान एक यूट्यूबर को लीक कर दिए गए थे जिससे गवाहों की सुरक्षा और जांच की निष्पक्षता को लेकर चिंताएं पैदा हो गई थी.
17 जुलाई
दक्षिण कन्नड़ के जिला प्रभारी मंत्री दिनेश गुंडू राव ने जनता को आश्वासन दिया कि जांच पारदर्शी तरीके से की जाएगी और किसी भी व्यक्ति को बचाया नहीं जाएगा.
18 जुलाई
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सार्वजनिक रूप से इस मामले को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार किसी दबाव में नहीं है और तथ्यों के आधार पर उचित कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने आश्वासन दिया कि जांच बिना किसी पूर्वाग्रह या हस्तक्षेप के आगे बढ़ेगी.
19 जुलाई
कर्नाटक सरकार ने पुलिस महानिदेशक (आंतरिक सुरक्षा) प्रणब मोहंती की अध्यक्षता में एक एसआईटी का गठन किया गया. वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी एम.एन. अनुचेथ, सौम्यलता और जे.के. दयामा को इस दल में शामिल किए गए. इन अफसरों को धर्मस्थल से जुड़े सभी अप्राकृतिक मौतों, गुमशुदगी और यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच का दायित्व सौंपा गया.
20 जुलाई
श्री क्षेत्र धर्मस्थल ने एक बयान जारी कर एसआईटी के गठन का स्वागत किया और तथ्यों की पुष्टि के लिए एक निष्पक्ष और उच्च-स्तरीय जांच का समर्थन व्यक्त किया.
21 जुलाई
एसआईटी ने औपचारिक रूप से अपनी जांच शुरू कर दी है. राज्य महिला आयोग और नागरिक समाज संगठनों ने इस कदम का स्वागत किया है. श्री क्षेत्र धर्मस्थल ने निष्पक्ष, पारदर्शी और निष्पक्ष जांच की अपनी मांग दोहराई है.