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दोगुनी रफ्तार में हो रहा एशिया में गर्मी का तांडव, बार‍िश भी नहीं पीछे... जानिए कैसे भारत झेल रहा तगड़ा झटका

एशिया दुनिया का सबसे बड़ा महाद्वीप है और इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज के अनुसार जमीन समंदर के मुकाबले जल्दी गर्म होती है. लेकिन बात यहीं खत्म नहीं एशिया के आसपास के समंदर भी उतनी ही तेजी से तप रहे हैं.  समंदर का तापमान हर दशक में 0.24 डिग्री सेल्सियस बढ़ रहा है जो दुनिया के औसत (0.13 डिग्री) से दोगुना है.  

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Asia is heating up and India is feeling the burn (Representational Image)
Asia is heating up and India is feeling the burn (Representational Image)

'गर्मी ने तो हद कर दी और भारत में हाल बेहाल!' एशिया दुनिया के बाकी हिस्सों से दोगुनी रफ्तार से तप रहा है और इसका नुकसान अब साफ दिख रहा है. वर्ल्ड मेटियोरोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन की ताजा ‘स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन एशिया’ रिपोर्ट के मुताबिक 2024 एशिया में सबसे गर्म सालों में से एक रहा. पिछले साल एशिया का औसत तापमान 1991-2020 के मुकाबले 1.04 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था. 

एशिया इतना क्यों तप रहा?

एशिया दुनिया का सबसे बड़ा महाद्वीप है और इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज के अनुसार जमीन समंदर के मुकाबले जल्दी गर्म होती है. लेकिन बात यहीं खत्म नहीं एशिया के आसपास के समंदर भी उतनी ही तेजी से तप रहे हैं.  समंदर का तापमान हर दशक में 0.24 डिग्री सेल्सियस बढ़ रहा है जो दुनिया के औसत (0.13 डिग्री) से दोगुना है.  

भारत पर भारी पड़ रही गर्मी

भारत अपनी बड़ी आबादी, लंबी तट रेखा और खेती पर निर्भरता की वजह से पहले से ही जलवायु परिवर्तन का शिकार है. साल 2024 में देश ने अपनी सबसे लंबी गर्मी की लहर झेली. ये वो समय था जब कई राज्यों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस के पार चला गया. इससे 450 से ज्यादा लोगों की जान गई. 

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पिछले साल 2024 में 366 में से 322 दिन भारत में मौसम की मार पड़ी जिसमें 3,472 लोग मारे गए और 40.7 लाख हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई. सोच‍िए मार्च से 17 अप्रैल 2025 तक 12 राज्यों में बिजली गिरने से 162 लोगों की मौत हुई, जो 2024 के मुकाबले 184% ज्यादा है.  

बारिश भी कम खतरनाक नहीं

जुलाई 2024 में केरल के वायनाड में भारी बारिश से भूस्खलन हुआ जिसमें 350 से ज्यादा लोग मारे गए. वर्ल्ड वेदर एजेंट्रीब्यूशन की स्टडी कहती है कि ये बारिश इंसानों की वजह से 10% ज्यादा भयानक थी. 

2025 के पहले तीन महीनों में तो हर दिन मौसम की मार पड़ी. ‘स्टेट ऑफ इंडियाज़ एनवायरनमेंट 2025’ रिपोर्ट के मुताबिक, तीन साल में मौसम से होने वाली मौतें 15% बढ़ीं और फसलों का नुकसान दोगुना हो गया. WMO की चीफ सेलेस्टे साउलो ने चेताया कि तापमान, ग्लेशियर, और समंदर का बढ़ता स्तर समाज, अर्थव्यवस्था, और पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा है। मौसम की मार अब बर्दाश्त से बाहर हो रही है.   

क्या है बचने का रास्ता

इस सबके बावजूद, जलवायु से बचाव के लिए फंडिंग कम है. वर्ल्ड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट कहती है कि जलवायु-रोधी इमारतें, अर्ली वॉर्निंग सिस्टम, और प्राकृतिक संसाधनों की बहाली न सिर्फ़ जान बचाती है बल्कि पैसे भी कमाती है. 1 डॉलर खर्च करने से अगले दशक में 10 डॉलर तक की बचत हो सकती है. बाढ़, सूखा, और गर्मी की लहरें बढ़ रही हैं. अब और इंतज़ार न करके हमें अगली तबाही से पहले कदम उठाना होगा.  

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