महाराष्ट्र में बीजेपी सरकार ने थर्ड-लैंग्वेज अनिवार्य करने के फैसले को वापस ले लिया है. यहां मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कुछ दिनों पहले इसे लागू करने का फैसला किया था, लेकिन इसका चौतरफा विरोध हो रहा था. मराठी भाषी स्थानीय नेता इसका विरोध कर रहे थे, जिनमें विपक्षी नेता शामिल थे.
विरोधों के चलते महाराष्ट्र सरकार ने हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने के फैसले को वापस ले लिया. स्कूल शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने घोषणा की है कि अब हिंदी एक वैकल्पिक विषय होगी, जबकि मराठी और अंग्रेजी को स्कूलों में प्राथमिकता दी जाएगी.
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16 अप्रैल को लागू किया गया था हिंदी अनिवार्य का फैसला
यह विरोधाभासी फैसला 16 अप्रैल को घोषित किया गया था, जिसके तहत क्लास 1 से 5 के छात्रों के लिए हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाया गया था. इसे राज्य स्कूल पाठ्यक्रम रूपरेखा-2024 में शामिल किया गया था, जिससे भारी विवाद खड़ा हो गया. शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने सरकार पर हिंदी को राज्य पर थोपने का आरोप लगाते हुए इस फैसले का जोरदार विरोध किया था.
दादा भुसे ने स्पष्ट किया कि सरकारी प्रस्ताव में 'अनिवार्य' शब्द को हटा दिया जाएगा और हिंदी को एक वैकल्पिक विषय के रूप में पेश किया जाएगा. उन्होंने कहा कि जो छात्र हिंदी सीखना चाहते हैं, वे इसे मराठी और अंग्रेजी के साथ ले सकते हैं. सरकार जल्द ही भाषा नीति में बदलाव के लिए एक नया सरकारी प्रस्ताव जारी करेगी.
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देवेंद्र फडणवीस क्या बोले?
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पहले इस मूल नीति का समर्थन किया था, और उनका कहना था कि इससे मराठी की अहमियत कम नहीं होती, लेकिन भाषा परामर्श समिति के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत देशमुख ने इस निर्णय का विरोध किया था, जिसमें प्रक्रिया के उलझाव और भाषा थोपने की आशंका जताई गई थी. कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने भी सरकार के इस उलटफेर का स्वागत किया है, और जोर दिया कि हिंदी को वैकल्पिक ही रखा जाना चाहिए ताकि मराठी की गरिमा बनी रहे.