सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार 1 मार्च को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को लेकर अहम टिप्पणी की. जिसमें कोर्ट ने कहा कि अगर विधानसभा अध्यक्ष को महाराष्ट्र के 39 विधायकों के खिलाफ लंबित अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला लेने से रोका न गया होता तो एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ नहीं ले पाते. वहीं, कोर्ट में शिंदे गुट की तरफ से दलील दी गई कि भले ही 39 विधायकों को विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया होता, तब भी महाविकास अघाड़ी (MVA) की सरकार गिर जाती, क्योंकि उसका बहुमत नहीं रहा था और और तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी बहुमत परीक्षण से पहले ही इस्तीफा दे दिया था.
बता दें कि ठाकरे गुट ने इससे पहले शीर्ष अदालत को बताया था कि निचली अदालत के 27 जून, 2022 को विधानसभा अध्यक्ष को विधायकों के अयोग्य संबंधि लंबित याचिकाओं पर फैसला करने की अनुमति नहीं देना और 20 जून, 2022 के आदेश में विश्वास मत की अनुमति देने के फैसलों के चलते महाराष्ट्र में शिंदे सरकार बनी. मामले की सुनवाई अब गुरुवार को भी जारी रहेगी.
सुनवाई के दौरान सीजेआई डाई चंद्रचुद की अध्यक्षता में पांच-जजों की संविधान पीठ की बेंच ने शिंदे के वकील नीरज किशन कौल से कहा, "वे (उद्धव गुट) इसमें सही हैं कि एकनाथ शिंदे को गवर्नर द्वारा मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई थी और वे अपना बहुमत साबित करने में इसलिए सक्षम थे क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष शिंदे गुट के विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्रवाई करने में सक्षम नहीं थे."
इस पर कौल ने कहा कि 29 जून, 2022 के ठीक बाद, ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया था क्योंकि उन्हें पता था कि उनके पास बहुमत नहीं है और पिछले साल 4 जुलाई को फ्लोर टेस्ट में उनके गठबंधन को केवल 99 वोट मिले थे, क्योंकि एमवीए के 13 विधायकों ने मतदान से खुद को दूर रखा था. शिंदे को 288-सदस्यीय सदन में, 164 विधायकों का साथ मिल था, जबकि 99 विधायकों ने ठाकरे को वोट दिया था.
शिंदे गुट ठाकरे के खिलाफ नहीं था- वकील
कौल ने कहा कि शिंदे गुट कभी भी ठाकरे के खिलाफ नहीं था, लेकिन एमवीए के खिलाफ था. उन्होंने कहा कि हम तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ कभी नहीं थे, लेकिन हम एमवीए गठबंधन के खिलाफ थे. शिवसेना ने भाजपा के साथ पूर्व में गठबंधन किया था और चुनाव के बाद हमने एनसीपी और कांग्रेस की मदद से सरकार का गठन किया. जिसके खिलाफ हम थे.
उन्होंने कहा कि उदधव गुट ने तीन संवैधानिक अधिकारियों - गवर्नर, स्पीकर और चुनाव आयोग की शक्तियों को भ्रमित करने की कोशिश की है और अब चाहते हैं कि सब कुछ अलग -अलग रखा जाए, जिसमें पिछले साल 4 जुलाई के फ्लोर टेस्ट शामिल है.