महाराष्ट्र के जालना जिले में अनोखा मामला सामने आया है. यहां शिवसेना (ठाकरे गुट) का एक कार्यकर्ता श्मशान में अर्थी पर लेट गया. कार्यकर्ता के साथ अन्य तमाम लोग भी मौजूद थे. दरअसल, कार्यकर्ता ने यह अनोखा और प्रतीकात्मक विरोध प्रदर्शन किसानों के समर्थन में किया था, जिसकी तस्वीरें अब वायरल हो रही हैं.
जानकारी के अनुसार, बदनापूर तहसील के केलीगव्हाण गांव में शिवसेना (ठाकरे गुट) के कार्यकर्ता कारभारी म्हसलेकर ने श्मशान में तिरडी (अर्थी) पर लेटकर राज्य सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया. उनका यह अनोखा आंदोलन चर्चा में है. कारभारी म्हसलेकर ने किसानों की संपूर्ण कर्जमाफी की मांग को लेकर यह प्रदर्शन किया.
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उनका कहना है कि जब तक किसानों को कर्ज से मुक्ति नहीं मिलती, तब तक उनका जीवन भी एक तरह से 'श्मशान' जैसा है- बिना भविष्य, बिना सुरक्षा. इसलिए उन्होंने इस बार प्रदर्शन के लिए श्मशान और अर्थी का रास्ता चुना, जिससे सरकार को यह प्रतीकात्मक संदेश दिया जा सके कि किसान आज भी कर्ज के बोझ तले मरने की कगार पर हैं.
म्हसलेकर ने आरोप लगाया कि महायुती सरकार ने विधानसभा चुनाव के दौरान किसानों से संपूर्ण कर्जमाफी का वादा किया था, लेकिन चुनाव जीतने के बाद वह इस मुद्दे को पूरी तरह भूल चुकी है. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के हजारों किसान आज भी बैंक और साहूकारों के कर्ज के बोझ से दबे हुए हैं और आत्महत्या की कगार पर खड़े हैं, लेकिन सरकार की प्राथमिकता कहीं और है.
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यह पहली बार नहीं है जब कारभारी म्हसलेकर ने इस तरह का प्रतीकात्मक और अनोखा आंदोलन किया हो. इससे पहले 7 फरवरी 2025 को उन्होंने एक पेड़ पर चढ़कर प्रदर्शन किया था. उससे पहले कुएं में चारपाई लटकाकर उस पर बैठते हुए भी प्रदर्शन किया था. इन आंदोलनों का उद्देश्य भी किसानों की स्थिति की ओर सरकार और समाज का ध्यान आकर्षित करना था.
अपने आंदोलन के दौरान म्हसलेकर ने कहा कि जब तक सरकार किसानों की संपूर्ण कर्जमाफी नहीं करती, तब तक हमारा आंदोलन अलग-अलग रूपों में जारी रहेगा. किसान आज सबसे अधिक संकट में है. अगर सरकार सुनवाई नहीं करती तो हम और भी कठोर प्रदर्शन करेंगे.
म्हसलेकर का यह 'श्मशान आंदोलन' चर्चा में आ गया. बड़ी संख्या में ग्रामीण लोग मौके पर पहुंचे. इस विरोध प्रदर्शन की तस्वीरें और वीडियो तेजी से वायरल हो रही हैं. अब तक राज्य सरकार की ओर से इस आंदोलन पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है. विपक्ष ने भी इस मुद्दे को लेकर सरकार को घेरा है और कहा कि किसानों की अनदेखी करना लोकतंत्र और समाज दोनों के लिए खतरनाक संकेत है.