राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) बनाम एनसीपी विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. शरद पवार ने महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनावों के दौरान अजित पवार को ‘घड़ी’ चिह्न का इस्तेमाल करने से रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. पवार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अजित को विधानसभा चुनावों के लिए नए चिह्न के लिए आवेदन करने को कहा जाए. पवार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि चुनाव चिह्न को लेकर मतदाताओं के मन में भ्रम की वजह से उन्हें लोकसभा चुनावों के दौरान कई वोट गंवाने पड़े. सुप्रीम कोर्ट 15 अक्टूबर को याचिका पर सुनवाई करेगा.
शरद पवार ने याचिका में क्या कहा है?
- निर्वाचन अधिकारियों के मन में किसी भी तरह का भ्रम न हो, इसके लिए निष्पक्षता और समान अवसर सुनिश्चित करना.
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के मूल सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में याचिकाकर्ता की निष्पक्ष एवं उचित भागीदारी सुनिश्चित करना.
- इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि हाल ही में संपन्न संसदीय चुनावों में मतदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति व्याप्त थी, निर्वाचन क्षेत्रों के अपेक्षाकृत छोटे आकार के कारण आगामी विधानसभा चुनावों में भ्रम की स्थिति संभावित रूप से अधिक होगी.
- इसके अलावा, भ्रम की स्थिति मतदाताओं पर पड़ने वाले प्रभाव के सीधे आनुपातिक होती है तथा इसलिए स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के संचालन को बाधित करने की अधिक प्रवृत्ति रखती है.
- लोगों के मन में विद्यमान एवं स्पष्ट भ्रम का लाभ उठाने के लिए अजीत पवार या किसी अन्य दुर्भावनापूर्ण व्यक्ति द्वारा इरादा किए जाने की संभावना को खारिज करना.
कैसे हुई थी एनसीपी दो फाड़?
पिछले साल अजित पवार ने बगावत करते हुए एनसीपी दो फाड़ कर दी थी. उन्होंने महाराष्ट्र में शिंदे सरकार को समर्थन दे दिया था. अजित के साथ कई विधायक भी सरकार में शामिल हो गए थे. इसके बाद अजित ने पार्टी पर अधिकार का दावा किया था और अपने गुट को असली एनसीपी बताया था. इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने भी अजिट गुट को असली एनसीपी करार दे दिया था. इस फैसले को शरद पवार गुट ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. वहीं अब चुनाव आयोग ने भी अजित गुट को ही असली एनसीपी बताते हुए शरद पवार को बड़ा झटका दिया है.
कैसे तय होता है पार्टी का असली 'बॉस' कौन?
किसी पार्टी का असली 'बॉस' कौन होगा? इसका फैसला मुख्य रूप से तीन चीजों पर होता है. पहला- चुने हुए प्रतिनिधि किस गुट के पास ज्यादा हैं. दूसरा- ऑफिस के पदाधिकारी किसके पास ज्यादा हैं और तीसरा- संपत्तियां किस तरफ हैं. लेकिन किस धड़े को पार्टी माना जाएगा? इसका फैसला आमतौर पर चुने हुए प्रतिनिधियों के बहुमत के आधार पर होता है. मसलन, जिस गुट के पास ज्यादा सांसद-विधायक होते हैं, उसे ही पार्टी माना जाता है. एनसीपी और शिवसेना में इसी आधार पर फैसला किया गया है.