
ये कहानी है लड़के से लड़की बनी नव्या सिंह की. आज मुंबई की सड़कों पर उनके बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगे हुए हैं. वह ऐसी ब्यूटीफुल ट्रांस वीमेन एक्ट्रेस हैं, जिनका ड्रीम सलमान, आमिर, शाहरुख खान के साथ फिल्म करने का है. आज भले ही नव्या सिंह ने मॉडलिंग और अभिनय की दुनिया में नाम कमा लिया है. मगर, इन्हें सबसे ज्यादा परेशानी अपनी आइडेंटिटी हासिल करने में उठानी पड़ी.
बिहार के कटिहार में रहने वाले एक सिख परिवार में पैदा हुईं नव्या आज एक सक्सेसफुट मॉडल और एक्टर हैं. इसके अलावा वह मिस इंडिया ब्यूटी पेजेंट की ब्रांड एंबेस्डर बनकर लोगों के लिए एक प्रेरणा बनी हुईं हैं. नव्या को साल 2016 में इंडिया के प्रमुख मैग्जीन की तरफ से बतौर मॉडल पहला काम मिला था.
प्रोजेक्ट एंजल्स वेब सीरीज में किया लीड रोल
नव्या पांच सालों से मिस ट्रांसक्वीन इंडिया ब्यूटी पेजेंट की ब्रांड एंबेस्डर भी हैं, जिसे भारत की एकमात्र ट्रांसवुमन ब्यूटी पेजेंट शो कहा जाता है. इसके अलावा नव्या मार्स टीवी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रोजेक्ट एंजल्स नामक वेब सीरीज में बतौर लीड अभिनेत्री नजर आ चुकी हैं.

वह कई हिंदी एल्बम सॉन्ग में भी काम कर चुकी हैं. नव्या कहतीं हैं कि यह सफर इतना आसान नहीं था. दादा जी जमीदार थे, तो उनकी और पिता जी की काफी इज्जत थी. मगर, 18 साल की उम्र में कुछ ऐसा हुआ कि मुझे मुंबई आना पड़ा. इसके बाद यह सफर शुरू हुआ. मगर, यह सब इतना आसान नहीं था. जेंडर आईडेंटिटी की लड़ाई थी. करियर के अलावा खुद से भी लड़ाई थी और समाज से भी थी.
आज खुद पर गर्व महसूस होता है- नव्या

मगर, अब जब मुंबई जैसे शहर की सड़कों पर अपने होर्डिंग्स देखती हूं, तो गर्व महसूस होता है. आज मुझसे नफरत करने वाले लोग भी इज्जत दे रहे हैं. अब कहीं जाकर खुद की पहचान के साथ जिंदगी जीने का वह आनंद ले रही हैं. वह कहती हैं कि ट्रांसजेडर वुमन के लिए अपॉर्च्युनिटीज पाना बहुत मुश्किल होता है. एक शार्ट टर्म के लिए मुझे वह अपॉर्च्युनिटी मिली और उससे काफी ज्यादा हाइप मिली.
पापा के शब्दों ने दी आगे बढ़ने की प्रेरणा
नव्या बताती है कि पहले पापा का सपोर्ट उतना नहीं मिला था. मगर, जब वह मुंबई आए और डॉक्टर्स से काउंसलिंग ली. फिर हमने घंटों बैठकर डिस्कशन किया, तो पापा भी सपोर्ट में आए. लास्ट में उन्होंने एक शब्द कहा था कि तुम मेरे बेटे हो या बेटी हो, इससे फर्क नहीं पड़ता. तुम मेरे शरीर का एक अंश हो और वह मुझसे जुदा नहीं हो सकता है. इस शब्द से मुझे इतनी प्रेरणा मिली कि फिर मैंने पीछे पलटकर नहीं देखा.
(इनपुट- धर्मेंद्र दुबे)