मध्य प्रदेश के दमोह से मानवीय रिश्ते की एक बेहद ही खूबसूरत और भावनात्मक तस्वीर सामने आई है. यहां करीब 40 साल से एक मुस्लिम परिवार के साथ रहने वाली बुजुर्ग हिंदू महिला जब अपने घर वापस जा रही थी तो पूरा गांव उनकी विदाई के वक्त गमजदा हो गया.
मामला दमोह जिले के मुस्लिम बाहुल्य कोटातलां गांव का है, जहां करीब 40 साल पहले एक बुजुर्ग महाराष्ट्रीयन महिला अपने परिवार से बिछड़ कर यहां आ गई थी. तब गांव के रहने वाले नूर खान ने महिला को अपने घर पर शरण दी. उसके बाद से ही खान परिवार समेत इस गांव ने महिला को परिवार के सदस्य की तरह ही रखा.
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बुजुर्ग महिला को गांव वालों ने अपनी मौसी मान लिया. इस बीच कई बार महिला से उसके परिवार के बारे में पूछा गया, लेकिन महिला कुछ साफ-साफ नहीं बता पाई. महिला बार-बार किसी खंजामा नगर का नाम टूटी-फूटी भाषा में बताती थी, लेकिन गांव वाले कभी ऐसे किसी जगह का पता नहीं लगा पाए.
गांव का नाम परसापुर बताया
साल बीतते गए और हाल ही में एक दिन लॉकडाउन के दौरान जब नूर खान के बेटे इसरार खान ने बुजुर्ग महिला से बातचीत के दौरान फिर से गांव का नाम पूछा तो उसने परसापुर बताया. इसरार ने जब गूगल पर गांव का नाम डाला तो पता चला कि ये महाराष्ट्र में है. इसके बाद परसापुर में एक दुकानदार का नंबर लेकर बात की गई तो उसने बताया कि यहां एक मोहल्ला है जिसका नाम खंजामा नगर है.
बुजुर्ग के जाने से भावुक गांव की महिला
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इसके बाद इसरार ने बुजुर्ग महिला का वीडियो व्हाट्सएप किया, जिसके बाद परसापुर में एक परिवार ने महिला की पहचान कर ली और हाल ही में महिला का पोता अपनी पत्नी के साथ उन्हें लेने दमोह के कोटातलां गांव आया.
बच्चों से लेकर बड़ों तक की आंखें नम
40 साल से जिस महिला को गांव ने अपनी मौसी माना था, जब उसके जाने के वक्त आया तो पूरा गांव भावुक हो गया. महिला भले ही हिंदू परिवार से थी, लेकिन मुस्लिम समुदाय से भरे इस गांव के बच्चों से लेकर बड़ों तक की आंखें नम थीं. अपनी मौसी को विदा करने से पहले गांव के लोगों ने उनसे मन भर कर बातें कीं.
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उन्हें नई साड़ी लाकर दी गई. माला पहनाई गई. बच्चों और महिलाओं ने उनके हाथ चूमे और उनकी दुआएं लीं. जिस परिवार ने महिला को आसरा दिया था उस परिवार के हर सदस्य का रो-रोकर बुरा हाल था, लेकिन इस बात की खुशी थी कि उन्होंने बुजुर्ग महिला को आखिरकार उसके परिवार से मिला ही दिया.