मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में भले ही अभी करीब सवा साल का वक्त बचा है, लेकिन राजनीतिक दलों ने इसकी तैयारी शुरु कर दी है. कांग्रेस ने शनिवार को ग्वालियर में बड़े कांग्रेस नेताओं की एक बैठक बुलाई जिसमें ग्वालिय़र-चंबल संभाग में कांग्रेस को मजबूत करने की रणनीति पर बात हुई.
कार्यकर्ताओं में जोश फूंकने के लिए कवायद
दरअसल, ग्वालियर-चंबल संभाग में कांग्रेस एक तरीके से नेतृत्वहीन हो चुकी है. इसकी बड़ी वजह है ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस छोड़ भारतीय जनता पार्टी में जाना. ग्वालियर-चंबल संभाग में नेतृत्वहीनता की कमी से जूझ रही कांग्रेस दोबारा से कार्यकर्ताओं में जोश फूंकने के लिए कवायद कर रही है. इसी कड़ी में गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाने के बाद कांग्रेस अपनी पूरी ताकत से चंबल अंचल में अपनी गंवा चुकी सीटों को वापस हासिल करने के लिए जुट गई है. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की अगुवाई में ग्वालियर चंबल संभाग के नेताओं की बैठक में आगामी चुनावों को लेकर रणनीति बनाई जाएगी. कांग्रेस की रणनीति सत्तारुढ़ बीजेपी को बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार पर घेरने के साथ-साथ ग्वालियर-चंबल संभाग में खासतौर पर सिंधिया को घेरने की रहेगी.
सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने से पार्टी को नुकसान
ग्वालियर-चंबल संभाग में सिंधिया को घेरने की कांग्रेस की रणनीति के पीछे सबसे बड़ी वजह है सिंधिया का कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाना जिससे ग्वालियर-चंबल संभाग में कांग्रेस को जोरदार झटका लगा और यहां उसकी लीडरशिप ही खत्म हो गई. सिंधिया परिवार का गढ़ माने जाने वाले ग्वालियर-चंबल संभाग में 2018 में कांग्रेस ने 27 सीटें जीती थी. माना जा रहा था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सबसे ज्यादा चुनावी सभाएं यहीं की थी लेकिन आलाकमान से उनके टकराव के बाद सिंधिया ने भाजपा की सदस्यता ले ली.
उपचुनाव का नहीं मिला फायदा
सिंधिया के बीजेपी में आते ही उसके समर्थक विधायकों और मंत्रियों ने कांग्रेस छोड़ दी जिससे कमलनाथ सरकार गिर गई. फिर इन सीटों पर उपचुनाव हुए तो कांग्रेस ने सिंधिया को गद्दार कहकर उपचुनाव लड़ा, लेकिन इसका कोई फायदा कांग्रेस को नहीं मिला. उल्टा ग्वालियर-चंबल संभाग में कांग्रेस के पास अब 17 सीटें ही बची जबकि बीजेपी के पास यहां अब 16 सीटें हो गई हैं. कांग्रेस के पास ग्वालियर-चंबल संबाग में सिंधिया के बाद सबसे बड़ा चेहरा लहार विधायक डॉ.गोविंद सिंह हैं जो अब नेता प्रतिपक्ष भी है. इनके अलावा कांग्रेस के पास यहां कोई बड़ा चेहरा नहीं है इसलिए अब दिग्विजय सिंह को जिम्मेदारी दी गई है कि यहां बीजेपी और खासतौैर पर सिंधिया से कैसे लड़ा जाए. 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले नाराज़ और असंतुष्ट नेताओं को मनाया भी जाएगा.
आसान नहीं होगा ग्वालियर-चंबल संभाग में बीजेपी से टकराना
कांग्रेस भले ही ग्वालियर-चंबल संभाग में जो़रदार वापसी करना चाहती है लेकिन उसके लिए यह लड़ाई आसान नहीं होगी. कांग्रेस के पास यहां डॉ.गोविंद सिंह इकलौता बड़ा चेहरा है जबकि बीजेपी के पास ग्वालियर-चंबल संभाग में नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसै 2 कद्दावर केंद्रीय मंत्री हैं तो वहीं वीडी शर्मा (जो मूल रूप से इसी क्षेत्र के हैं), नरोत्तम मिश्रा, यशोधरा राजे सिंधिया, अरविंद भदौरिया समेत शिवराज कैबिनेट के कई मंत्री है जिससे ग्वालियर-चंबल संभाग में फिलहाल बीजेपी का पलड़ा भारी है.