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कड़ाके की ठंड में रातभर ठिठुरने को मजबूर झारखंड के मजदूर, नहीं मिल रही कोई मदद

ठंड लगातार बढ़ती जा रही है. लोग कपकपाती सर्दी से बचने के लिए तरह-तरह की व्यवस्थाएं कर रहे हैं, लेकिन झारखंड के हजारीबाग में गरीब मजदूरों की सुध लेने वाला कोई नहीं है. प्रशासन की ओर से ठंड में बचाव की कोई व्यवस्था नहीं की गई है, और न ही समाजसेवी संगठनों तक इनकी पीड़ा पहुंच पा रही है. ये मजदूर सालों से यहां रह रहे हैं लेकिन सर्दी से बचने के लिए उन्हें अब तक कोई भी साधन उपलब्ध नहीं कराया गया है.

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रात को मजदूर कपकपाती ठंड में बिना पर्याप्त सुविधाओं के सो रहे हैं. (Photo: ITG)
रात को मजदूर कपकपाती ठंड में बिना पर्याप्त सुविधाओं के सो रहे हैं. (Photo: ITG)

पूरे देश में ठंड का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है. जहां आम लोग अपने घरों में ठंड से बचाव की व्यवस्था कर रहे हैं, वहीं गरीब और बेघर लोग ठिठुरती सर्द रातों का सामना करने को मजबूर हैं. झारखंड के हजारीबाग में ठंड अपने चरम पर है, रात का तापमान करीब 7 से 8 डिग्री तक गिर रहा है. मौसम विभाग ने जिले के लिए येलो अलर्ट जारी किया है, लेकिन इसके बावजूद प्रशासन की ओर से ठंड से जूझ रहे लोगों के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं. हालात यह हैं कि ये लोग कम संसाधनों में ठंड में सोने को विवश हैं.  इनके लिए अलाव तक की व्यवस्था नहीं की गई है.

सबसे अधिक परेशानी यहां के दिहाड़ी मजदूरों को हो रही है, जो रैन बसेरों या किराया न देने वाले स्थानों पर रात गुजारने को मजबूर हैं. शहर के बीचो-बीच स्थित पुराने समाहरणालय में करीब 25 से 30 मजदूर कई सालों से रह रहे हैं. इसके बावजूद यहां अलाव की व्यवस्था  तक नहीं की गई है. मजदूर बताते हैं कि किसी राजनीतिक दल या समाजसेवी संगठन ने कंबल या गर्म कपड़े तक उपलब्ध नहीं कराए हैं. हालत यह है कि मजदूर ठिठुरती ठंड में जैसे-तैसे अपना गुजारा कर रहे हैं.

रंजीत नाम के मजदूर का कहना है कि वह यहां 2-3 साल से रह रहा है, लेकिन अलाव या कंबल की व्यवस्था तक नहीं की है. वहीं विकास नाम का मजदूर बताता है कि वे अपनी सीमित साधनों से ही ठंड से बचने की कोशिश करते हैं, लेकिन ठंड बहुत ज्यादा बढ़ गई है.

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मजदूरों के मुताबिक, कंबल बांटने की बात तो हुई थी, लेकिन उन्हें अब तक कुछ नहीं मिला है. दिनभर मेहनत-मजदूरी करने वाले ये लोग रात में कड़ाके की ठंड में बिना पर्याप्त साधनों के सोने को मजबूर हैं. मजदूर इसलिए यहां रह रहे हैं क्योंकि किराया नहीं देना पड़ता, लेकिन ठंड में हालात बेहद कठिन हो रहे हैं.

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