कोरोना की इस दूसरी लहर में ग्रामीण इलाके और छोटे शहर सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं. उत्तर प्रदेश और बिहार के साथ-साथ झारखंड की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है. छोटे शहरों में तो अस्पताल ही प्रशासनिक लापरवाही के चलते बीमार हैं.
झारखंड के चतरा के सबसे बड़े सरकारी कोविड सदर अस्पताल की हालत ऐसी है कि यहां मरीजों को ऑक्सीजन भी अस्पताल का ड्राइवर लगा रहा है. और तो और अस्पताल में जीवन बचाने वाली जरूरी दवाइयों और इंजेक्शन की भी किल्लत है. लापरवाही की सीमा ऐसी कि जिस कोविड-19 से संक्रमित मरीजों के वार्ड में मेडिकल स्टाफ के अलावा किसी को जाने की अनुमति नहीं होती, वहां मरीजों के तीमारदार बिना किसी रोक-टोक न सिर्फ घूम रहे हैं बल्कि अपने मरीजों का ख्याल भी रख रहे हैं.
चतरा सदर अस्पताल में तस्वीरें ही बहुत कुछ कहती हैं. गलियारे में ही स्ट्रेचर पर मरीज लेटा है और वहीं उसे ऑक्सीजन लगा दिया गया है. परिजन नहीं चाहते कि ऑक्सीजन सिलेंडर को नाक से जोड़ने वाला प्लास्टिक मास्क वही इस्तेमाल हो जो दूसरे मरीजों को दिया जा रहा है.
जिस जनरल वार्ड में मरीजों को रखा गया है वहां मरीजों को ऑक्सीजन एक ड्राइवर लगा रहा है. ड्राइवर कहता है कि हमें फर्क नहीं पड़ता है, यहां आने वाले सब हमारे भाई हैं और 13 साल से मैं इस अस्पताल में काम करता हूं इसलिए मुझे ये काम आता है, इसलिए मैं भी करता हूं.
अस्पताल के डिप्टी सुपरिटेंडेंट और हेल्थ मैनेजर फिलहाल मौजूद नहीं थे. फोन करने पर कहीं से भी कोई जवाब नहीं मिला. अस्पताल की क्लर्क पूनम को भी उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है. अव्यवस्था की कहानी तो दरअसल यहां से शुरू होती है. कोरोना का इलाज करने वाले अस्पतालों के लिए नियमावली अलग है. जहां वार्ड के भीतर किसी को जाने की अनुमति नहीं होती. अस्पताल में एक सामान्य वार्ड है जहां ऑक्सीजन की दिक्कत झेल रहे सभी मरीजों को एक साथ रखा जाता है जब तक की उनकी टेस्टिंग रिपोर्ट नहीं आ जाती.
सुजीत कुमार की मां इसी अस्पताल में लाई गई हैं और उनका आरोप है कि पॉजिटिव और निगेटिव सभी मरीजों को एक ही वार्ड में रखा गया है. ऐसे में संक्रमण का खतरा है. अस्पताल की स्टाफ पूनम ने भी कह दिया कि मरीजों को जांच में पॉजिटिव निकलने के बाद उन्हें वार्ड में भेज दिया जाता है लेकिन तब तक के लिए उन्हें जनरल वार्ड में रखा जाता है. और तो और अस्पताल के आईसीयू में भी लोगों के आने-जाने पर कोई रोक टोक नहीं है. अस्पताल के स्टाफ ने तो आजतक संवाददाता से भी कह दिया कि चलिए आईसीयू देख लीजिए. हमें कर्मचारी को ये बताना पड़ा कि आईसीयू में सामान्य लोगों का प्रवेश वर्जित होता है.
अस्पताल की पहली मंजिल पर संक्रमित मरीजों के लिए वार्ड बने हुए हैं और बाहर बड़े-बड़े शब्दों में लिखा है कि अंदर प्रवेश मना है. लेकिन आदेश का अमल करवाने के लिए कोई दिखाई नहीं पड़ता. इसलिए मरीजों के परिजन तीमारदार बेरोकटोक अपने मरीजों का ख्याल रख रहे हैं.
मरीज के परिजन कहते हैं कि जब तक मजबूरी ना हो तब तक हम अंदर नहीं जाते. अस्पताल में इलाज करा रहे मरीज के रिश्तेदार लक्ष्मण कहते हैं, "गेट पर कोई होता ही नहीं है इसलिए मजबूरी में अंदर जाना पड़ता है. एक बार तो हमारे मरीज को शौचालय ले जाना था लेकिन कोई नर्स मदद करने के लिए मौजूद नहीं थी इसलिए हालात खराब होते देखकर हमको जाना पड़ा." ऐसे न जाने कितने तीमारदार हमें यहां मिले जो बेरोकटोक कोविड-19 वार्ड के चक्कर लगा रहे हैं इस डर से बेखौफ, कि वो संक्रमण को न्योता दे रहे हैं.
कोविड वार्ड की नर्स देवंती से हमने पूछा और उन्होंने भी कहा कि कभी-कभी काम पड़ता है इसलिए मरीजों के तीमारदारों को वार्ड में जाना पड़ता है. नर्स कहती हैं कि हर कोई ऑक्सीजन पर है जिनमें कोई स्टेबल है और उनमें से कुछ लोगों की तबीयत गड़बड़ है. ऐसे में जब जरूरत पड़ती है तो उनके परिवार वाले जाते हैं.
चतरा के सबसे बड़े अस्पताल में जीवन रक्षक दवाइयों और इंजेक्शन तक की किल्लत है. मरीजों के परिजन का आरोप है कि जो दवाइयां यहां नहीं मिल पाती है उन्हें बाजार से लाना पड़ता है. यही सवाल हमने ड्यूटी नर्स से भी पूछा. नर्स ने बताया कि फिलहाल जो दवाइयां है वो दी जा रही हैं लेकिन डेरीफेलेन के इंजेक्शन जोकि सांस लेने में दिक्कत झेल रहे मरीजों को दी जाती है उसे हम बाहर से लाने के लिए कह रहे हैं क्योंकि वो अस्पताल में पिछले 1 महीने से नहीं है. कमी की जानकारी उन्होंने अस्पताल के अपने इंचार्ज को दे दी है. मरीजों की जान बचाने वाले इंजेक्शन इस अस्पताल में नहीं है.
अस्पताल में उन मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत ज्यादा है. संतोष कुमार भी अपने पिता को भर्ती कराने लेकर आए थे और उनका कहना है कि पिताजी का ऑक्सीजन लेवल गिरकर 60 पर पहुंच गया है. अस्पताल की सीनियर नर्स कहती हैं कि पिछले 6 दिनों में ऑक्सीजन की जरूरत वाले मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है और यहां जितने लोग भर्ती हैं हर किसी को ऑक्सीजन दिया जा रहा है.
पिछले कुछ दिनों में संक्रमण कैसे बढ़ा है, ये पिछले कुछ दिनों में अस्पताल में ऑक्सीजन की खपत से अंदाजा लगाया जा सकता है. अस्पताल के कर्मचारी मनोज कुमार कहते हैं, "प्रतिदिन 20 से 25 ऑक्सीजन सिलेंडर की खपत हो रही है और ये मांग पिछले 3 से 4 दिनों में ज्यादा बढ़ी है. फिलहाल हम हजारीबाग से ऑक्सीजन सिलेंडर की रिफिल करवा रहे हैं और हमारे पास पर्याप्त व्यवस्था है. ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है."
ड्यूटी नर्स देवंती भी कहती हैं कि जब से उनकी ड्यूटी लगी है तब से यहां मरीजों की संख्या बढ़ी है और हर किसी को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी है. देवंती के मुताबिक पिछले 2 दिनों में दो लोगों की मौत भी हुई है.
इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि संक्रमण अवैध महामारी के तौर पर देश के उन हिस्सों में भी पहुंच गया है जो अब तक इससे अछूते थे. बड़े शहरों का हाल अगर बेहाल है तो ग्रामीण इलाके और छोटे शहरों की दुर्दशा को समझा जा सकता है.
बड़े शहरों की तस्वीरें सामने आ जाती हैं इसलिए कार्रवाई भी हो जाती है, लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के सुदूर इलाकों में अस्पताल ही इतने बदहाल हैं कि मरीजों का इलाज हो तो कैसे हो. मरीजों की संख्या ज्यादा है, स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या बेहद कम, ऊपर से दवाइयों की किल्लत और नियमों में ढील के चलते त्रासदी कहीं और बड़ी ना हो जाए.