हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में एक छोटे से गांव में बकरी पालन के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि सामने आई है. घुमारवी उपमंडल के भराड़ी उपतहसील अंतर्गत लढ़याणी पंचायत के ललवाण गांव में पाले गए बीटल नस्ल के एक बकरे ने जिले का अब तक का सबसे महंगा बकरा बनने का रिकॉर्ड कायम किया है. इस 15 महीने के बकरे को 95 हजार रुपये में बेचा गया है.
बीटल नस्ल के बकरे ने बनाया रिकॉर्ड
खास बात यह है कि इस बकरे को पंजाब के एक व्यापारी ने खरीदा, जिसके बाद इसे केरल भेज दिया गया है. वहां इसे एक ब्रीडिंग फार्म में रखा जाएगा. जिला स्तर पर यह पहला मौका है जब किसी बकरे को इतनी ऊंची कीमत मिली है, जिससे स्थानीय पशुपालकों में खासा उत्साह देखा जा रहा है.
इस सफलता के पीछे गांव के युवक अश्विनी कुमार की मेहनत और लगन है. अश्विनी ने करीब दस महीने पहले बकरी पालन की शुरुआत की थी. उन्होंने बताया कि पटियाला के पास कराला कस्बे से उन्होंने इस बीटल नस्ल के बकरे को महज 25 हजार रुपये में खरीदा था. उस समय बकरे की उम्र लगभग पांच महीने थी.
देसी आहार से बना दमदार कद-काठी, 130 KG वजन
अश्विनी ने बकरे के पालन-पोषण में किसी भी तरह का महंगा या बाजार का आहार नहीं दिया. बकरे को घर में उगाए गए गेहूं, बाजरा, जौ और हरी घास ही खिलाई गई. नियमित देखभाल और संतुलित देसी आहार का ही परिणाम रहा कि बकरा बेहद कम समय में आकर्षक कद-काठी और बेहतर वजन हासिल कर सका. वर्तमान में बकरे की ऊंचाई चार फीट से अधिक है और वजन लगभग 130 किलोग्राम है, जो बीटल नस्ल के लिहाज से काफी प्रभावशाली माना जाता है.
युवाओं के लिए बकरी पालन की मिसाल
अश्विनी ने बताया कि उन्होंने बकरे की कीमत शुरुआत में 1 लाख 20 हजार रुपये तय की थी, लेकिन भविष्य में व्यापारिक संबंध मजबूत रखने और भरोसा बनाए रखने के मकसद से इसे 95 हजार रुपये में ही बेच दिया गया. बकरे ने जिला स्तरीय प्रतियोगिता में प्रथम स्थान भी हासिल किया था, जिससे इसकी मांग और बढ़ गई.
अश्विनी का कहना है कि बकरी पालन आज के समय में युवाओं के लिए एक बेहतर स्वरोजगार का साधन बन सकता है. कम पूंजी में शुरू होने वाला यह व्यवसाय यदि सही तरीके से किया जाए, तो अच्छा मुनाफा दे सकता है.