देश में आजादी के बाद से राजशाही खत्म हो चुकी है. मगर, सिर्फ गुजरात ही ऐसा राज्य है, जहां आज भी राजा अस्तित्व में है. भारत के सभी राजाओं को एकजुट कर राजशाही खत्म करने वाले सरदार पटेल के गुजरात में आदिवासी बहुल डांग जिले के आदिवासी भील राजा को उनकी बहादुरी और बलिदान के साथ जंगल की रक्षा करने के लिए इनाम के तौर पर अंग्रेज सरकार की तरफ से साल 1842 से पॉलिटिकल पेंशन दी जाती थी.
वर्षों से चल रही इस परंपरा को गुजरात सरकार ने आज भी बनाए रखे है. आजादी के इतने सालों के बाद भी यहां के वंश परंपरागत पांच राजाओं को साल में एक दिन सम्मानित किया जाता है. इनकी शाही सवारी निकाली जाती है और प्रजा के बीच दरबार भरकर तय की हुई पॉलिटिकल पेंशन दी जाती है.
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पांच दिनों का लगता है डांग मेला
राजाओं को पेंशन देने के इस अवसर पर पांच दिन का बड़ा मेला लगता है, जिसे ‘डांग दरबार’ कहते हैं. वैसे तो इस सम्मान के लिए गुजरात के राज्यपाल खुद आकर दरबार की शोभा बढ़ाते है. मगर, इस बार लोकसभा के चुनाव है, इसलिए राज्यपाल की जगह जिला विकास अधिकारी के हाथों राजाओं का सन्मान किया गया.
होते हैं विभिन्न रंगारंग कार्यक्रम
डांग दरबार की बात करें, तो पांच दिवसीय इस मेले में देश के विभिन्न आदिवासी संस्कृतियों की झलक के साथ रंगारंग कार्यक्रम होते हैं, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लाखों की संख्यां में लोग आते हैं. राजा का मानना है कि ये जंगल आदिवासियों के लिए एटीएम की तरह है.
वन विभाग भी करता है सम्मान
यहां की लकड़ी और वनस्पति से उनका अच्छी तरह से गुजरा होता है. इसलिए राजा अपनी प्रजा से जंगल बचाने की अपील करते हैं. वन विभाग के अधिकारी भी जंगल बचाने में राजाओं के योगदान देखते हुए उनका सम्मान करते हैं और लोगों से आने वाली पीढ़ी के लिए जंगल बचाने की अपील करते हैं.