scorecardresearch
 

यमुना को पूरी तरह स्वच्छ होने में लगेंगे तीन से पांच साल, सुधार की दिखी शुरुआत, बोले- एक्सपर्ट

छठ पर्व के बीच यमुना नदी के पानी की गुणवत्ता पर फिर राजनीति तेज हो गई है. इस बीच जल विशेषज्ञ डॉ. नूपुर बहादुर ने कहा कि सरकार की कोशिशों से सुधार शुरू हुआ है, लेकिन यमुना को पूरी तरह स्वच्छ बनाने में तीन से पांच साल लगेंगे. उन्होंने बताया कि झाग और प्रदूषण के कई वैज्ञानिक कारण हैं.

Advertisement
X
यमुना नदी के पानी की गुणवत्ता पर राजनीति (Photo: Screengrab)
यमुना नदी के पानी की गुणवत्ता पर राजनीति (Photo: Screengrab)

छठ पर्व के मौसम में एक बार फिर यमुना नदी के पानी की गुणवत्ता को लेकर राजनीति तेज हो गई है. पहले आम आदमी पार्टी (AAP) को भाजपा ने यमुना में प्रदूषण के लिए निशाना बनाया था, लेकिन अब जब दिल्ली में भाजपा की जिम्मेदारी है तो आम आदमी पार्टी ने पलटवार किया है. इस बीच, नदी की वास्तविक स्थिति जानने के लिए इंडिया टुडे और आजतक ने जल विशेषज्ञ डॉ. नूपुर बहादुर से बातचीत की.

डॉ. नूपुर बहादुर एनएमसीजी टेरी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ऑन वॉटर रीयूज में सीनियर फेलो और डायरेक्टर हैं. वे पिछले दो दशक से नदी पुनर्जीवन, अपशिष्ट जल उपचार और जल पुन: उपयोग के क्षेत्र में काम कर रही हैं. उन्होंने बताया कि यमुना में बनने वाला झाग (फ्रॉथ) नदी के प्रदूषण की स्थिति को समझने का एक जरिया है. हम झाग के बनने की प्रक्रिया का अध्ययन कर रहे हैं. इससे हमें नदी के कुल जल गुणवत्ता को समझने में मदद मिलती है.

यमुना को साफ करने का सिलसिला जारी

इसके अलावा डॉ. बहादुर ने बताया कि झाग बनना केवल यमुना में ही नहीं, बल्कि यूरोप की कई नदियों और झीलों में भी देखा गया है. यह एक प्राकृतिक और रासायनिक दोनों प्रक्रिया का परिणाम होता है. उनके अनुसार, यमुना के प्रदूषण के मुख्य कारण हैं. बिना उपचार का सीवेज, अमोनिया छोड़ने वाले एसटीपी, बिना एसटीपी वाले औद्योगिक क्षेत्र, और अनधिकृत डाईंग यूनिट्स जो गंदा पानी सीधे नदी में छोड़ देते हैं. इसके अलावा, जलकुंभी और धोबी घाटों से निकलने वाले रासायनिक पदार्थ भी झाग बनने में भूमिका निभाते हैं.

Advertisement

उन्होंने कहा कि जब पानी का प्रवाह तेज होता है और उसमें प्रदूषण ज्यादा होता है, तब झाग बनता है. “फीकल कोलीफॉर्म प्रदूषण का एक अहम संकेतक है. इसमें पिछले सालों की तुलना में 3 से 4 गुना सुधार देखा गया है. डॉ. बहादुर ने कहा कि सरकार ने पिछले साल छठ के बाद कई सिफारिशों को गंभीरता से लागू किया है. अब यमुना में सुधार दिखाई देने लगा है. कलिंदी कुंज से जलकुंभी को हटा दिया गया है और अब यह सफाई हर तीन महीने में की जाती है. 

सफाई के लिए कई नालों को डाइवर्ट किया गया

डॉ. बहादुर ने कहा कि कई नालों को एसटीपी की ओर मोड़ा गया है ताकि केवल साफ पानी ही नदी में छोड़ा जाए. यमुना के पुनर्जीवन के लिए प्रदूषण के सभी स्रोतों को नियंत्रित करना जरूरी है. यह लंबी प्रक्रिया है, लेकिन सही दिशा में शुरुआत हो चुकी है. डॉ. बहादुर ने बताया कि नदी का पीएच स्तर सामान्य सीमा में रहता है, लेकिन डाईंग यूनिट्स का गंदा पानी कभी-कभी इसे बिगाड़ देता है.

यमुना की तलछट की सफाई की गई है और कई नालों को डायवर्ट किया गया है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि अब पानी का रंग साफ दिखने लगा है, सस्पेंडेड सॉलिड्स घटे हैं और एसटीपी का नियंत्रण भी मजबूत हुआ है. अगर यह प्रक्रिया इसी तरह जारी रही, तो यमुना को पूरी तरह स्वच्छ होने में लगभग तीन से पांच साल का समय लगेगा.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement