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जानिए क्या है टंगिया ग्रुप का DU कनेक्शन?

दिल्ली के नामी गिरामी कुछ एक प्रोफेसरों की बस्तर में नियमित आवाजाही है. प्रोफेसरों का दावा है कि वो यंहा रिसर्च के लिए आते है. लेकिन ये कभी बताते की रिसर्च और थ्योरी का ब्यौरा वो कंहा सौपते है.

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टंगिया ग्रुप का DU कनेक्शन
टंगिया ग्रुप का DU कनेक्शन

छत्तीसगढ़ के घनघोर नक्सल प्रभावित इलाके सुकमा में सोमनाथ की हत्या के बाद हालात तनावपूर्ण बनते जा रहे है. 4 नवम्बर को शुक्रवार और शनिवार की दरमियानी रात सोमनाथ को नक्सलियों ने मौत की घाट उतार दिया था. रविवार को सोमनाथ के अंतिम संस्कार तक इलाके में हालात सामान्य रहे. लेकिन सोमवार की शाम होते होते सोमनाथ की मौत के मामले ने तूल पकड़ लिया. कारण हत्या की दर्ज की गई एफआईआर में कुख्यात नक्सली विनोद के अलावा जेएनयू की प्रोफ़ेसर अर्चना प्रसाद और दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर नंदनी सुन्दर का नाम भी हत्या की साजिश में सामने आया. इसके बाद रायपुर से लेकर दिल्ली तक हलचल मच गई. हालांकि पुलिस ने ना तो एफआईआर की कॉपी सर्वाजनिक की और ना ही अधिकृत रूप से हत्या में शामिल आरोपियों के नाम जाहिर किये. इतनी गोपनीयता क्यों बरती गई यह तो बस्तर पुलिस जाने. लेकिन मामले ने उस वक्त नया मोड़ ले लिया जब दिल्ली में प्रोफ़ेसर नंदनी सुन्दर ने बस्तर रेंज के आईजी एस आर पी कल्लूरी पर दुश्मनी भुनाने का आरोप लगा डाला.

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जेएनयू और डीयू का नक्सली कनेक्शन
दिल्ली के नामी गिरामी कुछ एक प्रोफेसरों की बस्तर में नियमित आवाजाही है. प्रोफेसरों का दावा है कि वो यंहा रिसर्च के लिए आते है. लेकिन ये कभी बताते की रिसर्च और थ्योरी का ब्यौरा वो कंहा सौपते है. वो यह भी नहीं बताते की रिसर्च किसी फैलोशिप के अंदर है या फिर यूनिवरसिटी ने सम्बंधित रिसर्च के लिए उन्हें अधिकृत किया है. बस्तर में मानव अधिकारों के उलंघन के मामले प्रोफ़ेसर जोर शोर से उठाते है, बस्तर से लेकर रायपुर और दिल्ली तक. यंहा तक की अदालतों में भी कई बार उत्पीडन के मामलो को लेकर छत्तीसगढ़ पुलिस और सरकार को आरोपी प्रोफेसरों ने घेरा है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने ताड़मेटला में आदिवासियों के घर जलाये जाने के मामले के सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ पुलिस को आड़े हाथो लिया. ये अकेला ऐसा मामला नहीं है जिसमे राज्य सरकार को खरी खोटी सुननी पड़ी, कई ऐसे मामलो में इसके पहले भी नंदनी सुन्दर और अर्चना प्रसाद समेत उनके कई साथियो ने पुलिस की परेशानी बढ़ाई है. उधर पुलिस की दलील है कि जेएनयू और डीयू का एक धड़ा देश में नक्सलवाद के पालन पोषण का काम कर रहा है. ये लोग मानव अधिकारों के उलंघन और फ़र्ज़ी मुठभेडों का आरोप लगाकर पुलिस और सरकार को बदनाम करते है. पुलिस की यह भी दलील है कि नक्सली पुलिस कर्मियों के अलावा सैकड़ो निर्दोष ग्रामीणों को कभी गोली मारते है तो कभी चाकूओं और तलवारों से उनकी निर्मम हत्या कर देते है. इस दौरान पीड़ितों के मानव अधिकारों को लेकर ये प्रोफ़ेसर चुप्पी साध लेते है. यही नहीं स्कूली बच्चो को नक्सली पाठ पढ़ाने, स्कूली इमारतें तोड़ने, विकास कार्य ठप करने और हिंसा और आगजनी के घटनाओ को अंजाम देने के किसी भी मामले में आरोपी नक्सलियों की गिरफ्तारी को लेकर याचिका इन प्रोफेसरों ने कभी भी अदालत में दायर नहीं की. पुलिस के मुताबिक कई गंभीर मामलो की जांच को लेकर वो जेएनयू और डीयू के वाईस चांसलर को पत्र लिख चुकी है.

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अर्चना प्रसाद, नंदनी सुन्दर और बस्तर आईजी एस आर पी कल्लूरी आमने सामने
सुकमा में सोमनाथ हत्या कांड में आरोपी बनाये जाने के बाद अर्चना प्रसाद और नंदनी सुन्दर ने बस्तर रेंज के आईजी एस आर पी कल्लूरी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. उनका आरोप है कि बस्तर में फ़र्ज़ी एनकाउंटर और आदिवासियों के साथ गैंग रेप की कई घटनाओ को उन्होंने उजागर किया है. इसके चलते आईजी कल्लूरी की जमकर फजीयत भी हुई है. जब उनके खिलाफ पुलिस को कोई मामले नहीं मिले तो आईजी ने दुश्मनी भुलाने के लिए उनका नाम एफआईआर में घसीटा. उधर बस्तर रेंज के आईजी एस आर पी कल्लूरी ने इन आरोपो को बेबुनियाद बताया है. उनके मुताबिक मृतक की पत्नी और कुछ एक गवाहों के बयानों के बाद सोमनाथ की हत्या के आरोपियों के नाम एफआईआर में दर्ज किये गए. उनके मुताबिक अगर किसी को कोई आपत्ति है तो वो जांच अधिकारी के सामने अपनी बात रख सकता है और दूसरे क़ानूनी विकल्प उसके सामने है.

आखिर क्या है टंगिया ग्रुप
बस्तर में शुरवाती दौर में नक्सलियों के खिलाफ सलवा जुडूम नामक आंदोलन आदिवासियों ने छेड़ा था. इस दौरान उन पर नक्सलियों के हमले तेज हो गए. पुलिस ने इस आंदोलन से जुड़े कुछ एक लोगो को आत्म रक्षा के लिए बंदूके दे दी. इस दौरान हथियारों के दरुपयोग और सलवा जुडूम में शामिल लोगो को अवैध संरक्षण जैसे आरोप पुलिस पर लगे. आंदोलनकरियो को हथियार मुहैया कराने के मामले को अदालत में चनौती दी गई. वर्ष 2010 के दशक में सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुडूम भंग करने के निर्देश पुलिस को दिए. ग्रामीणों से हथियार भी वापस लिए गए. इसके बाद बस्तर में कोई भी संगठित आंदोलन नक्सलियों के खिलाफ अस्तित्व में नहीं आया, हालांकि जनजागृति और नक्सलियों को खदेड़ने के नाम पर कुछ एक संगठन जरूर बने लेकिन वो भी कारगर नहीं रहे. इसी वर्ष मई जून माह में सुकमा के कुम्माकोलिंग गांव में सोमनाथ ने टंगिया ग्रुप का गठन किया, इसका मकसद नक्सलियों को उनके गांव से खदेड़ना था. ग्रामीणों का तर्क था कि नक्सली उन्हें बेमौत मार रहे है. यही नहीं उनके इलाके में नक्सलियों की मौजूदगी के चलते विकास के काम ठप पड़ गए. चंद दिनों में नक्सलियों के खिलाफ लोग एकजुट होने लगे और टंगिया ग्रुप में शामिल होने वाले आदिवासियों की संख्या दिन गुनी रात चौगुनी प्रगति करती रही. कई गांव में नक्सलियों पर पाबंदी लगी और गांव में दाखिल होना लगभग बंद हो गया. नक्सली सोमनाथ के खून के प्यासे हो गए. दरअसल टंगिया आदिवासियों का परंपरागत हथियार है. इसके जरिये वो ना केवल लकड़िया कांटते है बल्कि टंगिया आत्म रक्षा के लिए भी रखते है. आमतौर पर जंगलो में आवाजाही के दौरान टंगिया आदिवासियों के कंधे पर लटका नजर आता है. टंगिया ग्रुप के कई सदस्यो ने तीर कमान भी थांमा था. यह भी आदिवासियों का परम्परागत हथियार है. दोनों ही हथियारों को धारण करने के लिए शस्त्र लाइसेंस की जरुरत नहीं पड़ती.

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