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दिल्ली में ऑड-ईवन पर एक्सपर्ट क्यों उठा रहे हैं सवाल, IIT-Delhi की स्टडी क्या कहती है?

दिल्ली में AAP सरकार ने साल 2016 में पहली बार ऑड-ईवन फॉर्मूला लागू किया था. यह चौथी बार है, जब बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए इस योजना को शुरू किया था. हालांकि ऑड-ईवन को लेकर विशेषज्ञों की राय मिली-जुली है.

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दिल्ली में ऑड-ईवन कितना सफल?
दिल्ली में ऑड-ईवन कितना सफल?

देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली एक बार फिर गैस चैंबर में बदल गई है. बढ़ते प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए दिल्ली सरकार ने GRAP-4 लागू किया था, लेकिन जब उससे राहत नहीं मिली तो ऑड-ईवन फॉर्मूला को लागू करने का फैसला लिया. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने सोमवार को इसकी घोषणा करते हुए कहा कि 13 से 20 नवंबर तक यह फॉर्मूला लागू किया जाएगा.  

ऑड-ईवन स्कीम में कारों को ऑड या ईवन नंबर की प्लेट के आधार पर एक दिन छोड़कर चलाने की अनुमति होती है. इस स्कीम को पहली बार साल 2016 में लागू किया गया था. केजरीवाल सरकार ने पहले जनवरी और फिर उसी साल अप्रैल में लागू किया था. हालांकि इस स्कीम के तहत इमरजेंसी और पुलिस वाहनों, दोपहिया वाहनों, महिलाओं द्वारा संचालित कारों को छूट दी गई थी.  

साल 2019 में, जब यह योजना नवंबर में लागू की गई थी तो मेडिकल इमरजेंसी वाहनों और स्कूल के बच्चों को ले जाने वाले वाहनों के साथ-साथ दोपहिया और इलेक्ट्रिक वाहनों को छूट दी गई थी. वीआईपी, महिलाओं और दिव्यांग व्यक्तियों को ले जाने वाले वाहनों को भी इससे अलग रखा गया था. हालांकि, पर्यावरणविदों ने हाल ही में लागू करने की योजना को लॉन्ग टर्म ना बताकर प्रदूषण को तुरंत कम करने के लिए त्वरित प्रतिक्रिया बताया है. 

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'Breathing Here is Injurious to Your Health: The Human Cost of Air Pollution' की लेखिका ज्योति पांडे लवकरे ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए कहा, हर साल जब भी हवा की गुणवत्ता खतरे पर पहुंचती है तो वही अस्थायी समाधान लागू किया जाता है. 
लवकारे ने कहा, "हम इस जहरीली हवा में मर रहे हैं. पूरे साल प्रदूषण का स्तर ऊंचा रहता है लेकिन दिल्ली में हमने खराब वायु गुणवत्ता को सामान्य कर दिया है और इसका राजनीतिकरण कर दिया है." 

उन्होंने कहा, "आप इस योजना को कैसे लागू करेंगे जब आपके पास पर्याप्त सार्वजनिक परिवहन बसें नहीं हैं. हमें कम से कम 15,000 से 20,000 इलेक्ट्रिक बसों की जरूरत है लेकिन हमारे पास कम हैं. प्रदूषण का समाधान अधिक इलेक्ट्रिक बसें तैनात करने में है, बसों की एक निर्धारित टाइमिंग होनी चाहिए और दिल्ली मेट्रो की तरह डिजिटल टाइम टेबल स्टॉप पर बसों की टाइमिंग दिखाए ताकि लोग उसी हिसाब से योजना बना सकें." 

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वहीं पर्यावरणविद् भावरीन कंधारी ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए और कहा कि ऐसे उपायों को एक सप्ताह के लिए लागू करने के बजाय, उन्हें पूरे वर्ष लागू किया जाना चाहिए.  

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उन्होंने कहा, "इससे असुविधा होगा, लेकिन प्रदूषण की वजह से मेरे बच्चों के मरने से बेहतर है. विदेशों में लोगों को कार न चलाने के लिए कई तरह के टैक्स लगाए जाते हैं. मैं एक बार रास्ते में थी और मैंने गिना कि एक मिनट में 27 कारें मेरे बगल से निकल गईं और उनमें एक ही यात्री था. लोगों को कार छोड़ने के लिए अधिक इलेक्ट्रिक बसों की जरूरत है." 

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शिकागो विश्वविद्यालय में एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट एंड एविडेंस फॉर पॉलिसी डिजाइन ने साल 2016 में लागू किए गए ऑड-ईवन स्कीम को लेकर विश्लेषण किया था. इसमें पाया गया कि योजना के घंटों बाद PM2.5 के स्तर में 14-16 फीसदी की कमी देखी गई. उस साल जनवरी में ऑड-ईवन लागू रहा. हालांकि उस साल जब अप्रैल में भी इस योजना को लागू किया गया तो प्रदूषण में कोई कमी नहीं आई थी.  

आईआईटी-दिल्ली के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन में पाया गया था कि जब जनवरी 2016 में पहली बार यह योजना शुरू की गई थी, तब वायु प्रदूषण में केवल दो से तीन प्रतिशत की कमी आई थी. दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी ने साल 2019 में अपने एक अध्ययन में पाया था कि जनवरी 2016 में ऑड-ईवन जब लागू किया गया तो प्रदूषण में 4.7 से 5.7 तक की कमी आई थी. 

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