लाल किले के पास हुए धमाके के बाद दिल्ली का दिल जैसे थम गया. चारों तरफ आग, धुआं, चीखें और अफरा-तफरी. उसी बीच कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों की मदद की. ग्रेटर नोएडा के धर्मेंद्र डागर उन चंद लोगों में से एक हैं, जो हादसे के वक्त वहीं पास में मौजूद थे. उनके शब्दों में हादसे का मंजर सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
गाड़ी हवा में उड़ी थी...
धर्मेंद्र बताते हैं कि मैं मेट्रो गेट नंबर एक के पास से अपने घर जा रहा था, तभी अचानक एक जोरदार धमाका हुआ. गाड़ी हवा में उड़ी, फिर नीचे गिरी तो बस उसका ढांचा ही बचा था. चारों तरफ आग लगी थी, शीशे टूट गए थे. मैं भागकर रोड पार आया, देखा गाड़ी में लोग जल रहे हैं.
वो बताते हैं कि धमाके के बाद कुछ ही सेकंड में आसपास के लोग दूर भाग गए. धुआं इतना था कि किसी को कुछ नजर नहीं आ रहा था. मैंने लोगों को आवाज दी कि मदद करो, अंदर लोग फंसे हैं, लेकिन कोई आगे नहीं आया. सबके हाथों में सिर्फ मोबाइल थे, लोग वीडियो बना रहे थे. वो पल बहुत डरावना था.
मैं और तीन लोग बॉडी निकाल रहे थे...
धर्मेंद्र डागर ने बताया कि जैसे-तैसे उन्होंने चार शव और एक घायल को बाहर निकाला. मैं अकेला नहीं था, लाल किला चौकी के दो पुलिसकर्मी अजय और थान सिंह भी पहुंचे थे. हम चार लोगों ने मिलकर अंदर से बॉडी निकालीं. एक टैक्सी ड्राइवर था, उसकी बॉडी आधी जल चुकी थी. एक और शख्स था जो मदद के लिए चिल्ला रहा था, उसे खींचकर बाहर लाया.
धर्मेंद्र की आंखें भर आईं जब उन्होंने बताया कि कुछ लोगों के आधे-आधे शरीर ही बचे थे. किसी के पैर गायब थे, किसी का धड़. हालत इतनी भयानक थी कि पहचानना भी मुश्किल था.
लोग बस वीडियो बना रहे थे...
धर्मेंद्र कहते हैं कि मैं बार-बार चिल्ला रहा था कि हेल्प करो, पानी लाओ, लेकिन लोग बस वीडियो बना रहे थे. कोई आगे नहीं आया. पब्लिक डर गई थी, लेकिन उस वक्त डर से ज्यादा जरूरत थी इंसानियत की. वैसे धमाके की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुछ ही मिनटों में कई गाड़ियां जलकर खाक हो गईं. आसपास के मेट्रो गेट के शीशे तक उड़ गए. पुलिस और दमकल की टीम के पहुंचने तक कुछ बहादुर लोग अपनी जान जोखिम में डालकर घायलों को बचाने की कोशिश करते रहे.
कुछ हाथ भी उठे मदद के लिए
इस हादसे ने दिल्ली को हिला दिया है. सोशल मीडिया पर वीडियो तो बहुत हैं, लेकिन धर्मेंद्र जैसे लोगों की हिम्मत दिखाने वाली तस्वीरें बहुत कम. उनकी बात सुनकर यही अहसास होता है कि हादसों में असली खबर सिर्फ दर्द नहीं होती, इंसानियत भी होती है.