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बैस और साय की BJP कोर ग्रुप से छुट्टी, गरमाई छत्तीसगढ़ की राजनीति

बीजेपी कोर ग्रुप से सांसद रमेश बैस और पूर्व सांसद नंद कुमार साय को हटाए जाने से छत्तीसगढ़ की राजनीति गरमा गई है. पार्टी के अंदर इस बात को लेकर खलबली मची हुई है कि प्रजातंत्र लगभग खत्म हो गया है. राज्य की राजनीति पर नीतिगत फैसले प्रदेश में नहीं, बल्कि दिल्ली में हो रहे हैं.

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सांसद रमेश बैस और पूर्व सांसद नंद कुमार साय
सांसद रमेश बैस और पूर्व सांसद नंद कुमार साय

दिल्ली में 22 अगस्त को छत्तीसगढ़ बीजेपी कोर ग्रुप की बैठक और 27 अगस्त को बीजेपी शाषित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक के पहले ही पार्टी कोर ग्रुप से सांसद रमेश बैस और पूर्व सांसद नंद कुमार साय को हटाए जाने से छत्तीसगढ़ का राजनैतिक गलियारा गरमा गया है.

सांसद रमेश बैस ओबीसी समुदाय के कद्दावर नेता हैं. वो लगातार आठवीं बार रायपुर संसदीय सीट से चुनाव जीत कर संसद पहुंचे हैं. वहीं नंद कुमार साय आदिवासी समुदाय के बड़े नेता हैं. दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह छत्तीसगढ़ के बीजेपी नेताओं से वन टू वन रूबरू होने वाले हैं. इससे पहले ही बैस और साय की छुट्टी हो गई. ये दोनों ही नेता मुख्यमंत्री रमन सिंह की राह के रोड़े भी बताए जाते हैं.

राज्य में BJP के कामकाज से खफा
राज्य में बीजेपी सरकार के कामकाज को लेकर कई बार दोनों ही नेता अपनी नाराजगी भी जाहिर कर चुके हैं, हालांकि दोनों ही नेताओं को हटाने के साथ पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने इनके स्थान पर कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और खाद्य मंत्री पुन्नूलाल मोहले को पार्टी कोर ग्रुप में एंट्री दी है. सांसद रमेश बैस ने इस मामले में कहा है कि उन्हें हटाए जाने की अधिकृत सूचना उन्हें नहीं मिली है.

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फैसले से नाराज हैं दोनों नेता
बैस मुताबिक अगर ऐसा है, तो वो पार्टी फॉर्म में अपनी बात रखेंगे. कुछ ऐसा ही कहना पूर्व सांसद नंद कुमार साय का भी है. साय के मुताबिक अमित शाह ने जो किया है अच्छा ही किया है, हालांकि दोनों ही नेताओं की नाराजगी साफतौर पर झलक रही थी. बीजेपी ने केंद्रीय मंत्रिमंडल के गठन और पुर्नगठन के दौरान दोनों ही समय सांसद रमेश बैस को मंत्रिपद से दूर रखा.

पिछड़े वर्ग के कद्दावर नेता हैं बैस
बैस पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मंत्रालय और उद्योग मंत्रालय की जवाबदारी संभाल चुके हैं. NDA शासन काल में वो पार्टी विह्प भी थे. राज्य में पिछड़े वर्ग के नेताओ में रमेश बैस की गिनती कद्दावर नेताओं में होती है. उनकी नाराजगी पार्टी को भारी पड़ सकती है.

साय को सीएम बनाने की हुई थी मांग
यही हाल नंद कुमार साय को लेकर भी है. वो आदिवासी समुदाय के सर्वमान्य नेता हैं. राज्य में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग को लेकर चली सामाजिक मुहीम में सर्व आदिवासी समाज ने साय को ही मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग बीजेपी आलाकमान से की थी. उधर दोनों ही नेताओं की कोर ग्रुप से विदाई को लेकर विपक्ष भी बीजेपी पर तंज कस रहा है.

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आदिवासी और ओबीसी समुदाय का अपमान
पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने इसे आदिवासी और ओबीसी समुदाय का अपमान बताया है. उधर मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इस मामले में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. दोनों ही नेताओं ने बयान जारी कर इस समुदाय के लोगों से बीजेपी को सबक सिखाने की गुहार लगाई है. राज्य में वर्ष 2018 में विधानसभा के चुनाव होने हैं, लेकिन अभी से ही यहां माहौल गरमाया हुआ है.

दिल्ली में हो रहे हैं प्रदेश के फैसले
बीजेपी के अंदर इस बात को लेकर खलबली मची हुई है कि पार्टी में प्रजातंत्र लगभग खत्म हो गया है. राज्य की राजनीति पर नीतिगत फैसले प्रदेश में नहीं, बल्कि दिल्ली में हो रहे हैं. प्रदेश के कई नेताओं ने दबी जुबान में इस पर अपनी नाराजगी जाहिर की है.

शाह के फैसले को चुनौती देने की हिम्मत नहीं
कोई भी नेता खुलकर अमित शाह के फैसलों को चुनौती देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. हालांकि वे सितंबर माह में होने वाली प्रदेश कार्य समिति के बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा के लिए लामबंद हो रहे हैं. बहरहाल दिल्ली में आयोजित पार्टी कोर ग्रुप और मुख्यमंत्रियों की बैठक के बाद बीजेपी के चाल-चलन और चेहरे-मोहरे में क्या बदलाव आता है, इस पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं.

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