राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शनिवार को कहा कि धर्म का मतलब है सभी के साथ अपनत्व का भाव रखना और विविधताओं को सामंजस्य के साथ आगे बढ़ाना. छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में आयोजित ‘लो हितकारी काशीनाथ स्मारिका विमोचन समारोह’ में बोलते हुए भागवत ने कहा कि संघ की असली ताकत उसके साधारण स्वयंसेवक हैं, जिन्होंने तमाम चुनौतियों के बावजूद संगठन का विस्तार किया.
इस अवसर पर उन्होंने संघ के बिलासपुर के वरिष्ठ कार्यकर्ता दिवंगत काशीनाथ गोर के जीवन और कार्यों पर आधारित स्मारिका का विमोचन किया. यह कार्यक्रम छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान (CIMS) के सभागार में हुआ.
भागवत ने कहा, “जो कुछ मैंने कहा, या अन्य वक्ताओं ने कहा, वह शायद दोपहर के भोजन तक भुला दिया जाएगा. लेकिन काशीनाथ गोर के कार्य हमेशा याद रखे जाएंगे. हमारी जिम्मेदारी है कि इस स्मृति को नई पीढ़ी तक पहुंचाएं, ताकि यह उन्हें निरंतर प्रेरणा देती रहे. जब भी हमें प्रेरणा की आवश्यकता होती है, हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “कुछ लोग पूर्वजों की स्मृति को बेकार समझते हैं. लेकिन वही लोग, जब देश संकट में पड़ता है, तो अपने पूर्वजों का आह्वान करते हैं ताकि समाज की सामूहिक शक्ति और साहस जाग्रत हो. धर्म का अर्थ है सबको अपनत्व से देखना और विविधताओं को सामंजस्यपूर्वक आगे बढ़ाना.”
संघ और समाज को मजबूत करने में स्वयंसेवकों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि संघ में सबसे बड़ी जिम्मेदारी एक साधारण स्वयंसेवक होने की है.
उन्होंने कहा, “संघ की स्थापना को 100 साल हो गए हैं. आज यह कई तरीकों से चर्चा में है, लेकिन यह मुकाम संघ को इसलिए मिला क्योंकि उसके स्वयंसेवकों ने हर परिस्थिति में इसे आगे बढ़ाने का संकल्प लिया. तमाम बाधाओं और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने संघ का विस्तार किया.”
भागवत ने कहा कि संगठन को आगे बढ़ाने के लिए स्वयंसेवकों ने जनसंपर्क का विस्तार किया और हिंदू समाज में पहले से मौजूद 'अपनापन' को और अधिक जाग्रत किया. उन्होंने कहा, “हम आज यहां तक पहुंचे हैं स्वयंसेवकों के 100 वर्षों की मौन तपस्या की शक्ति से.”
भागवत ने कहा कि दुनिया को इस अपनत्व को नहीं भूलना चाहिए और हिंदू समाज को इसमें उदाहरण बनना चाहिए. कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष रमन सिंह भी मौजूद थे.