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बिहारः रामविलास पासवान की जयंती पर LJP में हुई जोर आजमाइश, जानिए किसने मारी बाजी?

रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) की लोक जनशक्ति पार्टी ((LJP) ) पर किसका अधिकार होगा, ये तो चुनाव आयोग तय करेगा लेकिन अगर भीड़ यानी संख्या बल की बात करें तो पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच फिलहाल कोई तुलना नहीं नज़र नहीं आ रही है.

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आशीर्वाद यात्रा पर निकले चिराग पासवान (फोटो-पीटीआई)
आशीर्वाद यात्रा पर निकले चिराग पासवान (फोटो-पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • पासवान की विरासत का वारिस कौन?
  • पहली जयंती पर होती रही आजमाइश

रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) की राजनीतिक विरासत का हकदार कौन होगा? पुत्र चिराग या भाई पशुपति? बिहार की जनता 5 जुलाई को दिन भर इस सवाल से दरयाफ्त होती रही. दोनों ही पक्ष उस रामविलास पासवान से अपनी वफा की गवाही दे रहे हैं जो ये तय करने के लिए इस दुनिया में नहीं रहे. मगर जनता की नजर बड़ी पैनी होती है वो समय आने पर पासवान के वारिस की मुनादी कर देगी.

लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) में टूट के बाद 5 जुलाई को पहली बार दोनों ही गुटों ने बिहार में शक्ति प्रदर्शन किया. मौका था दिवंगत रामविलास पासवान की जयंती का. एक तरफ उनके छोटे भाई और बागी गुट के मुखिया पशुपति पारस थे जिन्होंने पटना के LJP दफ्तर में अपने साथियों के साथ रामविलास पासवान की जयंती मनाकर दम दिखाया. तो वहीं दूसरी ओर चिराग पासवान थे, जो पार्टी में टूट के बाद पहली बार बिहार आए और पिता की राजनीतिक विरासत पर अपना दावा ठोंका.

पशुपति पारस ने पासवान के लिए भारत रत्न की मांग की

पार्टी कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में पशुपति पारस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया कि पासवान जी को दूसरा आम्बेडकर माना जाता है, इसलिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया जाए. साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी गुजारिश की कि LJP दफ्तर के बंगले को रामविलास पासवान के नाम पर राष्ट्रीय स्मारक घोषित करें और वहां उनकी एक आदमकद की मूर्ति लगवाएं. इसके अलावा हाजीपुर सर्किट हाउस के बगल में भी सरकार रामविलास पासवान की आदमकद मूर्ति लगवाए. 

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जनता का मिजाज भांपने आशीर्वाद यात्रा पर निकले चिराग

दूसरी तरफ चिराग पासवान (chirag paswan) ने 5 जुलाई से अपनी आशीर्वाद यात्रा की शुरुआत की. पटना एयरपोर्ट पर सुबह से ही उनके समर्थकों की भारी भीड़ जुटी हुई थी. जैसे ही चिराग एयरपोर्ट से बाहर निकले, समर्थकों ने नारेबाजी शुरू कर दी. चिराग एयरपोर्ट से निकलकर पटना हाईकोर्ट के पास मौजूद आम्बेडकर मूर्ति पर माल्यार्पण करने पहुंचे. लेकिन पार्क का गेट बंद था. 

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धरने पर बैठे चिराग

इसे लेकर चिराग वहीं धरने पर बैठ गए और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की. उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें आम्बेडकर का आर्शीवाद लेने से रोका जा रहा है. चिराग ने कहा कि आप आशीर्वाद लेने से रोक सकते हैं लेकिन उनके बताए विचारों पर चलने से नहीं.

चिराग की प्रतीक्षा में जनता

इसके बाद चिराग अपने काफिले के साथ रामविलास पासवान की कर्मभूमि और चाचा पशुपति पारस के लोकसभा क्षेत्र हाजीपुर के लिए निकले. पूरे रास्ते चिराग अपनी गाड़ी की छत से बाहर निकलकर लोगों का अभिवादन स्वीकार करते रहे. लोग भी चिराग की प्रतीक्षा में सड़कों के किनारों पर खड़े थे और उनपर फूलों की बारिश कर रहे थे. लोगों का समर्थन देख चिराग भी काफी खुश नजर आ रहे थे. 

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'देखो-देखो कौन आया, शेर आया-शेर आया'

हाजीपुर के सुल्तानपुर गांव में चिराग के पहुंचते ही 'देखो-देखो कौन आया, शेर आया-शेर आया' और 'धरती गूंजे आसमान, रामविलास पासवान' के नारे लगने लगे. चिराग ने यहां बताया कि आखिर उन्होंने आशीर्वाद यात्रा की शुरुआत हाजीपुर और खासतौर पर सुल्तानपुर गांव से ही क्यों की? दरअसल इस गांव से रामविलास पासवान का पुराना रिश्ता रहा है, वो यहीं बैठकर अपनी चुनावी रणनीति बनाया करते थे. बाद में उन्होंने इस गांव को गोद ले लिया और खुद का एक मकान भी बनवाया. इसी को देखते हुए चिराग ने हाजीपुर के सुल्तानपुर गांव में अपने पिता के चित्र पर माल्यार्पण किया और हाजीपुर से पटना के लिए रवाना हो गए.

विरासत पर सियासत और दावेदारी

यानी कि सोमवार का दिन बिहार में राजनीतिक विरासत पर दावेदारी की कोशिशों से भरा रहा. पार्टी पर किसका अधिकार होगा, ये तो चुनाव आयोग तय करेगा लेकिन अगर भीड़ यानी संख्या बल की बात करें तो पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच फिलहाल कोई तुलना नहीं नज़र नहीं आ रही है. जहां एक तरफ पशुपति पारस के कार्यक्रम में करीब 700 से लोग मौजूद थे, वहीं चिराग पासवान की आशीर्वाद यात्रा में इतनी तो सिर्फ गाड़ियां मौजूद थीं. आलम ये था कि चिराग की इस यात्रा की वजह से पटना से लेकर हाजीपुर तक भयानक जाम लग गया था. जानकारों का कहना है कि जनता का समर्थन फिलहाल चिराग को मिलता हुआ दिखाई पड़ रहा है. 

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