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भारत में फैल रही 'रहस्यमयी किडनी महामारी’...नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. बल्लाल बोले, हर साल 2 लाख लोगों के गुर्दे फेल

India's rising Chronic kidney disease: नेफ्रोलॉजिस्ट का कहना है कि क्रोनिक किडनी डिजीज का कारण लाइफस्टाइल के कारण होने वाली बीमारियां डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर भी हो सकती हैं.

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भारत में हर साल लाखों लोग किडनी की बीमारी से पीड़ित होते हैं. (Photo: Ai Generated)
भारत में हर साल लाखों लोग किडनी की बीमारी से पीड़ित होते हैं. (Photo: Ai Generated)

क्रोनिक किडनी डजीज (CKD) दुनिया के साथ-साथ भारतीय आबादी में भी काफी खतरनाक तरीके से फैल रही है और एक संकट की तरह उभर रही है. पहले जहां ये बीमारी सिर्फ बुजुर्गों या अमीर तबके तक सीमित थी, वहीं अब ये बीमारी डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर जैसी लाइफस्टाइल डिजीज के कारण भी हो रही है. इस बारे में नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. एच. सुदर्शन बल्लाल ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर स्थिति ऐसी ही बनी रही तो जल्द ही यह बीमारी महामारी के स्तर तक भी पहुंच सकती है. इस बीमारी के लोकर डॉ. बल्लाल ने क्या जोखिम और चेतावनी संकेत दिए, ये जानना भी सभी को काफी जरूरी है.

क्या कहते हैं डॉक्टर?

डॉ. बल्लाल ने एजेंसी से बातचीत में बताया, 'देश में हर साल करीब दो लाख लोग गंभीर किडनी फेल्योर की स्थिति में पहुंच जाते हैं जबकि इससे 10 गुना अधिक लोग किडनी बीमारी से जूझते हैं. लेकिन चिंताजनक बात यह है कि इनमें से सिर्फ 25 प्रतिशत मरीजों को ही इलाज मिल पाता है. तीन दशक पहले हालात बहुत खराब थे. जब मैं 1991 में अमेरिका से भारत लौटा, तो पूरे देश में सिर्फ 800 नेफ्रोलॉजिस्ट थे. दरअसल, अमेरिका में भारत से अधिक भारतीय नेफ्रोलॉजिस्ट प्रैक्टिस कर रहे थे. हालांकि अब नेफ्रोलॉजिस्ट की संख्या और मेडिकल सुविधाएं बढ़ी है लेकिन मरीजों को देखते हुए अभी भी डॉक्टर्स की संख्या काफी कम है.'

'हम अभी भी उन सभी मरीजों को इलाज नहीं दे पा रहे हैं जिन्हें ट्रीटमेंट की जरूरत है. किडनी की बीमारी काफी कॉमन हो गई है. नेफ्रोलॉजिस्ट और डायलिसिस सेंटर्स तक पहुंच तो बढ़ गई है लेकिन अभी भी काफी सुधार की जरूरत है. जो लोग किडनी डिजीज की आखिरी स्टेज तक पहुंच जाते हैं उनके पास एकमात्र ऑपशंस डायलिसिस और ट्रांसप्लांट ही बचते हैं जो कई फैमिलीज के पहुंच से बाहर होते हैं.'

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इलाज जेब पर भारी

डॉ. बल्लाल बताते हैं, 'हालांकि भारत में डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट पहले की तुलना में अधिक आसान हो गए हैं लेकिन खर्च अब भी एक बड़ा संकट है. 1990 के दशक में सिर्फ 5 प्रतिशत मरीजों के पास हेल्थ इंश्योरेंस होता था और वहीं आज 60 प्रतिशत से लोगों के पास हेल्थ इंश्योरेंस है. लेकिन लंबे समय तक डायलिसिस का खर्च अभी भी बहुत ज्यादा है. कई परिवार इसका खर्चा वहन नहीं कर पाते और वहीं रुक जाते हैं.'

'मेरा मानना है कि किसी भी नागरिक को सिर्फ पैसों की वजह से इलाज से वंचित नहीं होना चाहिए. भारत को अमेरिका के मेडिकेयर या ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सर्विस जैसी व्यवस्था की जरूरत है, जहां हर व्यक्ति को स्वास्थ्य सेवा का अधिकार मिले.'

गांवों में बढ़ रही किडनी बीमारी

डॉ. बल्लाल का कहना है, 'दक्षिण भारत के किसानों में तेजी से एक रहस्यमयी किडनी की बीमारी फैल रही है जिसे क्रॉनिक किडनी डिजीज ऑफ अननोन ओरिजिन (CKDU) कहा जा रहा है. तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के कई इलाकों में युवा किसान किडनी फेल्योर के शिकार हो रहे हैं. कोई कहता है कि ये गर्मी और डिहाइड्रेशन से जुड़ा है तो कोई खाद और कीटनाशक से दूषित मिट्टी के संपर्क में आने को इसकी वजह मान रहा है. लेकिन अभी तक इसका असली कारण पता नहीं चल पाया है. यह बीमारी संक्रामक नहीं है लेकिन काम करने के हालात और पर्यावरण से गहराई से जुड़ी हुई हो सकती है.'

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बचाव ही असली उपाय है

डॉ. बल्लान का मानना है कि यदि भारत को किडनी डिजीज के आने वाले जोखिम से बताना है तो रोकथाम पर ध्यान देना होगा. पीने का साफ पानी, सफाई और वैक्सीनेशन जितनी लाइफ सेव कर सकते हैं उतनी कोई कॉर्पोरेट हॉस्पिटल नहीं बचा सकता. यदि हम न्यूट्रिशन और पब्लिक हेल्थ सिस्टम को मजबूत करें तो इन बीमारियों को पहले ही रोका जा सकता है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी तकनीकें आने वाले समय में किडनी डिजीज की जल्दी पहचान और इलाज को पूरी तरह बदल देंगी क्योंकि शुरुआती स्टेज में ही बीमारी को पकड़ा जा सकेगा और उसे सही ट्रीटमेंट मिल जाएगा.

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