
तेलंगाना की कांग्रेस सरकार एक नई मुसीबत में फंसती नजर आ रही है. सरकार पर विपक्ष ने तेलंगाना की अस्मिता से छेड़छाड़ का आरोप लगाया है.
दरअसल, दो जून को तेलंगाना का स्थापना दिवस है. इससे पहले मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी तेलंगाना का नया गीत और नया प्रतीक चिन्ह लॉन्च करने की तैयारी कर रहे थे. तेलंगाना का नया गीत 'जय जय हे तेलंगाना' को तो मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने मंजूरी दे दी है. लेकिन प्रतीक चिन्ह पर अभी सहमति नहीं बन पाई है.
विपक्षी पार्टियां भारत राष्ट्र समिति (BRS) और AIMIM ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस सरकार प्रतीक चिन्ह से चारमीनार और काकतीय राजवंश की मेहराब को हटाने की तैयारी कर रही है. इसलिए अभी इस पर सरकार ने कोई फैसला नहीं लिया है. मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी का कहना है कि इसका फैसला विधानसभा में लिया जाएगा, ताकि गलतफहमी की कोई गुंजाइश न रहे.
एक दिन पहले ही बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामाराव ने स्टेट सिंबल से चारमीनार और काकतीय कला थोरानम को न हटाने की मांग की थी. AIMIM ने भी सरकार से प्रतीक चिन्ह में चारमीनार बरकरार रखने की मांग की थी, क्योंकि ये राज्य के लंब सांस्कृतिक इतिहास का प्रतीक है.
तेलंगाना सरकार ने स्टेट सिंबल को लेकर फिलहाल कोई फैसला नहीं लिया है, लेकिन जानकारों का मानना है कि अगर प्रतीक चिन्ह से चारमीनार और काकतीय मेहराब को हटाया जाता है तो इससे तेलंगाना की पहचान के मिटने का डर है.
चारमीनार और काकतीय कला थोरानम का महत्व क्यों?
- काकतीय कला थोरानमः इसे वारंगल गेट के नाम से भी जाना जाता है. इसका निर्माण काकतीय राजवंश के गणपति-देवा ने करवाया था. पत्थरों से बना ये दरवाजा वारंगल किले में स्वयंभूशिव मंदिर परिसर का हिस्सा था. इस मंदिर का निर्माण काकतीय राजवंश ने करवाया था. थोरानम का नक्काशीदार तोरणद्वार उस समय की कला और राजवंशीय विरासत का प्रतीक माना जाता है.
- चारमीनारः 1591 में कुतुब शाहीवंश के पांचवें शासक मुहम्महद कुतुब कुली कुतुब शाह ने करवाया था. कहा जाता है कि चारमीनार का निर्माण कुतुब शाह ने अपनी भागमती की याद में करवाया था. हालांकि, ऐसी भी मान्यता है कि चारमीनार का निर्माण प्लेग के खात्मे की याद में किया गया था. 16वीं सदी में प्लेग फैल गया था, जिससे हजारों लोगों की मौत हो गई थी. चारमीनार के चारों ओर बने ये खंभे चार खलीफाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं. हर एक की ऊंचाई 48.7 मीटर है.

प्रतीक चिन्ह में कैसे आई दोनों धरोहरें?
2014 में आंध्र प्रदेश से अलग होकर तेलंगाना बना था. इसके बाद तेलंगाना का अपना अलग प्रतीक चिन्ह बना. इस प्रतीक चिन्ह को आर्टिस्ट लक्ष्मण ईले ने डिजाइन किया था. इसमें उन्होंने तेलंगाना की दो ऐतिहासिक धरोहरों काकतीय कला थोरानम और चारमीनार को दिखाया था.
तो क्या हट जाएंगी दोनों धरोहरें?
पिछले साल दिसंबर में तेलंगाना में कांग्रेस सरकार आने के बाद रेवंत रेड्डी मुख्यमंत्री बने थे. सीएम रेड्डी का दावा है कि तेलंगाना को रिबिल्ड करने के लिए उनकी सरकार ने कई कदम उठाए हैं.
उन्होंने बताया कि राज्य के नए प्रतीक चिन्ह के लिए अलग-अलग कलाकारों की तरफ से 500 से ज्यादा सैंपल आए हैं, लेकिन अब तक किसी पर फैसला नहीं लिया गया है. उनका कहना है कि तेलंगाना के नए प्रतीक चिन्ह पर विधानसभा में फैसला लिया जाएगा.