scorecardresearch
 

देश में 13 करोड़ से ज्यादा लोगों को मल्टीडायमेंशनल गरीबी से मिला छुटकारा, क्या है बहुआयामी गरीबी, कैसे तय होती है?

NITI Aayog की ताजा रिपोर्ट कहती है कि बीते 5 सालों में करीब साढ़े 13 करोड़ लोग मल्टीडायमेंशनल गरीबी से बाहर निकले. रिपोर्ट के अनुसार, बहुआयामी गरीबी 24.85% से गिरकर पांच सालों के भीतर 14.96% पर आ गई. यहां सवाल ये है कि अब तक लोग गरीबी का तो एक ही मतलब जानते रहे, फिर ये मल्टीडायमेंशनल गरीबी क्या है?

Advertisement
X
देश में गरीबी में तेजी से गिरावट बताई जा रही है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
देश में गरीबी में तेजी से गिरावट बताई जा रही है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

नीति आयोग ने सोमवार को 'राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक: एक प्रगति संबंधी समीक्षा 2023' नाम से रिपोर्ट निकाली. इसमें दावा किया गया कि कुछ ही सालों के भीतर साढ़े 13 करोड़ के आसपास की आबादी बहुआयामी गरीब नहीं रही. इसमें ज्यादातर लोग गांवों से हैं, जहां गरीबी का ये प्रकार तेजी से कम हुआ. बिहार, झारखंड, मेघालय, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में मल्टीडायमेंशनल गरीबी ज्यादा दिखती है, जबकि केरल, गोवा, तमिलनाडु और दिल्ली में इससे प्रभावित लोग कम हैं. 

अलग-अलग मानकों पर देखा गया

रिपोर्ट तैयार करने के लिए आयोग ने आंकड़े लेने की बजाए अलग तरीका अपनाया. इसके लिए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के स्टेटिस्टिक्स लिए गए, ताकि गरीबी के हर पहलू को देखा जा सके. इसमें कुल 12 इंडिकेटर थे. अगर कोई परिवार इन 12 में से 10 मानकों में कम-ज्यादा हो रहा हो, तो वो बहुआयामी गरीबी का शिकार माना जाएगा. 

खाने नहीं, पोषण पर हो रही बात

इसे आसान भाषा में समझते हैं. जैसे पहले ये बात होती थी कि अगर किसी के पास खाने को रोटी नहीं है तो वो गरीब कहलाएगा. लेकिन अब न्यूट्रिशन पर बात होती है. किसी के घर पर खाना तो मिले, लेकिन पोषण की इतनी कमी हो कि बच्चे का विकास न हो सके तो वो गरीब की श्रेणी में आएगा. या फिर गर्भवती को अगर पोषण खाना या वैक्सीन न मिल सकें तो भी ये गरीबी का एक डायमेंशन है.

Advertisement
niti aayog multidimensional poverty index
सिर्फ पैसों ही नहीं, गरीबी कई तरीकों से मापी जाती है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

क्या हैं 12 इंडिकेटर?

जिन पहलुओं पर गरीबी को मापा जा रहा है, उनमें, पोषण, रसोई गैस, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृ स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, पेयजल, हाइजीन, बिजली, घर, संपत्ति और बैंक खाता होना शामिल है. 

हाइजीन को पहले गरीबी से नहीं, बल्कि आदतों से जोड़ा जाता था, लेकिन फिर यूएनडीपी ने कहा कि स्वच्छता गरीबी का इंडिकेटर है. लोगों के पास अगर पैसे नहीं हैं, तो वे नालियों, कूड़े के आसपास भी बस्ती बनाने को तैयार हो जाएंगे. या फिर बगैर हाथ धोए खाना पकाएंगे-खिलाएंगे.

भारत में सबसे ज्यादा गरीब

बहुआयामी गरीबी सिर्फ भारत ही नहीं, दुनिया में भी देखी जाती है. ग्लोबल मल्टीडायमेंशनल पावर्टी इंडेक्स के तहत देखा जाता है कि दुनिया के कितने देशों में गरीबी के कितने कम या ज्यादा पहलू हैं. इसके लिए 10 सूचकांक हैं. अगर देश की बड़ी आबादी इनमें से एक तिहाई में पूरी न उतरे, तो उसे मल्टीडायमेंशनल गरीब माना जाता है. इसकी मानें तो 22 करोड़ लोगों के साथ भारत में सबसे ज्यादा गरीब हैं. इसके बाद नाइजीरिया का नंबर आता है, जहां लगभग साढ़े 9 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी देख रहे हैं. 

Advertisement
niti aayog multidimensional poverty index
घर में भरपेट खाना मिले, लेकिन पोषण न हो तो ये भी गरीबी का इंडिकेटर है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

वैसे दुनिया में 1.2 बिलियन लोग बहुआयामी गरीबी की श्रेणी में आते हैं. इसमें सबसे ज्यादा आबादी अफ्रीकी देशों में है, जिसके बाद दक्षिण एशिया का नंबर आता है. अकेले ये दो हिस्से ही दुनिया की 83 प्रतिशत गरीबी की वजह हैं.

तो क्या बहुआयामी अमीरी भी होती है?

हां. लेकिन इसके इंडिकेटर गरीबी से अलग तरह के होते हैं. इसमें पैसे ही नहीं, बल्कि शारीरिक, मानसिक सेहत भी देखी जाती है. यहां तक कि पर्यावरण, सोशल और कल्चरल पहलू भी शामिल हैं. जैसे, किसी परिवार के पास खूब पैसे हों, लेकिन वो काफी प्रदूषित जगह पर रह रहा हो, या फिर उसकी संस्कृति खत्म होती जा रही हो तो वो अमीर तो होगा, लेकिन मल्टीडायमेंशन नहीं.

 

Advertisement
Advertisement