मैसूर के राजा कृष्णराजा वडियार चतुर्थ का खास दरबार लगा हुआ था. आज दरबार की रौनक कुछ अलग ही थी और इससे भी अलग होने वाला था दोपहर का भोजन. राजा के लिए उनके महल की बड़ी रसोई में तरह-तरह के पकवान और लजीज-स्वादिष्ट भोजन तैयार हो रहा था, जो महल में होने वाले सहभोज यानी बड़ी दावत में चार चांद लगाने वाले थे. खैर, वो मौका भी आ गया. भोजन परोसा गया, सबने खाया और खूब तारीफें की.
आखिर में राजा की ओर एक चमचमाती तश्तरी बढ़ाई गई. तश्तरी में आयत के आकार के कुछ एक सार टुकड़े रखे थे. राजा ने एक टुकड़ा उठाया और हौले से उसे मुंह में रख लिया. फिर यहां से स्वाद का जो सिंधु राजा के मुंह में घुला वह उन्हें निशब्द कर गया. इसके अद्भुत स्वाद और रस को महसूस कर लेने के कुछ देर बाद राजा ने अपने प्रधान रसोइये से यूं ही पूछ लिया, इसका नाम क्या है?
कैसे पड़ा 'मैसूर पाक' मिठाई का नाम?
काकासुरा मदप्पा, जो प्रधान रसोइया थे, उन्हें इस सवाल की जरा भी आशा न थी, लेकिन राजा ने पूछा है तो नाम तो बताना होगा... लिहाजा बिजली की सी तेजी के साथ उनके मुंह से निकला... इसे 'मैसूर पाक' कहते हैं महाराज. मैंने ये खास आपके लिए बनाया है.
वाह... मैसूर पाक, आपकी रसोई से निकली नायाब मिठाई है मदप्पा, हम चाहेंगे कि इसकी मिठास से कोई अछूता न रह जाए. आप इसे इसी स्वाद के साथ बड़े पैमाने पर बनवाइये और राज्य में सबके खाने का प्रबंध कीजिए. कहते हैं कि मदप्पा की बनी ये मिठाई, जल्द ही हलवाइयों के यहां भी बनने लगी और देखते-देखते सालभर के भीतर मैसूर की पहचान बन गई.

ऐसे बनी ये फेमस मिठाई
हुआ तो यूं था कि राजा और मेहमानों के लिए सारा भोजन तो बन गया था, लेकिन मिठाई समय पर नहीं बन पाई थी. तब मदप्पा ने भुने बेसन-घी और चीनी से कम समय में इस मिठाई को तैयार किया था. राजा को परोसने तक भी वह इसका नाम नहीं सोच पाए थे, लेकिन जैसे ही राजा ने नाम पूछा तो उन्हें मैसूर में पकाए जाने के कारण, राज्य का नाम पर ही इसे 'मैसूर पाक' कह दिया. तब से ये मिठाई मैसूर के साथ ही कर्नाटक और दक्षिण भारत की पहचान बनी हुई है.
पाक शब्द कैसे बन गया नफरत का शिकार
मैसूर पाक की कहानी कहने के लिए आज कोई खास दिन नहीं है. ऐसा भी नहीं है कि आज कर्नाटक राज्य के लिए कोई खास दिन हो या मैसूर के किसी इतिहास पर बात करनी है. ये सारा माजरा इस मिठाई के पीछे जुड़े 'पाक' से जुड़ा है. पहलगाम अटैक के बाद से आम भारतीय इस शब्द को हेय दृष्टि से देख रहा है, हालांकि इस बात में कोई लॉजिक नहीं है, लेकिन इसमें भी क्या लॉजिक इस नफरत के कारण मिठाइयों का नाम बदल दिया जाए.
जयपुर में बदले गए हैं मिठाइयों के नाम
हुआ यूं है कि जयपुर में कुछ प्रतिष्ठानों ने अपने यहां ऐसी मिठाइयों के नाम बदल दिए हैं, जिनके आखिरी में 'पाक' आता है. जहां-जहां पाक लिखा था उसे बदलकर श्री कर दिया है. जैसे मुंह में स्वाद घोलने वाली मिठाई 'मोतीपाक' अब 'मोती श्री' कहलाएगी. केसरपाक को केसरश्री और मैसूरपाक को मैसूरश्री का नाम मिला है. इसी तरह, ‘चांदी भस्म पाक' को ‘चांदी भस्म श्री' और ‘स्वर्ण भस्म पाक' को ‘स्वर्ण भस्म श्री' कर दिया गया है.
पाक की जगह कर दिया गया है श्री
ये एक अलग लेवल की देशभक्ति है, जिसे सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, वाटर स्ट्राइक से जोड़कर स्वीट स्ट्राइक कहा जा रहा है. बात सिर्फ इतनी है कि मिठाइयों के नाम के पीछे लगा पाक, पाकिस्तान के शॉर्ट फॉर्म वाले PAK से मैच कर रहा था. इससे मिठाइयां फीकी, बेस्वाद और कड़वी लगने लगी थीं तो इनके पीछे से PAK यानी पाक हटाकर उनकी जगह 'श्री' कर दिया गया है. इससे मिठाइयों में स्वाद की फिर से वापसी हो गई है.
लेकिन, अब शायद इस बात से व्याकरण नाराज हो सकता है और गौर करें तो अर्थ का अनर्थ होने का भी डर है. पहली बात तो ये कि 'पाक' शब्द संस्कृत का शब्द है और इसका उर्दू वाले पाक (PAK) से कोई सीधा वास्ता नहीं है.
पाक शब्द का संस्कृत अर्थ
संस्कृत भाषा में 'पाक' शब्द का अर्थ 'पकाना' है. यह शब्द संस्कृत के 'पाक' से आया है. 'रसोई' से जुड़े 'पाक' शब्द का प्रयोग खाना पकाने और भोजन की तैयारी के संदर्भ में किया जाता है. इसकी भी मूल धातु 'पच्' है. संस्कृत में इसका वाक्य प्रयोग ऐसे होगा, 'अम्बा भोजनं पच्यते' यानी हिंदी अर्थ हुआ 'माता भोजन पकाती हैं.' संस्कृत भाषा में 'पाक' शब्द का उपयोग सबसे पहले वैदिक संस्कृत में हुआ था और जब वैदिक संस्कृत से प्राकृत भाषाओं का विकास हुआ तो इसमें भी 'पाक' शब्द भोजन पकाने के संदर्भ में अपनाया गया.
इसीलिए खाने पकाने के विज्ञान को 'पाकशास्त्र' कहा जाता है. कुला मिलाकर मूल बात ये है कि 'पाक' शब्द संस्कृत भाषा में खाना पकाने और भोजन की तैयारी के लिए उपयोग किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण शब्द है. यह शब्द वैदिक संस्कृत से प्राकृत भाषाओं में और फिर अन्य भाषाओं में भी फैला है और इसे इसी मूल स्वरूप में हिंदी में भी कई विशेषता के साथ अपनाया गया है.
पकवान सिर्फ शब्द ही नहीं हजारों वर्षों की विरासत
इसी तरह, 'पकवान' शब्द की जड़ें भी संस्कृत में ही हैं, जो 'पक्व' शब्द से निकली हैं. इसका अर्थ है 'पका हुआ' या 'परिपक्व'. संस्कृत मूल 'पच्' खाना पकाने या परिपक्व करने की क्रिया का के तौर पर अपनाया गया है, और 'वान' प्रत्यय के जुड़ने से यह संज्ञा बन जाता है, जिसका अर्थ है 'वह जो पकाया गया' या 'पका हुआ भोजन'. यह प्राचीन भारत में भोजन तैयार करने की प्रक्रिया पर जोर देता है, जो केवल जरूरत ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत भी है.
संस्कृत से, यह शब्द प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं के माध्यम से मध्यकालीन भारतीय भाषाओं में विकसित हुआ, और फिर हिंदी में 'पकवान' बन गया. इसका उपयोग खास तौर पर त्योहारों, शादियों या अन्य महत्वपूर्ण अवसरों के लिए तैयार किए गए व्यंजनों के लिए होता है. मनसोल्लास और आयुर्वेदिक ग्रंथों जैसे ऐतिहासिक ग्रंथों में विभिन्न 'पकवानों' का उल्लेख है, जो राजसी भोज और अनुष्ठानों में उनके महत्व को दर्शाता है.
यजुर्वेद में भी आता है पाक शब्द
यजुर्वेद में एक शब्द आता है 'पिष्टपाक'. यानी पिसे हुए अनाज का पकवान. वैदिक काल में जब मंत्रद्रष्टा ऋषि यज्ञ की परंपरा विकसित कर रहे थे तो उन्हें अग्नि को समर्पित करने के लिए कई तरह की हवियों का भी निर्माण किया. पीसे गए अनाज से बनाई गई हवि भी इनमें से एक है और इसे ही 'पिष्टपाक' हवि कहा गया है. यहां भी पाक शब्द का अर्थ पकाए जाने, उबालने और गर्म करके नए स्वरूप में निर्माण करने से है.
मिठाइयों के नामों में रही है अलग ही धमक
भोजन के हर रूप में जिस तरह मिठाइयां सबसे विशेष हैं, तो इनके नाम भी वैसे ही रखे गए हैं, ताकि मिठाइयों में लहीम-शहीम सा जलवा बरकरार रहे. ऐसे में अक्सर मिठाइयों के नाम संस्कृतनिष्ठ मिलते हैं, या फिर हिंदी के कठिन शब्दों में रखे गए हैं. जैसे कलाकंद, राजभोग, केसर पिस्ता, खीरकदम, सोन हलवा, शाही टुकड़ा. गुलकंद, रसभरी और इस लिस्ट में आप जो भी नाम जोड़ते चलें.
ये तो रही 'पाक' शब्द की बात. इस तरह मोतीपाक मिठाई का अर्थ हुआ मोती जैसी पकी हुई. मैसूर पाक, यानी मैसूर में पकी हुई, केसरपाक, केसर के साथ पकी हुई. इसलिए इस पाक का उस PAK से दूर-दूर तक नाता नहीं है.

इसी पाक के साथ मिलता जुलता शब्द है पाग. हिंदी शब्दकोष पर नजर डालें तो इसका अर्थ मिलता है 'पगा हुआ, डूबा हुआ या मिला हुआ.' संत तुलसी की विनय पत्रिका में एक पद है,
'आखर अरथ मंजु मृदु मोदक राम प्रेम पाग पाहगिहैं'
यहां संत तुलसी ने अपने अक्षरों के मोदक को प्रेम के रस में पागकर श्रीराम को समर्पित करनी की बात कही है.
डिक्शनरी कहती है कि पाग एक तरह से वह शीरा या चाशनी है, जिसमें मिठाइयां या किसी मिठाई को उसका प्राकृतिक स्वाद देने के लिए डुबाकर रखा जाता है. जैसे पेठा नाम की मिठाई को कुम्हड़ा पाग भी कहा जाता है. इसी तरह जन्माष्टमी और दीवाली के मौके पर 'मेवा पाग' नाम की मिठाई बनती है. ये मिठाई चीनी के शीरे में डुबाकर और जमाकर बनाई जाती है. बूंदी को भी बूंदी पाग कहा जाता है. इसी तरह जलेबी भी 'कुंडलिका पाग' कहलाती है, लेकिन इसका ये नाम कोई नहीं लेता, हजारों सालों से इसे जलेबी ही कहा जा रहा है.
पाक (PAK) का क्या है अर्थ?
पाकिस्तान के नाम में जो पाक शब्द आया है, वो संस्कृत वाले या मिठाइयों वाले पाक से अलग है. इसका मूल फारसी है. इसका अर्थ शुद्धता और पवित्रता से जुड़ा हुआ है. पाकिस्तान का अर्थ है पवित्र स्थान. यहां इस बात का जिक्र करना जरूरी हो जाता है कि, पाकिस्तान का नाम भी खुद संस्कृत से ही निकला हुआ है. पाकिस्तान दो शब्दों से मिलकर बना है पाक और स्तान.
विद्वानों का मत है कि स्तान शब्द मूलरूप से संस्कृत से आया है, जिसका अर्थ होता है जगह. पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक तारेक फतेह ने भी अपने लेखों में इसका जिक्र किया है कि पाकिस्तान का नाम ही संस्कृत से आया. संस्कृत के 'स्थान' शब्द से ही 'स्तान' बना है. ऐसे में स्तान का अर्थ जमीन, जमीन का हिस्सा ही होता है.
अंग्रेज विद्वान विलियम जोन्स का मानना है कि 'दुनिया की सारी भाषाएं मूल रूप से तीन भाषाओं से निकली हैं, वो हैं लेटिन, ग्रीक और संस्कृत' तीनों भाषाओं के शब्द स्थानीय बोलियों के आधार पर बदलते हुए, लेकिन एक जैसे अर्थ के लिए एक से दूसरी भाषा में प्रयोग हुए हैं. इनके उच्चारण और लिखने का तरीका भले ही अलग हो गया है, लेकिन मूल अर्थ एक ही है. इसलिए पाकिस्तान के PAK का मिठाइयों के पाक से कोई मेल-जोल नहीं है. विरोध में उनका नाम बदलने से क्या लाभ?