
भारत का एक तबका हमेशा से ऐसा रहा है, जो विदेश में बसने की चाह रखता है. इसमें भी भारतीयों की पहली पसंद अमेरिका या ब्रिटेन जैसे देश रहे. यहां पढ़ने और कामकाज के लिए बड़ी संख्या में भारत से लोग पहुंचते हैं. लेकिन वक्त के साथ इन देशों का मिजाज बदला. वे प्रवासियों पर लगाम कसने लगे. यही वो वक्त था, जब भारतीयों ने अपनी मंजिल बदली और उनका नया ठिकाना बना, ‘कनाडा’.
कनाडा के पास अपनी आबादी काफी कम थी. उसे कामकाजी लोग चाहिए थे. भारतीयों ने ये मौका लपक लिया. साल 2015 में जस्टिन ट्रूडो सरकार ने इमिग्रेशन प्रोसेस को बेहद आसान कर दिया. कनाडा ने एक्सप्रेस-एंट्री सिस्टम शुरू किया, जो हाई स्किल्ड वर्कर्स को परमानेंट रेसिडेंसी (PR) के लिए आमंत्रित करता है, भले ही आपके पास कनाडा में नौकरी का कोई ऑफर ना हो. यानी कनाडा आकर नौकरी ढूंढो या अपना कोई काम शुरू करो. इसी बीच आप वहां PR पा सकते हैं. इसके बाद से कनाडा आने वाले भारतीयों की संख्या लगातार बढ़ती रही.

PR मिलने के बाद कोई भी शख्स कनाडा में कनाडाई नागरिक की तरह ही हर सुविधा हासिल कर लेता है, सिवाए वोट देने के. वोट का अधिकार यहां की नागरिकता मिलने के बाद मिलता है, जो PR का अगला कदम है.
कनाडा का PR पाने के लिए कनाडा सरकार का विभाग इमिग्रेशन, रिफ्यूजी एंड सिटिजनशिप कनाडा (IRCC) कैंडिडेट की उम्र, पढ़ाई, भाषा, जीवनसाथी की पढ़ाई, कनाडा में जॉब ऑफर जैसे अलग-अलग मानकों के आधार पर कुछ स्कोर तय करता है, जो ये बताता है कि आप कनाडा में रहने और यहां नौकरी या अपना बिजनेस करने के लिए कितने लायक हैं. ये कॉम्प्रिहेंसिव रैंकिंग सिस्टम (CRS) कहलाता है. PR के लिए अप्लाई करने वाले शख्स का CRS स्कोर IRCC की जारी की हुई CRS कट-ऑफ रेंज के बराबर या उससे ज्यादा होना चाहिए.
कैसे तय होता है CRS?
एक इमिग्रेशन फर्म की मैनेजर इशमिंदर उदाहरण से समझाती हैं.
राजेश नाम का भारतीय शख्स कनाडा का PR हासिल करना चाहता है. उसकी उम्र 29 साल है. मास्टर्स की डिग्री है और उसने IELTS (विदेश जाने के लिए दिए जाने वाला इंग्लिश का टेस्ट) में 9 रैंक हासिल की है. राजेश के पास 3 साल काम का तजुर्बा है. लेकिन उसके पास कोई कनाडाई डिग्री या नौकरी का प्रस्ताव नहीं है. राजेश सिंगल है.

इस तरह राजेश का CRS हुआ 469. अगर IRCC का ड्रॉ कटऑफ 465 है, तो राजेश को आसानी से PR के लिए आवेदन का न्यौता मिलेगा. वहीं ड्रॉ कटऑफ 470 हुआ तो राजेश PR हासिल नहीं कर सकेगा. हालांकि भविष्य में ड्रॉ 470 से कम हो जाता है, तो उसे PR के लिए आवेदन का दोबारा मौका मिल सकता है. यानी अगर कोई शख्स सही उम्र में अच्छी अंग्रेजी, पढ़ाई और वर्क एक्सपीरिंयस के साथ आता है तो वो आसानी से कनाडा का PR हासिल कर सकता है.
आसान इमिग्रेशन प्रोसेस के बाद विदेश से आने वालों की संख्या कनाडा में इतनी बढ़ गई कि अब PR मिलना आसान नहीं रहा. IRCC ने CRS स्कोर में अच्छा-खासा इजाफा कर दिया है. यही वजह है कि अब लोग पढ़ने के बहाने कनाडा आने और यहां बसने की जुगत लगाने लगे हैं.
इसे इस केस स्टडी से समझते हैं.

भारतीय मूल की हरप्रीत कौर (बदला हुआ नाम) 2 सितंबर 2019 को कनाडा आईं. उन्होंने साल 2019-21 में एक-एक साल के दो कोर्स किए और 3 साल सितंबर 2021 से सितंबर 2024 तक का वर्क परमिट हासिल किया. इसके बाद हरप्रीत कौर ने जनवरी 2022 से जनवरी 2023, एक साल हाई स्किल्ड जॉब की. इसके बाद भी हरप्रीत कौर ने जॉब की, लेकिन वो हाई स्किल्ड जॉब की कैटेगरी में नहीं आती थी. हरप्रीत कौर का कुल CRS स्कोर 434 बना, जबकि साल 2025 में ड्रॉ कटऑफ 500 के ऊपर बनी हुई है.
हरप्रीत कौर ने सितंबर 2024 में खत्म होने वाले वर्क परमिट को बढ़ाने के लिए एप्लिकेशन लगाई लेकिन 17 दिसंबर 2024 को IRCC ने इस एप्लिकेशन को रिजेक्ट कर दिया और 90 दिन के अंदर (16 मार्च 2025 तक) इसे बहाल करने या फिर कनाडा छोड़ने का आदेश दिया. हरप्रीत कौर ने 15 मार्च 2025 को बतौर विजिटर रहने के लिए विजिट वीजा की एप्लिकेशन लगाई. 12 अगस्त 2025 को इसे भी रिजेक्ट कर दिया गया क्योंकि हरप्रीत कौर 5 साल, 11 महीने, 1 हफ्ता और 2 दिन से कनाडा में हैं. IRCC के मुताबिक, इतना वक्त कनाडा घूमने के लिए काफी है.

इसके साथ ही IRCC ने चेतावनी दी, "आपको अपने वर्तमान दस्तावेज की आखिरी तारीख को या उससे पहले कनाडा छोड़ना होगा, या अगर आपके दस्तावेज की समय सीमा पहले ही समाप्त हो चुकी है, तो आपको तुरंत कनाडा छोड़ना होगा. ऐसा न करने पर आपके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.
CRS स्कोर में इजाफा और बदलाव
दरअसल, कनाडा सरकार अब हर दूसरे हफ्ते CRS स्कोर में इजाफा करती जा रही है. इससे उन भारतीयों की राह मुश्किल हो रही है, जो यहां रहने का ख्वाब बुने बैठे हैं. साल 2023 में IRCC की ड्रॉ कटऑफ 480 से 490 के बीच रही. जून 2023 से कैटेगरी के आधार पर कटऑफ जारी होने लगी, जैसे मेडिकल से जुड़े लोगों के लिए अलग, फ्रेंच भाषा जानने वालों के लिए अलग. इसीलिए 2024 के ड्रॉ में कुछ गिरावट देखी जा सकती है. 2024 में ड्रॉ कटऑफ 470–485 रही. साल 2025 के अक्टूबर में कनाडाई अनुभव वर्ग, CEC, (जो वर्क परमिट पर काम कर रहे हैं और PR के इंतजार में हैं), की कटऑफ 534 चल रही है. कुल CRS स्कोर IRCC द्वारा जारी किए गए स्कोर के जितने या उससे ज्यादा होते हैं तो कनाडा का PR आसानी से हासिल किया जा सकता है. यानी सारा खेल CRS स्कोर का है.
हरप्रीत कौर के पास कनाडा आने का दूसरा रास्ता-यहां आकर पढ़ाई करना और वर्क परमिट पर जॉब करके CRS स्कोर बढ़ाना था, लेकिन वो पढ़ाई और जॉब के बाद भी अच्छे स्कोर हासिल नहीं कर सकीं. इस स्थिति में हरप्रीत कौर के पार्टनर का CRS स्कोर जोड़ा गया, जो हरप्रीत कौर के CRS स्कोर को बढ़ाने में मदद कर सकता था लेकिन हरप्रीत कौर के पति की पढ़ाई, इंग्लिश और जॉब एक्सपीरियंस उतना अच्छा न होने की वजह से स्पाउस स्कोर भी हरप्रीत कौर की मदद नहीं कर सका.
और क्या हैं विकल्प...
अपनी क्लाइंट हरप्रीत कौर के केस पर इमिग्रेशन लॉयर, जुनैद अली ख़ान का कहना है, "CRS स्कोर कम होना, कोई नई बात नहीं है. ऐसे ज्यादातर केसों में कमजोर इंग्लिश वजह बनती है, जिससे वो IELTS कम स्कोर हासिल करते हैं. अच्छी एजुकेशन न होना भी बड़ी वजह है. ज्यादातर लोग ग्रेजुएट ही होते हैं. लेकिन अब जो बड़ा बदलाव आया है, वो एप्लिकेशन रिजेक्शन का है. पहले आसानी से वर्क परमिट बढ़ जाया करते थे. वर्क परमिट न बढ़ने की स्थिति में विजिटर स्टेटस बहुत आसानी से मिल जाया करता था. पहले 6 महीने के लिए विजिट वीजा और फिर अगले 6 महीने के लिए. इस तरह 2-2 साल तक लोग आसानी से रह लेते थे और इस बीच वो किसी न किसी तरीके से अपना स्कोर बेहतर कर लिया करते थे और PR हासिल कर लेते थे. लेकिन अब एप्लिकेशन रिजेक्ट हो रही हैं और लोगों को वापस भारत जाना पड़ रहा है."
अब हरप्रीत कौर जैसे स्टूडेंट्स के पास ये ऑप्शन है कि वो इंडिया जाकर अपनी इंग्लिश मजबूत करें. आजकल कुछ बच्चे फ्रेंच भी सीख रहे हैं. फ्रेंच कैटेगरी का जो ड्रॉ आता है, वो बहुत कम स्कोर पर आता है. इस साल बहुत बच्चों को फ्रेंच की वजह से PR मिले हैं. 7-8 महीने में बच्चे इतनी फ्रेंच सीख लेते हैं कि वो कनाडा का PR हासिल कर सकें.
जुनैद ने ये भी बताया, बच्चे इंडिया जाकर ऑक्युपेशन स्पेसिफिक ड्रॉ के हिसाब से एक्सपीरियंस हासिल करते हैं. जैसे- कनाडा में हेल्थकेयर की डिमांड ज्यादा है तो हेल्थकेयर कैटेगरी का ड्रॉ कम स्कोर वाला होता है. इसके लिए बच्चे के पास हेल्थकेयर में 6 महीने का एक्सपीरियंस काफी है. बच्चा इंडिया से फार्मेसी असिस्टेंट या ऐसा ही कोई एक्सपीरियंस लेता है और अपनी प्रोफाइल अपडेट कर देता है, फिर उन्हें PR का इनविटेशन आता है, तब वो कनाडा आ जाते हैं. ये सब अब शुरू हो रहा है, जबसे कनाडा सरकार PR के मामले में सख्त हो रही है.
हालांकि इन सबके बाद भी कई लोगों के पास कोई ऑप्शन नहीं बचता. इसमें सबसे ज्यादा वो बच्चे हैं, जिनकी अंग्रेजी कमजोर है क्योंकि अगर बच्चा इंग्लिश नहीं सीख पा रहा तो फ्रेंच भी नहीं सीख पाएगा. इसके अलावा हेल्थकेयर का स्कोर 490 चल रहा है, लेकिन बच्चे की इंग्लिश अच्छी नहीं है तो 490 तक पहुंचना भी कोई आसान काम नहीं है. इन बच्चों के पास कोई रास्ता नहीं रहता.
ऐसे में हो ये रहा है कि जिन बच्चों को पता होता है कि वे स्कोर हासिल नहीं कर पाएंगे, वे इंडिया जाते ही नहीं हैं. इनका विजिटर रीस्टोरेशन जब रिफ्यूज़ होता है तो वे असाइलम क्लेम कर देते हैं यानी रिफ्यूजी स्टेटस. ऐसा इस साल लाखों लोगों ने किया. ये इतना ज्यादा हुआ कि इसके खिलाफ कनाडा सरकार C-2 बिल ले आई, जिसमें रिफ्यूजी अप्लाई करने के नियम बहुत सख्त किए गए. हालांकि उसे डाइल्यूट करने की बात कही गई. अब डाइल्यूट करके C-12 लाया गया है लेकिन वो अभी पास नहीं हुआ है.
कम होती जा रही भारत से आने वालों की तादाद?
IRCC का डाटा कहता है कि साल 2025 में 80% भारतीय स्टूडेंट परमिट रिजेक्ट किए गए हैं और इसे हासिल करने के प्रावधानों को ज्यादा मुश्किल किया गया.
इस पर जुनैद का कहना है, "IRCC बेहद सख्त हो गया और इसके साथ ही जब से PR का प्रॉसेस मुश्किल हुआ है, तब से कनाडा आने वाले इंडियन स्टूडेंट्स की एप्लिकेशन्स में भी बहुत कमी आई है. आज से दो साल पहले तक इतनी एप्लिकेशन्स आती थीं कि हमारी कंपनी में हर टाइप के लिए अलग डिपार्टमेंट था. स्टडी वीजा और एडमिशन हैंडल करने का, जिसे अब दूसरे डिपार्टमेंट में मिला दिया गया है. बच्चों के आने की तादाद बहुत ज्यादा कम हो गई है. साल 2024 के मुकाबले इस साल में 50 फीसदी से भी ज्यादा की गिरावट देखी जा रही है. चूंकि बच्चे लोन लेकर, जमीन बेचकर आते हैं तो जाहिर है, बच्चा वहीं जाना चाहेगा, जिस देश का PR उसे आसान लग रहा होगा."
कनाडा सरकार क्यों घटा रही इमिग्रेशन?
इमिग्रेशन कंसल्टेंसी फर्म की मैनेजर इशमिंदर कौर ने बताया, कनाडा ने बेहिसाब तरीके से अस्थाई तौर पर लोगों को बुला लिया लेकिन उनके हिसाब से अपना इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत नहीं किया. यहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर बहुत दबाव था. जितने लोग आ चुके, उतने घर नहीं थे. जॉब नहीं थे. हॉस्पिटल नहीं थे. अस्पतालों में कई-कई दिनों बाद के अपॉइंटमेंट मिल रहे थे. फैमिली डॉक्टर्स 3-3 हफ्तों बाद के अपॉइंटमेंट देने लगे थे. MRI जैसे टेस्ट के लिए लंबी लाइनें लगती थीं. सर्जरी के लिए कई हफ्तों का वेटिंग टाइम होने लगा.
इस तरह की चीजें जब शुरू हुईं तो कनाडा के नागरिकों को परेशानी होने लगी. सरकार के खिलाफ प्रोटेस्ट शुरू हुए. जब ट्रूडो प्रधानमंत्री थे तो उन पर आरोप लगा कि उन्होंने इमिग्रेशन को प्लानिंग के तहत आगे नहीं बढ़ाया, बल्कि आंखें बंद करके लोग बुलाने लगे. इसके अलावा, रूस-यूक्रेन वॉर शुरू होने पर तेल की कीमतें बढ़ीं, महंगाई बढ़ी. इस वजह से कनाडा में आर्थिक मंदी भी आनी शुरू हुई, जिससे हालात और खराब हुए, नहीं तो शायद कनाडा झेल लेता.
साल 2022-23 में कनाडा के पास जॉब्स थीं, लोग नहीं थे. तब वहां आने वाले नौकरी के बदले ज्यादा पैसे मांग रहे थे. लेबर कॉस्ट बढ़ रही थी. लेकिन अगले डेढ़-दो साल में स्थिति बदल गई. ऐसी कई चीजें थी जिससे इमिग्रेशन के मामले में कनाडा का रुख बदल गया.
टेंपररी रेजिडेंट्स की तादाद में कमी की एक वजह ये भी है कि अब महंगाई की वजह से बच्चों के लिए अपना खर्चा निकालना भी मुश्किल हो चुका है. पहले बच्चा दो साल के कोर्स के लिए आता था, एक साल की फीस भरता था. फिर एक साल की फीस वो यहां पर मेहनत करके निकाल लेता था. किराया कम था, खाने-पीने का सामान सस्ता था. साल 2022 में स्टूडेंट्स पर काम करने के घंटों की पाबंदी भी हटा दी गई थी. साल 2023 के आखिर से महंगाई बढ़ी, जॉब कम हुई और रेंट बढ़ा, जिसने स्टूडेंट्स के लिए मुश्किलें खड़ी की.
12 साल में कनाडा में भारतीयों की संख्या तीन गुना बढ़ी
आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले 12 साल में कनाडा में भारतीयों की संख्या तीन गुना से ज्यादा बढ़ी है. साल 2022 में कनाडा में PR हासिल करने वाले आवेदकों में सबसे ज्यादा भारतीय थे. इसके बाद चीन (31,815), अफगानिस्तान (23,735), नाइजीरिया (22,085) और फिलीपींस (22,070) के लोग थे. साल 2017 से 2021 के बीच तादाद में बड़ा उछाल ट्रंप की अमेरिका में जीत की वजह से भी आया क्योंकि 2016 के चुनाव में ट्रंप की जीत आंशिक रूप से एंटी इमिग्रेशन पॉलिसी के रुख पर आधारित थी.
साल 2019 में कोविड की वजह से आने-जाने पर पाबंदी के चलते आंकड़ों में भारी गिरावट देखी गई. हालांकि इसके बाद से रिकॉर्ड बढ़त भी हुई. पाबंदियां हटने के बाद साल 2020 में कनाडा में PR पाने वालों की संख्या में 198% की बढ़त हुई थी. ये आंकड़े सिर्फ PR पाने वालों के हैं. इसमें स्टडी या वर्क परमिट पर आने लोगों की संख्या को जोड़ दिया जाए तो इसमें और इजाफा होगा.
भारतीय छात्र अब करें तो क्या करें?
इमिग्रेशन लॉयर जुनैद अली ख़ान का कहना है,
भारतीयों के लिए कनाडा के रास्ते अब भी खुले हैं. PR का रास्ता पहले की तुलना में मुश्किल जरूर हुआ है, लेकिन नामुमकिन नहीं है. अगर आप सही कोर्स और मजबूत प्रोफाइल के साथ आते हैं तो PR आसानी से हासिल किया जा सकता है. जैसे- हेल्थकेयर, एजुकेशन और फ्रेंच भाषा के जानकार लोगों की कनाडा में अब भी बहुत डिमांड है. तो स्टूडेंट परमिट अप्लाई करने के लिए ऐसा प्रोग्राम चुनें, जो कनाडा की लेबर मार्केट में डिमांड में है. इसके साथ ही CRS स्कोर की तैयारी पहले से करें — अंग्रेजी (IELTS/CELPIP/PTE), एजुकेशन क्रेडेंशियल्स और वर्क एक्सपीरियंस पर फोकस रखें. इनसे आप अच्छे स्कोर हासिल कर सकते हैं और यहां का PR हासिल कर सकते हैं.
अगर ये फैक्टर्स मजबूत नहीं हैं तो बेहतर है कि किसी और देश का चुनाव करें.