अमेरिका अब पहले जैसे भरोसेमंद देश की तरह नहीं देखा जा रहा. उसने ऐतिहासिक तौर पर दुश्मन रहे देश रूस से दूरी कम करनी शुरू कर दी, जबकि पुराने साथियों को धमका रहा है. इस बीच कई देश अपने रास्ते बदल रहे हैं. हाल में जर्मनी में भी यूएस को लेकर शक गहराने लगा और वो वहां के बैंक में रखा अपना गोल्ड रिजर्व वापस पाने की बात करने लगा. लेकिन अपने घर की तिजोरी की बजाए जर्मनी ने अमेरिकी लॉकर क्यों चुना?
जर्मनी में चर्चा हो रही है कि देश का जो सोना विदेशों, खासकर अमेरिका में रखा है, उसे वापस लाया जाना चाहिए. वहां के सेंट्रल बैंक के अलावा अब नेता भी यह मुद्दा उठा रहे हैं. हाल में सेंटर-राइट पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन के लीडर खुलकर कहने लगे कि इतने बड़े राष्ट्रीय खजाने को यूएस में रखना अब कोई समझदारी नहीं.
कितना गोल्ड है जर्मनी के पास
इस देश का कुल सोना करीब 3400 टन के आसपास है, जो अमेरिका के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा गोल्ड रिजर्व है. लगभग दशकभर पहले तक इसका बड़ा हिस्सा अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस में रखा था. अकेले न्यूयॉर्क के फेडरल रिजर्व बैंक में लगभग आधा हिस्सा था. बीते कुछ सालों में राजनैतिक अस्थिरता को देखते हुए जर्मनी ने अपना गोल्ड धीरे-धीरे वापस लाना शुरू कर दिया. हालांकि अब भी 1200 टन से ज्यादा यानी लगभग 37 प्रतिशत सोना न्यूयॉर्क में ही रखा हुआ है.
फेडरल रिजर्व बैंक ऑफ न्यूयॉर्क में जर्मनी ही नहीं और भी कई देशों का गोल्ड रखा हुआ है. ये इतना सेफ है कि अब तक इंटरनेशनल गोल्ड कस्टडी सेंटर की तरह काम करता रहा. इसके अलावा अगर देश आपस में सोना ट्रांसफर करते हैं तो दोनों के अकाउंट अमेरिका में होते ही हैं, इससे गोल्ड ट्रांसपोर्ट की लागत बच जाती है.
क्यों अमेरिकी लॉकर में रखा जाने लगा गोल्ड
ये दूसरे वर्ल्ड वॉर के ठीक बाद का वक्त था. जर्मनी हिटलर की वजह से लगभग तबाह हो चुका था. देश दो हिस्सों में बंट चुका था, एक हिस्सा ईस्ट में सोवियत यूनियन के कब्जे में और दूसरा पश्चिम में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के साथ. अब पश्चिमी देशों को डर था कि अगर फिर लड़ाई हुई तो उसकी संपत्ति खतरे में आ सकती है. ऐसे में उसने सोचा कि गोल्ड किसी सुरक्षित देश में रख दिया जाए. इस समय अमेरिका दुनिया की सबसे मजबूत शक्ति बन चुका था और जर्मनी के साथ भी दिख रहा था, लिहाजा उसने अपना गोल्ड न्यूयॉर्क के बैंक में रखना शुरू कर दिया.
इसका एक फायदा और भी था
इकनॉमी को बचाने के लिए जर्मनी भी ग्लोबल व्यापार का हिस्सा बना. उस समय सोने के बदले डॉलर में लेनदेन होता था. न्यूयॉर्क में सोना रखने से सोने को एक देश से दूसरे देश ले जाने की जरूरत नहीं पड़ती थी, बस बैंक के रिकॉर्ड में एंट्री बदल दी जाती. उस समय ये सामान्य चलन बन गया था.
अब अमेरिका यूरोप के तमाम देशों पर नाराज हो रहा है. यहां तक कि वो नाटो से भी हाथ खींचने की बात करने लगा. डोनाल्ड ट्रंप लगातार टैरिफ की धमकियां दे रहे हैं. कुल मिलाकर, अमेरिका फिलहाल उतना भरोसेमंद साथी नहीं रहा, जितना दशकों से दिख रहा था. दूसरी तरफ जर्मनी में खुद स्थिर और मजबूत सरकार है.
अब उसे लगता है कि उसकी अपनी तिजोरी यानी उसके बुंडेसबैंक में सोना रखना ज्यादा सही होगा. ये ऐसा ही है कि बच्चा अपना गुल्लक किसी बड़े के पास रखे और वयस्क होने पर पैसों का सारा मामला खुद संभालने लगे. इधर इस देश की जनता भी डरी हुई है कि क्या अमेरिका ने उनकी दौलत संभालकर रखी है, या कुछ गोल-घपला हो चुका. ऐसे में जनता का भरोसा पाने के लिए भी वहां के दलों को लग रहा है कि उसे बचा-खुचा गोल्ड भी लौटा लाना चाहिए.
क्या अपना ही गोल्ड देने से इनकार भी कर सकते हैं विदेशी बैंक
जब कोई देश अपना सोना किसी और देश में रखता है, मसलन जर्मनी ने अमेरिका या वेनेजुएला ने ब्रिटेन में, तो वो तकनीकी रूप से उस देश का होता है, लेकिन कब, कैसे और किस हालात में वापस मिलेगा, ये पूरी तरह विदेशी बैंक और होस्ट देश की मर्जी पर रहता है. अगर किसी रोज देश गोल्ड लौटाने से मना कर दे, चाहे वो इंटरनेशनल पाबंदी का बहाना दे, या कुछ और, तो भी सोने का असल हकदार कुछ नहीं कर सकता.
इतिहास में कई ऐसे मामले हैं
- वेनेजुएला ने लगभग 31 टन सोना लंदन के बैंक में रखा था। जब वेनेजुएला सरकार ने सोना वापस मांगा, तो ब्रिटेन ने साफ मना कर दिया. उसका तर्क था कि वह वहां के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो को वैध नेता नहीं मानता इसलिए गोल्ड नहीं देगा.
- साल 2012 में जर्मनी ने जब अमेरिका से सोना लौटाने की गुजारिश की तो यूएस ने सीधे मना तो नहीं किया, लेकिन थोड़ा-थोड़ा लौटाने की बात की. इससे जर्मन नागरिकों और नेताओं को शक होने लगा कि क्या उनकी दौलत वाकई सेफ है.
यही वजह है कि आजकल बहुत से देश गोल्ड रिपैट्रिएशन यानी विदेशों से अपना सोना वापस मंगवाने में लगे हुए हैं ताकि उनके खजाने पर विदेशी तालाबंदी न हो जाए. हालांकि ये भी सच है कि अमेरिका जर्मनी को मना नहीं कर सकता. जर्मनी अपने में बड़ी ताकत है, जो यूरोप का प्रतिनिधित्व करती है. अमेरिका एकदम से यूरोप से दूरी नहीं बना सकता. इसके अलावा अगर उसने यहां हील-हुज्जत की तो अपना सोना रखते आए बाकी देश भी डरकर गोल्ड वापस मांग सकते हैं जो कि अमेरिकी साख के लिए अच्छा नहीं.