नॉर्थ कोरिया में इन दिनों बड़ा खाद्य संकट आया हुआ है. करीब तीन साल पहले यहां के सैन्य शासक किम जोंग उन ने बॉर्डर सील करवाए, जो अब तक पूरी तरह खोले नहीं गए. वैसे भी दुनिया से कटे हुए कोरिया के पास मदद के लिए दो-तीन ही दोस्त हैं. अब उनसे भी सहायता नहीं मिल रही. नतीजा ये हुआ कि कोरियाई लोग बेहद भयंकर महंगाई और अन्न की कमी झेल रहे हैं.
वैसे तो इस देश से जानकारी बाहर नहीं आ पाती, लेकिन जून की शुरुआत में रिपोर्ट्स आई थीं कि किम जोंग अपने अधिकारियों पर खुदकुशी न रोक पाने की वजह से नाराज हैं. एशिया की खबरें देने वाले अमेरिकी चैनल रेडियो फ्री एशिया में रिपोर्ट आई. इसमें दक्षिण कोरियाई इंटेलिजेंस सर्विस के हवाले से बताया गया कि बीते साल की तुलना में इस बार सुसाइड की घटनाएं 40 प्रतिशत तक बढ़ी हैं. ये आत्महत्याएं भुखमरी की वजह से हो रही हैं.
खेती में क्या हैं मुश्किलें?
अनाज की कमी के कई कारण हैं. उत्तर कोरिया खेती-किसानी के पारंपरिक तरीकों पर भरोसा करता रहा. उसके पास न तो मॉडर्न उपकरण हैं और न ही खाद. खाद के लिए पहले वो चीन पर निर्भर था, लेकिन सीमाएं बंद करने के बाद इसकी भी कमी हो गई. यहां तक कि इस देश में खेती के लिए उर्वर जमीन की भी कमी बताई जाती है. ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट इन वॉशिंगटन के मुताबिक, पूरे देश का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा ही ऐसा है, जिसपर फसलें लगाई जा सकती हैं.

मदद यानी मीठा जहर
नॉर्थ कोरिया से वैसे तो खबरें बाहर नहीं निकल पातीं, लेकिन पड़ोसी देश दक्षिण कोरिया की खुफिया एजेंसियां और खुद वहां से भागे हुए लोग अपने देश के हालात बताते रहे. इसके बाद कई देशों ने मदद की पेशकश भी की, लेकिन बाहरी हेल्प को यहां की सरकार 'पॉइजन्ड कैंडी' यानी मीठा जहर मानती है. वहां के सरकारी न्यूजपेपर रोडॉन्ग सिनमन ने बाकायदा लेख लिखकर लोगों को ऐसे लालच से दूर रहने को कहा. इसके मुताबिक, विदेशी ताकतें खाने-रहने का बहकावा देकर देश तोड़ देती हैं.
असल हालात के बारे में किसी को नहीं पता
दुनिया के लगभग सारे देश वर्ल्ड बैंक और उन संस्थाओं से जुड़े हैं जो कर्ज देती हैं, लेकिन उत्तर कोरिया का इनसे कोई वास्ता नहीं. ये ग्लोबल इकनॉमी का हिस्सा ही नहीं. किसी को नहीं पता कि देश के पास कितने पैसे आते हैं और उनका क्या होता है. सबकुछ केवल अंदाजे से और वहां से भागे हुए लोगों की टेस्टिमोनी के आधार पर माना जा रहा है.

बदहाली के बाद भी मदद क्यों नहीं ले रहा?
इसकी सबसे पहली वजह है, उसकी अमेरिका से दुश्मनी. चूंकि ज्यादा फंड देने वाली संस्थाओं का यूएस से गहरा कनेक्शन है, लिहाजा उनसे जुड़ना, यानी अपनी कमजोर नस अपने दुश्मन के हाथ में धरा देना. कम से कम उत्तर कोरिया की तो यही सोच है. बाकी कम्युनिस्ट देशों की बजाए वो अपनी कथित विचारधारा को लेकर काफी पक्का रहा और अमेरिका से नफरत करता रहा.
पारदर्शिता से बचता है
वर्ल्ड बैंक विकासशील देशों को जमकर फंड देता है, लेकिन किम जोंग का देश इसका भी सदस्य नहीं बना. इससे जुड़ने के लिए उसे इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (IMF) जॉइन करना होगा. इसके लिए अपने देश में पैसों का सारा लेखाजोखा सामने रखना होता है. साथ ही फॉरेन एक्सचेंज को भी रास्ता देना होता है. फिलहाल इस देश को इस बात पर एतराज है. किम नहीं चाहते कि उनके राज में किसी भी किस्म का विदेशी दखल हो.

इंटरनेशनल संस्थाएं खुद क्यों नहीं करती मदद?
कुछ साल पहले तक यूनाइटेड स्टेट्स ने ऐसा प्रयास किया था. कांग्रेशनल रिसर्च सर्विस की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका ने साल 1995 से लेकर 2008 तक इस देश को अनाज की सप्लाई की. लेकिन इस बीच वहां न्यूक्लियर टेस्ट होने लगे और अमेरिका उखड़ गया. साल 2017 में जब नॉर्थ कोरिया में बाढ़ से भारी तबाही मची थी, तब भी यूनिसेफ समेत कई संस्थाएं मदद के लिए आगे आईं, लेकिन एक हद के बाद उत्तर कोरियाई सरकार उन्हें रोक देती है.
हां, चीन से उसे भरपूर मदद मिलती रही. यूनाइटेड नेशन्स की मानें तो चीन, उत्तर कोरिया का सबसे बड़ा डोनर है. लेकिन चूंकि वो यूएन के मार्फत ऐसा नहीं करता, तो इसकी मॉनिटरिंग भी नहीं हो सकती कि वो क्या, कितना दे रहा है.
कितने बैन हैं देश पर और कैसे हो रहा मैनेज?
स्टेटिस्टा रिसर्च डिपार्टमेंट के अनुसार उत्तर कोरिया पर 2 हजार से ज्यादा पाबंदियां लगी हुई हैं. रूस, चीन जैसे देशों के अलावा वो किसी के साथ खुलकर व्यापार नहीं कर पाता, लेकिन तब भी धड़ाधड़ मिसाइल परीक्षण करता रहता है. इन पैसों के लिए उसके स्त्रोत बाकी देशों से काफी अलग हैं. यूएन की रिपोर्ट कहती है कि अपने परमाणु कार्यक्रमों के लिए पैसे जुटाने के लिए वो क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज पर साइबर अटैक कर पैसे की उगाही करता है. आय का बड़ा स्त्रोत कथित तौर पर तस्करी भी है. यूएन की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि सालभर में ये देश 370 मिलियन डॉलर कोयले के अवैध व्यापार से कमाता है.