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10000 साल पहले खत्म हुए भेड़िए हुए जिंदा, क्या डी-एक्सटिंक्शन के फेर में खुद ही फंस जाएगा इंसान?

हाल में टाइम मैगजीन के कवर पर बर्फ के समान सफेद एक वुल्फ की तस्वीर छपी, साथ में एलान, जिसके मुताबिक दस हजार साल पहले गायब ये बर्फीला भेड़िया दोबारा जिंदा हो चुका है. ये डी-एक्सटिंक्शन है, जिसके तहत वैज्ञानिक कई स्पीशीज को रीवाइव करने की कोशिश में हैं. लेकिन अगर ये हुआ, तो कई मौजूदा प्रजातियां खतरे में आ जाएंगी.

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वुल्फ की एक किस्म हाल में डी-एक्सटिंक्ट हो चुकी. (Photo- AP)
वुल्फ की एक किस्म हाल में डी-एक्सटिंक्ट हो चुकी. (Photo- AP)

अमेरिका की एक बायोटेक कंपनी ने गायब हो चुकी पशु-पक्षियों को वापस लौटाने का सिलसिला शुरू कर दिया. कोरोसल कंपनी ने सबसे पहले जंगली भेड़ियों की एक किस्म को रीवाइव किया. इसे टाइम मैगजीन के कवर पर जगह मिली. कंपनी का दावा है कि वो धीरे-धीरे बहुत से एक्सटिंक्ट पशुओं को वापस लौटाएगी ताकि इंसानी गलतियां सुधारी जा सकें. लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि भूल सुधार के फेर में हम एक और बड़ी भूल करने जा रहे हों. क्या होगा अगर हजारों साल पहले दुनिया से जा चुकी प्रजातियां वापस लौट आएं?

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कोरोसल बायोसाइंस ने अपनी लैब में विशालकाय भेड़ियों को रीवाइव किया. प्राचीन डीएनए और जीन एडिटिंग टेक्नोलॉजी के साथ लंबा काम हुआ और अब वुल्फ की खास किस्म वापस आ चुकी. फिलहाल तीन वुल्फ पपीज अमेरिका की किसी अज्ञात जगह पर रखे हुए हैं ताकि वे सुरक्षित रह सकें और वैज्ञानिक उनपर नजर भी रख सकें. 

कहां से मिले थे भेड़िए के डीएनए

अमेरिका के ओहायो में वुल्फ के दांत और 72 हजार साल पुराना स्कल मिला था. इसके अलावा वैज्ञानिकों ने मौजूदा वुल्फ से ब्लड सेल्स लीं और इन्हें मिलाकर प्रयोग करते रहे. तैयार हुए जेनेटिक मटेरियल को एल सेल में ट्रांसफर कर दिया गया. तैयार होने पर भ्रूण को सरोगेट डॉग्स में डाला गया और लगभग दो महीने बाद इंजीनियर्ड पप्स का जन्म हुआ. कंपनी के एक्सपर्ट्स का दावा है कि ये जंगली भेड़िए पूरी तरह से अपने पूर्वजों की तरह होंगे, लेकिन चूंकि उन्हें देख नहीं सकेंगे तो हो सकता है कि वे उतने खूंखार न हों. 

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de extinction of wolves time magazine and what are the risks photo AP

सोशल मीडिया पर टाइम मैगजीन का कवर दिखते ही बहस चल पड़ी. लोग जानना चाह रहे हैं कि डी-एक्सटिंक्शन के क्या खतरे हो सकते हैं. इसे समझने के पहले समझते हैं कि एक्सटिंक्शन और डी-एक्सटिंक्शन आखिर हैं क्या. 

एक्सटिंक्शन या विलुप्तीकरण तब कहलाता है, जब किसी खास प्रजाति का आखिरी जीव भी दुनिया से खत्म हो जाए. इससे पहले भी कई श्रेणियां होती हैं. इसमें पशु खतरे में, या गंभीर खतरे में, जैसी कैटेगरी में मार्क किए जाते हैं. जब भी किसी स्पीशीज को गंभीर खतरे में बताया जाए तो इसका सीधा मतलब है कि उस तरह के कुछ ही पशु बाकी हैं और ध्यान न दिया जाए तो वे भी खत्म हो जाएंगे. 

हर दिन डेढ़ सी प्रजातियां खत्म हो रहीं

यूएन कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी की रिसर्च कहती है कि रोज पूरी दुनिया से 150 से भी ज्यादा स्पीशीज खत्म हो रही हैं. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (WWF) के अनुसार साल 1970 के बाद से लेकर 2014 तक 60 फीसदी से ज्यादा मैमल, पक्षी, मछलियां और रेप्टाइल खत्म हो चुके. 

क्या है गैर-विलुप्तीकरण 

ये नई चीज है. ऐसा कोई शब्द पहले था भी नहीं. अब वैज्ञानिक इस प्रयास में हैं कि गायब हो चुकी प्रजातियां जिंदा हो सकें. डोडो पक्षी इसमें टॉप पर है. साल 2002 में ही डोडो से माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए निकालकर सुरक्षित करने में सफलता मिल चुकी. ये वो डीएनए है, जो मां से बच्चे में ट्रांसफर होता है. इसे mtDNA कहा जा रहा है. जांच पर पाया गया कि इसका सबसे करीबी रिश्तेदार निकोबारी कबूतर है. अब इसी कबूतर की स्टडी जारी है ताकि प्राचीन डीएनए के मेल से नया डोडो बनाया जा सके. 

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de extinction of wolves time magazine and what are the risks photo Unsplash

कौन सी कंपनी कर रही काम

कोरोसल बायोसाइंस एक अमेरिकी बायोटेक्नोलॉजी कंपनी है, जो डी-एक्सटिंक्शन यानी विलुप्त हो चुकी प्रजातियों को दोबारा जिंदा करने पर काम कर रही है. साल 2021 में शुरू हुई कंपनी ने चार ही सालों के भीतर भेड़ियों को वापस लौटाने का दावा किया. 

वापस जिंदा करने की कोशिश क्यों खतरनाक

कोरोसल भले ही अपने इस प्रयोग को इंसानी गलतियों का प्रायश्चित बताए लेकिन ये सच है कि इसके जोखिम वाला पलड़ा ज्यादा भारी है. क्लोन्ड पशुओं में ही वक्त से पहले मौत कॉमन होती है, ऐसे में हजारों या सैकड़ों साल पहले पूरी तरह से खत्म हुई प्रजातियों को लाना और मुश्किल है.

साइंस फिलॉसफर हैदर ब्राउनिंग के मुताबिक, ये बेबीज अकेलापन, गर्मी और बदलाव सहते-सहते एक बार फिर खत्म हो जाएंगे. या फिर ये भी हो सकता है कि वे ज्यादा आक्रामक हो जाएं. इसका असर इंसानों से लेकर पूरी इकलॉजी पर होगा. ये भी आशंका है कि नए माहौल में ढलने की कोशिश में ये पशु मौजूदा स्पीशीज पर हमले करने लगें और आपस में लड़कर दोनों खत्म हो जाएं. 

एक खतरा सरोगेट मांओं को भी है. जैसे भेड़ियों के लिए डॉग्स को सरोगेट बनाया गया. ये भेड़िए ज्यादा वजनी होते हैं. ऐसे में जन्म के समय हो सकता है कि डॉग मदर की सर्जरी करनी पड़े. ऐसे में मां की जान भी जा सकती है. अगर ये न हुआ तो भी नए शिशु को मां अपना नहीं सकेगी. वो उसकी स्पीशीज का नहीं होगा, उसकी गंध और तरीके अलग होंगे. तब कुत्ते नए जन्मे शिशु को छोड़ देंगे, जो डी-एक्सटिंक्शन की प्रोसेस को कमजोर करेगा. 

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