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मनोरंजन

बिकिनी पहनूं, या वैक्स ना करूं, मेरी मर्जी...

बिकिनी पहनूं, या वैक्स ना करूं, मेरी मर्जी...
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देश अमीर हो या गरीब, वहां रह रही महिलाओं पर ढेर सारी पाबंदियां लगी हैं. कुछ सीधे तौर पर, कुछ छिपे छिपाए ढंग से. इटली की एक वेबसाइट thepostinternazionale.it ने ऐसी 12 महिलाओं की सीरीज तैयार की है, जो समाज की दकियानूसी बातों से बेपरवाह, अपनी जिंदगी अपने शर्तों पर जीती हैं. और इसके लिए उनके अपने तर्क हैं. एक नजर इन बिंदास किरदारों पर डालिए, क्या पता आपके सोचने का तरीका बदल जाए!
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अगर आपके लिए भी केजुअल सेक्स को 'बड़े शहरों के चोंचले' या फिर 'कैरेक्टरलेस लोगों की हरकत' मानते हैं, तो जनाब 10वीं क्लास की बायोलॉजी की किताब उठा लीजिये. NCERT भी बताता है कि सेक्स महज आमोद प्रमोद का जरिया नहीं, जरूरत है. तो क्या हुआ आपको इसकी जरूरत महसूस नहीं होती? अगर ऐलिस जैसी महिलाएं अपनी जरूरत पूरी करती हैं, तो बात सीधे उनके कैरेक्टर पर कैसे पहुंच गई? अगर अपनी जरूरत को पूरा करने से इज्जत घटती है, तो फिर इस दुनिया में कोई भी बाकिरदार नहीं है.
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'मैं बूढ़ी हो गई तो क्या, बिकिनी क्यों नहीं पहन सकती? अब मेरा शरीर कोई सजावट की चीज या आपके नयनसुख के लिए तो है नहीं कि अगर बिकिनी में मेरा झुर्रियों वाला शरीर देख लिया, तो तूफान आ गया. बीच पर जा रही हूं, टू पीस नहीं पहनूं तो क्या साड़ी पहन कर जाऊं?'
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'क्या हुआ अगर मैं मोटी हूं. तो क्या हुआ मेरा फिगर तुम्हारे 36-24-36 वाले बचकाना पैमाने पर फिट नहीं बैठता. ये तुम्हारी समस्या है. जब मेरा मोटापा आज तक मेरी खुशियों के बीच नहीं आया, तो मैं इसे क्यों कोसूं. मैं जैसी हूं, अपनी फेवरेट हूं.' क्या आपकी सोच विटनी की सोच जैसी है?
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मानो या ना मानो, महिलाओं की खूबसूरती उनके यौवन से जोड़कर देखी जाती है. इसलिए बाल सफेद हुए नहीं कि लड़कियां बाल रंगने की रस्म अदायगी में कूद पड़ती हैं. लेकिन हमारे बीच सिल्विया जैसी भी महिलाएं हैं जो अपनी बढ़ती ऊम्र को अपनी खूबसूरती के लिए खतरा नहीं मानतीं. इन्हें यकीन है कि खूबसूरती देखने वालों की आंखों में बसती है. इसलिए बाल सफेद हो गए तो क्या, खूबसूरती वक्त की मोहताज थोड़े ही ना है.
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किसी महिला को हिजाब पहने देखा नहीं, कि उसे 'इस्लाम की सताई महिला' की श्रेणी में डाल दिया. अरे जनाब, आप डिस्कवरी नहीं देखते क्या? जानकारी बढ़ाइये, आजकल दूसरे धर्म की महिलाएं भी हिजाब पहनती हैं. और तो और जिन लफंगों से आपके विचार हमारी हिफाजत नहीं कर पाते, कई बार ये हिजाब मददगार साबित होते हैं. सेलेब्रिटी भी आजकल पब्ल‍िक प्लेस में गोलगप्पे खाने के लिए हिजाब पहनते हैं.
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भई पुराने जमाने में महिलाओं के हाथ जबरन गुदवाए जाते थे, तब तो ये प्रथा थी. अब इसी चीज को थोड़ा मोडिफाई कर दिया, केवल हाथ नहीं शरीर के दूसरे हिस्सों पर करवा दिया तो हर्ज कैसे?
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जब पुरुषों के शरीर पर बाल बुरे नहीं लगते, तो महिलाओं पर क्यों? अगर वैक्स नहीं कराया, तो क्या हर्ज है?
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'आपके घर में डाका पड़े तो आप शर्मिंदा होते हैं क्या? आपकी इज्जत चली जाती है क्या? नहीं. आप अपना सामान छिन जाने से दुखी होते हैं. रोते हैं, बिलखते हैं. तो फिर अगर मेरा रेप हुआ, किसी ने मेरे शरीर पर अपना कब्जा किया, तो इससे मेरी इज्जत कैसे चली गई? हां मैं दुखी हूं, लेकिन शर्मिंदगी अपने हिस्से नहीं लूंगी.'
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'शरीर के बाल झड़ गए तो क्या हुआ? इसमें मेरा कसूर नहीं. आपको लड़कियों में लंबे बाल अच्छे लगते हैं, क्योंकि अब तक किसी गंजी महिला को देखा नहीं. चलो देखते-देखते आदत हो जाएगी. और आपकी बेकार की शिकायत भी खत्म हो जाएगी.'
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जब पुरुषों के लिए मेकअप पोतना जरूरी नहीं, तो महिलाओं के लिए क्यों? उर्सुला को मेक अप करना पसंद नहीं, तो क्यों करे?
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महिला हूं, बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं. बच्चे को जन्म देना या नहीं देना मेरे नारीत्व को परिभाषित नहीं कर सकता है. ये एक बेहद निजी फैसला है.
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कपड़े स्टाइल से ज्यादा जरूरत की सामग्री है. फिर जो परिधान आरामदायक नहीं, उसे पहनना ही क्यों? लॉरा जैसी कई महिलाएं बॉडीफिट की जगह ढीले ढाले कपड़े पहनती हैं. और ऐसी लड़कियां लकी भी हैं. उनकी शॉपिंग और च्वॉइस दुकान के केवल एक सेक्शन तक ही सीमित नहीं रहती, पूरी दुकान से वो चीजें उठा सकती हैं.
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